आज हम आपके साथ चामुंडा चालीसा (Chamunda Chalisa) का पाठ करने जा रहे हैं। माँ आदि शक्ति के कई रूप सौम्य हैं तो कई अत्यंत ही प्रचंड। इसमें सौम्य रूप भक्तों को सुख प्रदान करने के उद्देश्य से लिए गए हैं जबकि प्रचंड या रोद्र रूप में माता दुष्टों का नाश कर भक्तों के संकटों को दूर करती हैं। ऐसे में माँ के दोनों रूप ही आवश्यक हैं। चामुंडा माता माँ आदिशक्ति का रोद्र रूप ही हैं जो मुख्य रूप से आदिवासियों तथा तंत्र-मंत्र करने वाले लोगों के बीच प्रसिद्ध हैं।
इस लेख में आपको केवल चामुण्डा चालीसा ही पढ़ने को नहीं मिलेगी बल्कि आप उसका भावार्थ भी जान पाएंगे। कहने का अर्थ यह हुआ कि इस लेख में हम आपके साथ चामुंडा चालीसा हिंदी में (Chamunda Chalisa Lyrics) भी साझा करेंगे ताकि आप उसका संपूर्ण लाभ ले सकें। अंत में हम आपको चामुंडा चालीसा के फायदे व महत्व भी बताएँगे। आइए सबसे पहले करते हैं मां चामुंडा चालीसा का पाठ।
Chamunda Chalisa | चामुंडा चालीसा
॥ दोहा ॥
नीलवरण माँ कालिका रहती सदा प्रचंड।
दस हाथो मई ससत्रा धार देती दुष्ट को दंड॥
मधु केटभ संहार कर करी धर्म की जीत।
मेरी भी पीड़ा हरो हो जो कर्म पुनीत॥
॥ चौपाई ॥
नमस्कार चामुंडा माता, तीनो लोक मई मई विख्याता।
हिमाल्या मई पवितरा धाम है, महाशक्ति तुमको प्रणाम है।
मार्कंडिए ऋषि ने धीयया, कैसे प्रगती भेद बताया।
सूभ निसुभ दो डेतिए बलसाली, तीनो लोक जो कर दिए खाली।
वायु अग्नि याँ कुबेर संग, सूर्या चंद्रा वरुण हुए तंग।
अपमानित चर्नो मई आए, गिरिराज हिमआलये को लाए।
भद्रा-रॉंद्र्रा निट्टया धीयया, चेतन शक्ति करके बुलाया।
क्रोधित होकर काली आई, जिसने अपनी लीला दिखाई।
चंदड़ मूंदड़ ओर सुंभ पतए, कामुक वेरी लड़ने आए।
पहले सुग्गृीव दूत को मारा, भगा चंदड़ भी मारा मारा।
अरबो सैनिक लेकर आया, द्रहूँ लॉकंगन क्रोध दिखाया।
जैसे ही दुस्त ललकारा, हा उ सबद्ड गुंजा के मारा।
सेना ने मचाई भगदड़, फादा सिंग ने आया जो बाद।
हत्टिया करने चंदड़-मूंदड़ आए, मदिरा पीकेर के घुर्रई।
चतुरंगी सेना संग लाए, उचे उचे सीविएर गिराई।
तुमने क्रोधित रूप निकाला, प्रगती डाल गले मूंद माला।
चर्म की सॅडी चीते वाली, हड्डी ढ़ाचा था बलसाली।
विकराल मुखी आँखे दिखलाई, जिसे देख सृिस्टी घबराई।
चण्ड मुण्ड ने चकरा चलाया, ले तलवार हू साबद गूंजाया।
पपियो का कर दिया निस्तरा, चण्ड मुण्ड दोनो को मारा।
हाथ मई मस्तक ले मुस्काई, पापी सेना फिर घबराई।
सरस्वती माँ तुम्हे पुकारा, पड़ा चामुंडा नाम तिहारा।
चण्ड मुण्ड की मृत्यु सुनकर, कालक मौर्या आए रात पर।
अरब खराब युध के पाठ पर, झोक दिए सब चामुंडा पर।
उगर्र चंडिका प्रगती आकर, गीडदीयो की वाडी भरकर।
काली ख़टवांग घुसो से मारा, ब्रह्माड्ड ने फेकि जल धारा।
माहेश्वरी ने त्रिशूल चलाया, मा वेश्दवी कक्करा घुमाया।
कार्तिके के शक्ति आई, नार्सिंघई दित्तियो पे छाई।
चुन चुन सिंग सभी को खाया, हर दानव घायल घबराया।
रक्टतबीज माया फेलाई, शक्ति उसने नई दिखाई।
रक्त्त गिरा जब धरती उपर, नया डेतिए प्रगटा था वही पर।
चाँदी मा अब शूल घुमाया, मारा उसको लहू चूसाया।
शुम्भ निशुम्भ अब डोडे आए, सततर सेना भरकर लाए।
वाज्ररपात संग सूल चलाया, सभी देवता कुछ घबराई।
ललकारा फिर घुसा मारा, ले त्रिसूल किया निस्तरा।
शुम्भ निशुम्भ धरती पर सोए, दैत्य सभी देखकर रोए।
कहमुंडा मा ध्ृम बचाया, अपना सूभ मंदिर बनवाया।
सभी देवता आके मानते, हनुमत भेराव चवर दुलते।
आसवीं चेट नवराततरे अओ, धवजा नारियल भेट चाड़ौ।
वांडर नदी सनन करऔ, चामुंडा मा तुमको पियौ।
॥ दोहा ॥
शरणागत को शक्ति दो हे जग की आधार।
‘ओम’ ये नैया डोलती कर दो भाव से पार॥
Chamunda Chalisa Lyrics | चामुंडा चालीसा हिंदी में – अर्थ सहित
॥ दोहा ॥
नीलवरण माँ कालिका रहती सदा प्रचंड।
दस हाथो मई ससत्रा धार देती दुष्ट को दंड॥
मधु केटभ संहार कर करी धर्म की जीत।
मेरी भी पीड़ा हरो हो जो कर्म पुनीत॥
माँ चामुंडा अपने नीले रंग में सदा ही प्रचंड रूप लिए रहती हैं। वे अपने दस हाथों से दुष्टों को दंड देती हैं और उनका वध कर देती हैं। उन्होंने ही मधु व कैटभ राक्षसों का वध कर धर्म की रक्षा की थी। हे माँ चामुण्डा!! अब आप मेरी भी पीड़ा को दूर कर दीजिये।
॥ चौपाई ॥
नमस्कार चामुंडा माता, तीनो लोक मई मई विख्याता।
हिमाल्या मई पवितरा धाम है, महाशक्ति तुमको प्रणाम है।
मार्कंडिए ऋषि ने धीयया, कैसे प्रगती भेद बताया।
सूभ निसुभ दो डेतिए बलसाली, तीनो लोक जो कर दिए खाली।
चामुंडा माता को हम सभी का नमस्कार है। उनकी प्रसिद्धि तीनों लोको में फैली हुई है। हिमालय पर्वत में उनका पवित्र धाम है। ऐसी महाशक्ति को हम सभी का प्रणाम है। मार्कंडेय ऋषि ने उनका ध्यान किया और उन्होंने उनका उद्धार कर दिया। एक समय में शुंभ-निशुंभ नामक दो भयानक राक्षस हुए थे जिन्होंने तीनो लोकों में भय फैला दिया था।
वायु अग्नि याँ कुबेर संग, सूर्या चंद्रा वरुण हुए तंग।
अपमानित चर्नो मई आए, गिरिराज हिमआलये को लाए।
भद्रा-रॉंद्र्रा निट्टया धीयया, चेतन शक्ति करके बुलाया।
क्रोधित होकर काली आई, जिसने अपनी लीला दिखाई।
शुंभ-निशुंभ के आंतक से तो वायुदेव, अग्निदेव, कुबेर देव, सूर्य देव, चंद्र देव, वरुण देव इत्यादि सभी भयभीत हो गए थे। सभी देवता उनकी सेना से अपमानित व भयभीत होकर हिमालय पर्वत में माँ आदिशक्ति की शरण में आये। उन्होंने अपनी पूरी शक्ति व तंत्र-मंत्र की विद्या लगाकर माँ आदिशाक्ति के रोद्र रूप का ध्यान किया। यह देखकर क्रोधित रूप में माँ काली वहां आयी और उन्होंने अपनी महिमा दिखाई।
चंदड़ मूंदड़ ओर सुंभ पतए, कामुक वेरी लड़ने आए।
पहले सुग्गृीव दूत को मारा, भगा चंदड़ भी मारा मारा।
अरबो सैनिक लेकर आया, द्रहूँ लॉकंगन क्रोध दिखाया।
जैसे ही दुस्त ललकारा, हा उ सबद्ड गुंजा के मारा।
माँ काली से लड़ने को चंड-मुंड व शुम्भ-निशुम्भ राक्षस आये। माँ काली ने उनके दूत सुग्रीव को मार गिराया और यह देखकर चंड राक्षस अपनी जान बचाने को युद्ध भूमि से भाग खड़ा हुआ। कुछ समय पश्चात वह अपने साथ अरबों की संख्या में सैनिक लेकर पुनः युद्ध भूमि में आया और काली माँ को ललकारा। जैसे ही उस दुष्ट ने काली माता को ललकारा, काली माता अपने अस्त्र-शस्त्र उठाकर दुष्टों की सेना पर टूट पड़ी।
सेना ने मचाई भगदड़, फादा सिंग ने आया जो बाद।
हत्टिया करने चंदड़-मूंदड़ आए, मदिरा पीकेर के घुर्रई।
चतुरंगी सेना संग लाए, उचे उचे सीविएर गिराई।
तुमने क्रोधित रूप निकाला, प्रगती डाल गले मूंद माला।
माँ काली ने दुष्टों की सेना में भगदड़ मचा दी और जो भी उनके सामने आया, उन्होंने उसे काट डाला। चंड-मुंड युद्ध भूमि में माँ काली की हत्या करने आये थे लेकिन मां काली मदिरा पीकर गुर्रा रही थी। माँ काली ने चंड-मुंड की चतुरंगी सेना को ध्वस्त करना शुरू कर दिया। माँ काली बहुत ही ज्यादा क्रोधित रूप में थी और उसी क्रोध में वे दुष्टों के सैनिकों का वध किये जा रही थी।
चर्म की सॅडी चीते वाली, हड्डी ढ़ाचा था बलसाली।
विकराल मुखी आँखे दिखलाई, जिसे देख सृिस्टी घबराई।
चण्ड मुण्ड ने चकरा चलाया, ले तलवार हू साबद गूंजाया।
पपियो का कर दिया निस्तरा, चण्ड मुण्ड दोनो को मारा।
माँ के पास चीते की चमड़ी का कोड़ा था और साथ ही हड्डियों से बना हुआ ढांचा था जो बहुत ही मजबूत था। माँ काली ने अपने रोद्र रूप में लाल आँखें दुष्टों की सेना को दिखाई और यह देखकर संपूर्ण सृष्टि में भय व्याप्त हो गया। चंड-मुंड ने माँ काली का वध करने के लिए चक्र चलाया लेकिन माँ ने अपनी तलवार से उसे ध्वस्त कर दिया। इसके पश्चात माँ ने चंड-मुंड का बुरी तरह से वध कर दिया।
हाथ मई मस्तक ले मुस्काई, पापी सेना फिर घबराई।
सरस्वती माँ तुम्हे पुकारा, पड़ा चामुंडा नाम तिहारा।
चण्ड मुण्ड की मृत्यु सुनकर, कालक मौर्या आए रात पर।
अरब खराब युध के पाठ पर, झोक दिए सब चामुंडा पर।
चंड-मुंड का वध करने के पश्चात भी माँ काली रुकी नहीं बल्कि उन्होंने उनका सिर काटकर अपने हाथ में ले लिया। माँ काली का यह भीषण रूप देखकर पापियों की सेना में भय व्याप्त हो गया। यह देखकर माँ सरस्वती ने माँ काली का एक नाम चामुण्डा रख दिया। चंड-मुंड के वध का समाचार सुनकर रात-रात में ही पाताल लोक से राक्षसों की सेना अरबों की संख्या में युद्ध भूमि पहुँच गयी। उन्होंने माँ चामुण्डा को हराने के लिए अपनी पूरी शक्ति झोंक दी।
उगर्र चंडिका प्रगती आकर, गीडदीयो की वाडी भरकर।
काली ख़टवांग घुसो से मारा, ब्रह्माड्ड ने फेकि जल धारा।
माहेश्वरी ने त्रिशूल चलाया, मा वेश्दवी कक्करा घुमाया।
कार्तिके के शक्ति आई, नार्सिंघई दित्तियो पे छाई।
यह देखकर माँ चामुंडा हुंकार मारने लगी और उन्होंने उन पापियों की सेना को कुचलना शुरू कर दिया। उन्होंने राक्षसों के मुहं पर घूंसे मार-मार कर उनके मुख से रक्त की धारा निकाल दी। माहेश्वरी माता ने उन पर त्रिशूल से वार किया तो वहीं वेश्दवी भी युद्ध भूमि में आ गयी। कार्तिक भगवान ने भी अपनी शक्ति उस युद्ध में झोंक दी और सभी जगह भीषण रक्तपात होने लगा।
चुन चुन सिंग सभी को खाया, हर दानव घायल घबराया।
रक्टतबीज माया फेलाई, शक्ति उसने नई दिखाई।
रक्त्त गिरा जब धरती उपर, नया डेतिए प्रगटा था वही पर।
चाँदी मा अब शूल घुमाया, मारा उसको लहू चूसाया।
माँ चामुंडा राक्षसों को चुन-चुन कर मार रही थी और उनके मृत शरीर को खा रही थी। यह देखकर हर दानव घबरा गया था। इसी बीच राक्षसों का नया राजा रक्तबीज अपनी माया को दिखाने लगा। युद्धभूमि में उसके शरीर पर घाव होकर जितनी भी रक्त की बूंदे नीचे गिर रही थी, उससे उतने ही रक्तबीज बढ़ते जा रहे थे। यह देखकर माँ चामुंडा उसका रक्त युद्ध भूमि में गिरने से पहले ही पीने लगी और उसका वध कर डाला।
शुम्भ निशुम्भ अब डोडे आए, सततर सेना भरकर लाए।
वाज्ररपात संग सूल चलाया, सभी देवता कुछ घबराई।
ललकारा फिर घुसा मारा, ले त्रिसूल किया निस्तरा।
शुम्भ निशुम्भ धरती पर सोए, दैत्य सभी देखकर रोए।
राक्षसों की सेनाएं हर जगह से आ रही थी और अब इसमें शुंभ-निशुंभ नामक दैत्य भी अपनी सेना सहित युद्ध भूमि में आ गए। शुम्भ-निशुम्भ को भी युद्धभूमि में आता देखकर माँ चामुंडा बहुत अधिक क्रोधित हो गयी और उनकी आँखें लाल होकर जलने लगी। दोनों राक्षसों ने भीषण अस्त्र-शस्त्रों के साथ माँ पर वार किया और यह देखकर सभी देवता भयभीत हो उठे। माँ काली ने उनके मुहं पर घूसा मारा और अपने त्रिशूल से दोनों का वध कर दिया। दोनों मृत होकर धरती पर गिर गए और यह देखकर सभी दैत्य रोने लगे।
कहमुंडा मा ध्ृम बचाया, अपना सूभ मंदिर बनवाया।
सभी देवता आके मानते, हनुमत भेराव चवर दुलते।
आसवीं चेट नवराततरे अओ, धवजा नारियल भेट चाड़ौ।
वांडर नदी सनन करऔ, चामुंडा मा तुमको पियौ।
माँ चामुंडा ने राक्षसों की मुण्डियाँ काटकर उधम मचा दिया और भक्तों ने उनका एक मंदिर बनाया। उनके मंदिर में सभी देवता आकर माथा टेकते हैं तो वहीं हनुमान व भैरव बाबा उन पर चंवर डुलाते हैं। उनके मंदिर में गुप्त नवरात्र व आश्विन नवरात्र के समय पूजा की जाती है। उनकी पूजा में ध्वजा व नारियल की भेंट चढ़ाई जाती है। उनकी पूजा के लिए वांडर नदी में स्नान करना चाहिए और चामुंडा माता का ध्यान करना चाहिए।
॥ दोहा ॥
शरणागत को शक्ति दो हे जग की आधार।
‘ओम’ ये नैया डोलती कर दो भाव से पार॥
हे चामुंडा माता!! आप इस जगत की आधार हैं और आप अपनी शरण में आये हुए भक्तों को शक्ति प्रदान कीजिये। भवसागर को पार करते हुए हमारी नांव डोल रही है और डूब सकती है, ऐसे में आप ही इसे संभालो और हमें भवसागर पार करवा दो।
चामुंडा चालीसा का महत्व
माँ आदिशक्ति या माँ पार्वती ने समय-समय पर अपना महत्व बताने के उद्देश्य से तथा धर्म रक्षा हेतु कई तरह के अवतार लिए हैं। जहाँ एक ओर, उनका गौरी रूप अत्यंत सौम्य व मन को आनंद देने वाला है तो वहीं चामुंडा या काली रूप में वे कपटी, कुटील व दुष्ट लोगों के मन में भय पैदा करती हैं। अब यदि सामान्य पुरुष या कोई बच्चा मातारानी का यह रोद्र रूप देखता है तो वह उनसे भय खाता है जो कि अनुचित है।
मातारानी ने चामुंडा के रूप में अपना यह रोद्र व प्रचंड अवतार सज्जन मनुष्यों को डराने के उद्देश्य से नहीं अपितु दुर्जन लोगों में भय पैदा करने और उनका विनाश करने के लिए लिया है। ऐसे में चामुंडा माता की शक्तियों, गुणों, उद्देश्यों, कर्मों इत्यादि को बताने के उद्देश्य से ही चामुंडा चालीसा की रचना की गयी है ताकि भक्तगण उनके बारे में विस्तृत रूप में जान सकें। यही चामुंडा चालीसा का मुख्य महत्व होता है।
चामुंडा चालीसा के फायदे
यदि आप प्रतिदिन सच्चे मन से चामुंडा माता की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर चामुंडा देवी चालीसा का पाठ करते हैं तो इससे आपको कई तरह के लाभ देखने को मिलते हैं। इसका सबसे बड़ा लाभ तो यही है कि आपकी अपने शत्रुओं पर विजय होती है और यहाँ तक कि आपके शत्रुओं का मन परिवर्तन तक हो जाता है और वे आपसे मित्रता करने को तत्पर दिखाई देते हैं।
इसी के साथ ही यदि आपके या आपके परिवार के ऊपर किसी तरह का संकट आ खड़ा हुआ है, व्यवसाय या नौकरी में कोई समस्या आ रही है, भविष्य का मार्ग नहीं दिखाई दे रहा है, कोई धर्मसंकट है, करियर नहीं बन पा रहा है या कोई अन्य संकट, बाधा, विपत्ति, कष्ट, पीड़ा, दुःख इत्यादि है तो वह सब भी चामुंडा देवी चालीसा के माध्यम से दूर हो जाते हैं और आप सुखमय जीवन व्यतीत कर पाते हैं। यही चामुंडा चालीसा का लाभ होता है।
निष्कर्ष
आज के इस लेख के माध्यम से आपने चामुंडा चालीसा हिंदी में अर्थ सहित (Chamunda Chalisa) पढ़ ली हैं। साथ ही आपने चामुंडा चालीसा पढ़ने के फायदे और महत्व के बारे में भी जान लिया है। यदि आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।
चामुंडा चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: चामुंडा माता कुलदेवी किसकी है?
उत्तर: चामुंडा माता को जोधपुर के राजघराने की कुलदेवी माना जाता है। कुछ समय पहले तक इस क्षेत्र के आसपास के लोग ही चामुंडा माता को मानते थे लेकिन वर्तमान में हर सनातनी चामुंडा माता में विश्वास करता है।
प्रश्न: चामुंडा देवी को कैसे प्रसन्न करें?
उत्तर: यदि आप चामुंडा माता को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनकी मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर चामुंडा चालीसा व आरती का पाठ करना चाहिए।
प्रश्न: मां चामुंडा का जन्म कब हुआ था?
उत्तर: मां चामुंडा का जन्म उस समयकाल में हुआ था जब चंड-मुंड राक्षसों का अत्याचार बहुत बढ़ गया था। तब देवी आदि शक्ति ने उनका वध करने के उद्देश्य से चामुंडा माता के रूप में रोद्र अवतार लिया था।
प्रश्न: क्या चामुंडा और काली एक ही है?
उत्तर: माँ काली माँ आदिशक्ति का सीधा रूप हैं जिन्होंने अपने रोद्र अवतार में कई तरह के राक्षसों का वध किया था। काली के द्वारा चंड-मुंड राक्षसों का वध किये जाने पर उनका नाम चामुंडा पड़ गया था।
प्रश्न: चामुंडा का अर्थ क्या है?
उत्तर: माँ काली ने चंड-मुंड राक्षसों का वध किया था। ऐसे में इन दोनों के नामो को जोड़कर ही चामुंडा नाम उन्हें उपाधि के रूप में दिया गया था।
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