चंद्रघंटा माता स्तोत्र हिंदी में – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

चंद्रघंटा स्तोत्र (Chandraghanta Stotra)

आज हम आपके साथ चंद्रघंटा स्तोत्र (Chandraghanta Stotra) का पाठ करने जा रहे हैं। हम हर वर्ष नवरात्र का पावन त्यौहार बहुत ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। नवरात्र नौ दिवस का पर्व है जिसमें हर दिन मातारानी के भिन्न रूप की पूजा की जाती है जिन्हें हम नवदुर्गा के नाम से जानते हैं। इसमें मातारानी का हरेक रूप अपने भिन्न गुणों व शक्तियों के कारण पूजनीय है। चंद्रघंटा देवी नवदुर्गा का द्वितीय रूप है जो तपस्या का परिचायक है।

इस लेख में आपको चंद्रघंटा माता स्तोत्र (Chandraghanta Mata Stotra) हिंदी में भी पढ़ने को मिलेगा। इससे आपको चंद्रघंटा स्तोत्र का भावार्थ भी समझने में सहायता होगी। अंत में हम आपके साथ माँ चंद्रघंटा स्तोत्र के लाभ व महत्व भी साझा करेंगे। तो आइए सबसे पहले पढ़ते हैं चंद्रघंटा देवी स्तोत्र

Chandraghanta Stotra | चंद्रघंटा स्तोत्र

॥ ध्यान ॥

वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्विनीम्॥

मणिपुर स्थिताम् तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशर, पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर, किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥

प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥

॥ स्तोत्र ॥

आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिद्धिदात्री चंद्रघटा प्रणमाम्यहम्॥

चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपिणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाम्यहम्॥

नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटे प्रणमाम्यहम्॥

Chandraghanta Mata Stotra | चंद्रघंटा माता स्तोत्र – अर्थ सहित

॥ ध्यान ॥

वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्विनीम्॥

मैं मनोवांछित लाभ प्राप्त करने के लिए, अर्ध चंद्र को अपने मस्तक पर धारण करने वाली, सिंह पर सवार व यश प्रदान करने वाली माता चंद्रघंटा, की वंदना करता हूँ।

मणिपुर स्थिताम् तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशर, पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥

माँ चंद्रघंटा हमारे मणिपुर चक्र में स्थित होती हैं। वे दुर्गा माता का तीसरा रूप हैं जिनकी तीन आँखें हैं। वे अपने हाथों में खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशर, कमल, कमंडल, त्रिशूल व धनुष-बाण लिए होती हैं।

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर, किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥

वे पीले रंग के वस्त्र धारण करती हैं, मुख पर मंद मुस्कान लिए हुए होती हैं और कई तरह के आभूषणों से अपना अलंकर किये हुए होती हैं। माता चंद्रघंटा ने मंजीर का हार, किंकिणी तथा रत्नों से जड़ित कुण्डलों से अपना श्रृंगार किया हुआ है।

प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥

मैं आनंदित मन के साथ चंद्रघंटा माता की वंदना करता हूँ। उनका रूप बहुत ही सुंदर व रमणीय है। वे अपने इस रूप में सभी का मन मोह लेती हैं और हमें आनंद प्रदान करती हैं।

॥ स्तोत्र ॥

आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिद्धिदात्री चंद्रघटा प्रणमाम्यहम्॥

वे इस सृष्टि में दूध का प्रवाह करती हैं और आदि शक्ति के रूप में हमें शुभ फल प्रदान करती हैं। हमें सिद्धियाँ प्रदान करने वाली चंद्रघंटा माता को मेरा प्रणाम है।

चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपिणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाम्यहम्॥

उनका मुख चंद्रमा के जैसा है, वे हमें इष्ट प्रदान करती हैं। उनका रूप बहुत ही सुन्दर है। वे हमें धन व आनंद प्रदान करती हैं और मैं उन चंद्रघंटा माता को प्रणाम करता हूँ।

नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटे प्रणमाम्यहम्॥

चंद्रघंटा माता के कई रूप हैं और वे हमारी हरेक इच्छा को पूरा कर देती हैं। उन्हीं से ही हमारा यश बढ़ता है। वे हमें सौभाग्य व आरोग्य प्रदान करती हैं और मैं उन चंद्रघंटा माता को नमस्कार करता हूँ।

ऊपर आपने मां चंद्रघंटा स्तोत्र हिंदी में अर्थ सहित (Maa Chandraghanta Stotra) पढ़ लिया है। इससे आपको माता चंद्रघंटा स्तोत्र का भावार्थ समझ में आ गया होगा। अब हम चंद्रघंटा माता स्तोत्र के लाभ और महत्व भी जान लेते हैं।

मां चंद्रघंटा स्तोत्र का महत्व

माँ चंद्रघंटा का नाम चंद्रघंटा इसलिए पड़ा क्योंकि उनके मस्तिष्क पर अर्ध चंद्रमा घंटे की आकृति में स्थित होता है। माँ दुर्गा का यह रूप दुष्टों का विनाश करने के उद्देश्य से लिया गया था। इसी कारण मां चंद्रघंटा ने अपनी भुजाओं में तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्र धारण किये हुए हैं जिससे वे असुरों का वध करती हैं। ऐसे में चंद्रघंटा देवी स्तोत्र के माध्यम से चंद्रघंटा माता की आराधना के साथ-साथ उनके बारे में बताया गया है।

चंद्रघंटा माता स्तोत्र में माता चंद्रघंटा के गुणों, शक्तियों, कर्मों तथा उद्देश्य के ऊपर प्रकाश डाला गया है। इसको पढ़ने से ना केवल भक्तों को चंद्रघंटा माता की महिमा के बारे में पता चल जाता है बल्कि साथ के साथ उनकी आराधना भी हो जाती है। यही मां चंद्रघंटा स्तोत्र का महत्व होता है।

चंद्रघंटा स्तोत्र के लाभ

चंद्रघंटा स्तोत्र का निरंतर पाठ करने से हमारे मन में जो डर या किसी बात को लेकर भय है, वह दूर हो जाता है। नवदुर्गा का यह तीसरा रूप चंद्रघंटा भक्तों के भय को दूर करने तथा दुष्टों का नाश करने के उद्देश्य से ही लिया गया है। ऐसे में जो भक्तगण सच्चे मन के साथ चंद्रघंटा स्तोत्र का पाठ करते हैं और उनका ध्यान करते हैं, उनके हर तरह के भय समाप्त हो जाते हैं।

इसी के साथ ही जिन व्यक्तियों को ज्यादा क्रोध आता है या स्वभाव चिडचिडा रहता है तो वह भी चंद्रघंटा स्तोत्रम् के माध्यम से ठीक हो जाता है। इससे आपको अपने क्रोध को नियंत्रण में रखने में सहायता मिलती है और स्वभाव मधुर बनता है। चंद्रघंटा माता हमारे शत्रुओं का नाश कर देती हैं और सभी तरह की बाधाओं का समाधान कर काम बना देती हैं।

निष्कर्ष

आज के इस लेख के माध्यम से आपने चंद्रघंटा स्तोत्र हिंदी में अर्थ सहित (Chandraghanta Stotra) पढ़ लिया हैं। साथ ही आपने चंद्रघंटा माता स्तोत्र के लाभ और महत्व के बारे में भी जान लिया है। यदि आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।

चंद्रघंटा स्तोत्र से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: चंद्रघंटा को क्या चढ़ाया जाता है?

उत्तर: चंद्रघंटा माता को सबसे अधिक दूध व दूध से बनी खीर पसंद होती है। ऐसे में भक्तगण नवरात्र के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा को दूध से बनी खीर का ही भोग मुख्य तौर पर लगाते हैं।

प्रश्न: चंद्रघंटा को कौन सा रंग पसंद है?

उत्तर: वैसे तो आप किसी भी रंग में मातारानी की पूजा कर सकते हैं लेकिन यदि आपको कोई एक रंग जानना है तो मां चंद्रघंटा को मुख्य तौर पर पीले या नारंगी रंग के वस्त्र पसंद आते हैं।

प्रश्न: मां चंद्रघंटा किसका प्रतीक है?

उत्तर: मां चंद्रघंटा नवदुर्गा का तीसरा रूप है जो वीरता, शौर्य व साहस का प्रतीक मानी जाती हैं। वे दुष्टों का नाश कर भक्तों को अभय प्रदान करती हैं।

प्रश्न: चंद्रघंटा का अर्थ क्या होता है?

उत्तर: चंद्रघंटा शब्द दो शब्दों के मेल से बना है जिसमें चंद्र का अर्थ चंद्रमा से है जबकि घंटा एक आकृति को बताता है। चंद्रघंटा माता के मस्तक पर अर्ध चंद्रमा घंटी के रूप में विराजित है जिस कारण उनका नाम चंद्रघंटा पड़ा।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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