विभीषण कुंभकरण संवाद (Vibhishan Kumbhkaran Samvad)

कुंभकरण विभीषण संवाद

आज हम आपको युद्धभूमि में हुए कुंभकरण विभीषण संवाद (Kumbhkaran Vibhishan Samvad) के बारे में बताएँगेकुंभकरण व विभीषण दोनों रावण के भाई थे व दोनों ही उससे विपरीत। दोनों में अंतर यह था कि विभीषण पूर्णतया धर्म का पालन करने वाला था जबकि कुंभकरण के अंदर धर्म व राक्षस प्रवत्ति दोनों के गुण थे। रावण के अंदर तो केवल राक्षस प्रजाति के गुण ही थे।

विभीषण व कुंभकरण में यही एक अंतर होने के कारण दोनों ने युद्ध में अपने अलग-अलग मार्ग चुने व दोनों का परिणाम भी अलग रहा। आज हम जानेंगे कि धर्मसंकट क्या होता है, विभीषण कुंभकरण संवाद (Vibhishan Kumbhkaran Samvad) के बीच क्या धर्मसंकट था व उसका क्या परिणाम रहा।

कुंभकरण विभीषण संवाद (Kumbhkaran Vibhishan Samvad)

इस विश्व में भगवान ब्रह्मा के द्वारा धर्म की व्याख्या की गई है जो वेदों व शास्त्रों में निहित है। जब भी कोई कार्य उसके अनुसार किया जाता है तो वह धर्म कहलाता है अर्थात मानवता की रक्षा करने वाला। जो कार्य उसके विपरीत होता है वह अधर्म कहलाता है। धर्मसंकट तब खड़ा होता है जब व्यक्ति के सामने कोई ऐसी स्थिति आ पड़ती है जब उसके धर्म की व्याख्या आपस में टकराती है व उसी समय मनुष्य की परीक्षा होती है।

उस समय लिया गया निर्णय मनुष्य के आचरण पर निर्धारित होता है व बहुत कुछ उसके विवेक, बुद्धिमता व भविष्य की सोच पर निर्भर करता है। उदाहरण के तौर पर आप माता अनुसूया के बारे में पढ़ सकते हैं। जब उनका ब्राह्मण धर्म व पतिव्रत धर्म आपस में टकराया था तब उन्होंने अपने विवेक व बुद्धि से काम लिया था।

कुंभकरण और विभीषण का धर्मसंकट

दोनों का बड़ा भाई रावण था जो एक दुष्ट व पापी था। उसने जीवन में सदैव अधर्म के ही कार्य किए थे। चूँकि वह बड़ा था व साथ ही लंका का राजा तो कुंभकरण व विभीषण केवल उसको समझा सकते थे। इसके अलावा दोनों और कुछ नहीं कर सकते थे।

कुंभकरण भगवान ब्रह्मा से मिले वरदान के कारण 6 माह तक सोता रहता था व केवल एक दिन के लिए ही जागता था। उस दिन को वह केवल भोग विलास, भोजन इत्यादि में ही व्यतीत कर देता था। इसलिए उसे अपने भाई के द्वारा किए जा रहे अधर्म के कार्यों का पता नहीं था। चूँकि विभीषण रावण की सभा में ही रहता था तो वह समय-समय पर अपने विवेक से रावण को अधर्म के कार्य करने से रोकता रहता था।

जब रावण स्वयं माता लक्ष्मी के रूप माता सीता का अपहरण कर लाया व भगवान श्रीराम रावण से युद्ध करने के लिए लंका आने लगे तब विभीषण ने शुरू से ही अपने भाई रावण को धर्म का मार्ग सुझाया। लेकिन रावण ने क्रोधित होकर विभीषण को लंका से निकाल दिया। यही कार्य कुंभकरण ने भी किया व निद्रा से जागने के पश्चात रावण को बहुत समझाया लेकिन भाई के ना मानने के पश्चात उसने रावण का साथ देने का निर्णय लिया।

दोनों के बीच यही धर्मसंकट था कि उन्हें किस सीमा तक रावण को समझाना था व कब उसका साथ देना था। दोनों का यही धर्म संकट था कि वे पराई स्त्री के अपहरण व नारायण से युद्ध में अपने भाई का साथ देकर अपने कुल, राष्ट्र व देश का विनाश करवा दें या अपने आत्म-सम्मान व देश के लिए परिणाम जानते हुए भी नारायण से लड़ें व वीरगति को प्राप्त हो जाएं।

विभीषण कुंभकरण संवाद का निर्णय (Vibhishan Kumbhkaran Samvad)

दोनों के बीच इसी धर्मसंकट को लेकर संवाद भी हुआ था लेकिन तब तक दोनों अपने निर्णय ले चुके थे। यह संवाद युद्धभूमि में ही हुआ था जब विभीषण भगवान श्रीराम के साथ थे तो कुंभकरण रावण की ओर से लड़ने के लिए आया था।

विभीषण ने अंत में यह निर्णय लिया था कि वह नारायण से युद्ध नहीं करेगा व अच्छाई के मार्ग पर ही चलेगा तथा लंका के दुष्ट राजा रावण को अपदस्थ करेगा। उसने स्वयं भगवान राम की सेना में जाकर उनकी सहायता का निर्णय लिया व यह प्रयास किया कि इस युद्ध में लंका के निर्दोष लोग ना मारे जाएं। केवल वही लोग मारे जाएं जो युद्ध में रावण का साथ दे रहे हैं। इसलिए उसके निर्णय के कारण लंका महाविनाश से बच गई थी व केवल पापियों का ही अंत हुआ था।

कुंभकरण ने अपनी नींद से जागने के पश्चात अपने भाई को धर्म का मार्ग दिखाया किंतु रावण की बुद्धि भ्रष्ट होने के कारण वह कुछ ना कर सका। उसके अनुसार इस धर्मसंकट में उसे अपने भाई, कुल व समाज का साथ देना चाहिए जिसके कारण रावण अकेला ना रहे। इसके लिए उसने परिणाम जानते हुए भी स्वयं नारायण से युद्ध किया। उसे इस बात पर गर्व था कि रावण के मृत शरीर के साथ उसका शरीर भी पड़ा होगा। इसलिए उसने अपने भाई व देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।

कुंभकरण और विभीषण का परिणाम

दोनों को अपने द्वारा मार्ग को चुने जाने के अनुसार ही परिणाम मिले। जहाँ कुंभकरण भगवान श्रीराम से युद्ध करते हुए युद्धभूमि में वीरगति को प्राप्त हुआ। वहीं विभीषण को रावण की मृत्यु के पश्चात लंका का राजा नियुक्त किया गया।

इस तरह से कुंभकरण विभीषण संवाद हमें यह दिखाता है कि दोनों ही भाई अपने-अपने धर्म के अनुसार ठीक थे। इसमें किसी एक को सही या गलत कहना उचित नहीं रहेगा। दोनों के लिए ही यह धर्म संकट था जिसमें से किसी एक का चुनाव व्यक्ति अपने विवेक के आधार पर करता है।

कुंभकरण विभीषण संवाद से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: कुंभकरण विभीषण को क्या समझाया?

उत्तर: कुंभकरण और विभीषण दोनों ने ही एक दूसरे को समझाया था लेकिन अंत में दोनों ने ही अपने विवेक के अनुसार निर्णय लिया था

प्रश्न: कुंभकरण ने रावण को क्या समझाया था?

उत्तर: कुंभकरण ने रावण को समझाया था कि श्रीराम नारायण के अवतार हैं और उसे माता सीता को सम्मान सहित वापस लौटा देना चाहिए

प्रश्न: कुंभकरण की हत्या कैसे हुई?

उत्तर: पहली बात तो इसे हत्या नहीं वध कहा जाता है कुंभकरण का वध भगवान श्रीराम के हाथों हुआ था

प्रश्न: विभीषण क्या चाहते थे?

उत्तर: विभीषण चाहते थे कि रावण नीतिगत रूप से सोचे और वैसे ही निर्णय ले वे माता सीता को सम्मान सहित लौटाने के समर्थक थे जिस कारण रावण ने उन्हें लंका से निष्कासित कर दिया था

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लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

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