आज हम जानेंगे कि होलिका कौन थी (Holika Kaun Thi) जिसके नाम से हम हर वर्ष होलिका दहन का त्यौहार मनाते हैं। हम हर वर्ष बड़ी ही धूमधाम से रंगों का त्यौहार होली मनाते हैं जिसे धुलंडी कहा जाता है। उससे एक दिन पहले मुख्य होली का त्यौहार मनाया जाता हैं जिसे होलिका दहन कहते है। इसमें सुबह के समय लोग वहां जाकर पूजा करते हैं जहाँ रात को होलिका दहन होना होता (Holika Story In Hindi) हैं और रात में उसका दहन कर दिया जाता है।
दरअसल इसकी कथा सतयुग के एक दैत्य राजा हिरण्यकश्यप व उसके पुत्र प्रह्लाद से जुड़ी हुई हैं। होलिका इसी राक्षस राजा हिरण्यकश्यप की बहन थी जो अग्नि में जलकर भस्म हो गयी थी। हालाँकि उसे भगवान ब्रह्मा का वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी लेकिन फिर भी वह जल गई लेकिन कैसे!! ऐसे में आज आपके लिए होलिका की कहानी (Holika Ki Kahani) को जानना आवश्यक हो जाता है। आइए होलिका कौन थी व उसे क्यों जलाया जाता है, इसके बारे में जानते हैं।
Holika Kaun Thi | होलिका कौन थी?
सतयुग में महर्षि कश्यप की कई पत्नियाँ थी जिनमें से एक दिति भी थी। दिति के गर्भ से ही जन्में बच्चों को दैत्यों की संज्ञा दी गयी थी। उसकी कोख से मुख्यतया दो बालक व एक बालिका का जन्म हुआ था जिनके नाम हिरण्यकश्यप, हिरण्याक्ष व होलिका था। इनमें सबसे बड़ा हिरण्यकश्यप था। इन दोनों दैत्यों का वध भगवान विष्णु को अलग-अलग अवतार लेकर करना पड़ा था। जिनमें से हिरण्याक्ष दैत्य का वध भगवान विष्णु के वराह अवतार ने तो हिरण्यकश्यप दैत्य का वध नरसिंह अवतार ने किया था।
होलिका का संबंध इतिहास के बड़े-बड़े लोगों से रहा है। कहने का अर्थ यह हुआ कि चाहे आप होलिका के माता-पिता ले लीजिये या भाई या फिर पति, पुत्र या भतीजा। ऐसे में आज हम होलिका के जीवन से जुड़े हर महत्वपूर्ण व्यक्ति के बारे में बात करने वाले हैं।
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होलिका के माता-पिता का नाम
होलिका के पिता का नाम महर्षि कश्यप था। महर्षि कश्यप सतयुग काल के महान ऋषियों में से एक थे जो सप्तर्षि में से भी एक थे। सप्तर्षि उन ऋषियों को कहते हैं जो पिछले युग के कलियुग से राजा मनु के साथ नाव में बैठकर इस युग के सतयुग में आए थे। होलिका की माता का नाम दिति था जो प्रजापति दक्ष की पुत्री थी। दक्ष की एक पुत्री सती का विवाह स्वयं महादेव के साथ हुआ था। महर्षि कश्यप की कई पत्नियाँ थी जिसमें से दिति एक थी। दिति के गर्भ से ही सभी दैत्यों का जन्म हुआ था।
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होलिका के भाई का नाम
होलिका के भाई इतिहास के सबसे शक्तिशाली दैत्यों में से एक माने जाते हैं। दिति के तीन संतान हुई थी जिसमें से एक होलिका थी। होलिका के दो अन्य भाइयों के नाम हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष था। हिरन्यकश्यप सबसे बड़ा भाई था। जब हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र में डुबो दिया था तब भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर उसका वध कर दिया और पृथ्वी को समुद्र से बाहर निकाला। इसके बाद होलिका की अग्नि में जलकर मृत्यु हुई और सबसे बड़े भाई हिरण्यकश्यप का भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार ने वध किया।
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होलिका के पति का नाम
होलिका के पति का नाम विप्रचीति था। आपने शायद व का नाम इतना सुना नहीं होगा लेकिन इसकी इतिहास में अहम भूमिका है। दरअसल यह महर्षि कश्यप व दनु का पुत्र था जो दानव जाति से था। इस तरह से विप्रचीति और होलिका के पिता एक ही थे लेकिन माताएं अलग-अलग। विप्रचीति के बड़े भाई का नाम पुलोमन था जिसका देवराज इंद्र ने वध कर दिया था। उसके बाद विप्रचीति दानवों का राजा बना जिसका विवाह होलिका के साथ हुआ।
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होलिका के पुत्र का नाम
अब हमने आपको ऊपर बताया कि विप्रचीति स्वयं इतना प्रसिद्ध नहीं है लेकिन उसका संबंध जिससे रहा, उस कारण वह बहुत प्रसिद्ध हुआ। इसमें होलिका और होलिका से हुए पुत्रों का अहम योगदान है। होलिका और विप्रचीति के पुत्र का नाम स्वरभानु है। अब आप कहेंगे कि यह स्वरभानु को तो आप नहीं जानते लेकिन यह वही स्वरभानु है जिससे आगे चलकर राहु व केतु का जन्म हुआ।
दरअसल समुद्र मंथन के समय जो एक दैत्य देवताओं की पंक्ति में बैठ गया था और जिसने भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार से अमृतपान कर लिया था, वह स्वरभानु ही था। उसके बाद भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका गला काट दिया था जिससे उसके सिर को राहु व शरीर को केतु के नाम से जाना जाता है। वही होलिका के 13 अन्य पुत्रों और पति का वध माँ काली के रूप रक्तदंतिका ने किया था।
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होलिका व प्रहलाद की कहानी
इन सभी के अलावा होलिका इतिहास में जिस कारण सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है और जिस कारण हम हर वर्ष होलिका दहन का पर्व मनाते हैं, वह है उसके भतीजे प्रह्लाद के कारण। प्रह्लाद उसके बड़े भाई हिरण्यकश्यप व भाभी कयाधु का पुत्र था जो दैत्य होने के बाद भी बहुत बड़ा विष्णु भक्त था। उसके भाई ने प्रह्लाद का मन बदलने के प्रयास किए लेकिन विफल होने पर उसने अपने ही पुत्र की हत्या करने की भी कोशिश की।
उसने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए लेकिन हर बार भगवान विष्णु उसे बचा लिए करते थे। अपने भाई को इस तरह से परेशान देखकर होलिका ने उसे एक सुझाव दिया। उसने स्वयं को मिले भगवान ब्रह्मा के वरदान का हवाला देते हुए प्रह्लाद को मारने की योजना बनाई। हालाँकि उसकी यही योजना होलिका की मृत्यु का कारण बनी। आइए होलिका को मिले वरदान और उसकी मृत्यु के बारे में जान लेते हैं।
होलिका की कहानी (Holika Ki Kahani)
होलिका ने भगवान ब्रह्मा की कठिन तपस्या की थी और उनसे एक विशिष्ट वरदान प्राप्त किया था। दरअसल होलिका को भगवान ब्रह्मा से यह वरदान प्राप्त था कि कोई भी अग्नि उसे कभी जला नही पायेगी। इसी के साथ ब्रह्मा ने कहा था कि यह वरदान तभी प्रभावी होगा जब वह इसे स्वयं की रक्षा करने या दूसरों की भलाई करने के उद्देश्य से प्रयोग में लाएगी। इस वरदान को पाकर होलिका बहुत खुश हो गयी थी। अब तीनों लोकों की अग्नि भी उसे जलाकर भस्म नही कर सकती थी।
होलिका के छोटे भाई हिरण्याक्ष राक्षस का भगवान वराह के द्वारा वध हो चुका था। इसके पश्चात उसके बड़े भाई हिरण्यकश्यप ने भगवान ब्रह्मा से विचित्र वरदान प्राप्त किया था जिस कारण कोई भी उसका वध नही कर सकता था। उसने तीनों लोकों पर आधिपत्य स्थापित कर लिया था तथा विष्णु को नकार दिया था। इसी के साथ उसने स्वयं को भगवान घोषित किया हुआ था।
हालाँकि उसी के परिवार में उसका बेटा और होलिका का भतीजा प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। सभी उसके इस व्यवहार से बहुत दुखी रहते थे। हिरण्यकश्यप ने कई बार प्रह्लाद का वध करने का प्रयास किया किंतु हर बार भगवान विष्णु के द्वारा उसके प्राणों की रक्षा कर ली जाती थी।
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होलिका दहन की कथा
एक दिन हिरण्यकश्यप इसी चिंता में डूबा हुआ था तभी होलिका को एक विचार आया। वह अपने भाई के पास गयी और उसके सामने प्रस्ताव रखा कि यदि वह प्रह्लाद को अपनी गोद में बिठाकर अग्नि में बैठ जाए तो। अर्थात सैनिकों की सहायता से एक बड़ी जगह पर चिता जलायी जाए और उस अग्नि में होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर बैठ जाएगी।
चूँकि उसे तो भगवान ब्रह्मा का वरदान प्राप्त था, इसलिये उसे कुछ नही होगा लेकिन प्रह्लाद उस अग्नि से निकल कर भागने ना पाए, इसलिये वह उसे कसके पकड़कर रखेगी ताकि वह वही जलकर भस्म हो जाए। हिरण्यकश्यप को यह प्रस्ताव पसंद आया और उसने ऐसा ही करने को कहा।
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होलिका को जलाया जाना
इसके बाद हिरण्यकश्यप ने अपने सैनकों को यही आदेश दिया। कुछ ही पलों में एक खाली जगह पर विशाल लकड़ियों और घास-फूस इकठ्ठा कर दिया गया और उसके बीचों बीच होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर बैठ गयी।
इसके पश्चात हिरण्यकश्यप की आज्ञानुसार उस चिता में आग लगा दी गयी। आग लगते ही प्रह्लाद हमेशा की तरह विष्णु-विष्णु का नाम जपने लगा। जैसे-जैसे अग्नि की आंच उन तक पहुँचने लगी वैसे-वैसे होलिका को उसकी तपन महसूस होने लगी। वह आश्चर्यचकित थी क्योंकि इससे पहले अग्नि ने उसे कभी ऐसा अनुभव नही करवाया था।
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होलिका की मृत्यु कैसे हुई?
अब अग्नि उन तक पहुँच चुकी थी और होलिका का शरीर उस अग्नि से जलने लगा था तो वही प्रह्लाद निश्चिंत होकर बैठा था और विष्णु-विष्णु जपे जा रहा था। होलिका को यह देखकर बहुत क्रोध आया और वह चीख-चीख कर भगवान ब्रह्मा के दिए वरदान को झूठा बताने लगी। यह देखकर भगवान ब्रह्मा ने उसे दर्शन दिए और कहा कि यह वरदान देते समय उन्होंने उससे कहा था कि यह तभी प्रभावी होगा जब वह इसे स्वयं की रक्षा करने या दूसरों की भलाई के लिए प्रयोग में लाएगी। यदि वह इस वरदान का दुरूपयोग करेगी तो यह स्वतः ही निष्प्रभावी हो जायेगा। यह कहकर भगवान ब्रह्मा अंतर्धान हो गए।
वह अग्नि बहुत ही विशाल थी और होलिका चाहकर भी उस अग्नि से नही निकल सकती थी। प्रह्लाद की रक्षा तो स्वयं नारायण कर रहे थे, इसलिये उसे कुछ नही हो रहा था। बाहर खड़े सभी सैनिक और हिरण्यकश्यप होलिका की चीत्कार सुन सकते थे लेकिन सभी असहाय थे। देखते ही देखते होलिका का शरीर उसी अग्नि में जलकर भसम हो गया जबकि भक्त प्रह्लाद सकुशल बाहर आ गया। इस तरह से आपने जान लिया है कि होलिका कौन थी (Holika Kaun Thi) व उसे क्यों जलाया जाता है।
होलिका की कहानी से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: होलिका क्यों जल गई थी?
उत्तर: होलिका को भगवान ब्रह्मा से अग्नि से ना जलने का वरदान मिला था लेकिन केवल अच्छे उद्देश्य की पूर्ति हेतु। यदि वह इसका दुरुपयोग करेगी तो यह वरदान निष्प्रभावी हो जाना था। इसलिए वह जल गई थी।
प्रश्न: होलिका कौन थी उसकी कहानी?
उत्तर: होलिका एक राक्षसी थी जो महर्षि कश्यप व दिति की पुत्री थी। उसके दो भाई भी थे जिनके नाम हिरण्यकश्यप व हिरण्याक्ष थे। उसकी संपूर्ण कहानी हमने इस लेख में दी है जिसे आपको पढ़ना चाहिए।
प्रश्न: होलिका की सच्ची कहानी क्या है?
उत्तर: होलिका की सच्ची कहानी यही है कि वह अपने भतीजे प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ गई थी। हालाँकि भगवान ब्रह्मा के कारण उसका वरदान निष्प्रभावी हो गया था जबकि प्रह्लाद की स्वयं भगवान विष्णु ने रक्षा की थी।
प्रश्न: होलिका दहन का इतिहास क्या है?
उत्तर: होलिका दहन का इतिहास भक्त प्रह्लाद और उसकी बुआ होलिका से जुड़ा हुआ है। होलिका प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ गई थी लेकिन उस अग्नि में प्रह्लाद बच गया था जबकि होलिका जलकर भस्म हो गई थी।
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