राम की महिमा (Ram Ki Mahima) किसी से छुपी हुई नहीं है। भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम की संज्ञा भी दी गई है। उन्होंने हमेशा धर्म व सत्य का पालन किया चाहे इसके लिए उन्हें राज सिंहासन छोड़ना पड़ा हो, 14 वर्षों का कठिन वनवास भोगना पड़ा हो या माता सीता का त्याग करना पड़ा हो। वे कभी भी अपने धर्म व आदर्शों से पीछे नही हटे, इसलिए ही आज तक उनका नाम एक आदर्श के रूप में लिया जाता है।
आपने इतिहास में देखा होगा कि हमारे भगवान व राजा एक से अधिक पत्नियाँ रखते थे। ऐसे में भगवान श्रीराम ने माता सीता को वचन दिया था कि वे जीवनपर्यंत उनके अलावा किसी और स्त्री को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार नही करेंगे। यह श्रीराम की महिमा (Shri Ram Ki Mahima) नहीं तो और क्या है। इसी के साथ भगवान राम ने हमेशा अन्य महिलाओं को माता, बहन व पुत्री के रूप में आदर दिया तथा उन्हें उनका उचित सम्मान दिलवाया।
Ram Ki Mahima | राम की महिमा
आज हम ऐसी ही 5 महिलाओं की बात करेंगे जिनकी कथा भगवान श्रीराम से जुड़ी हुई है। इनमे से कोई महिला किसी श्राप के कारण अपने जीवन में कष्ट सह रही थी तो किसी के भाग्य ने उसका साथ नही दिया किंतु भगवान श्रीराम की कृपा से उनके जीवन में एक नई उमंग व उत्साह का संचार हुआ।
श्री राम की महिमा ही कुछ ऐसी है कि उनके हाथों वध होकर भी ताड़का का उद्धार हो गया था तो वहीं उनके चरण छूते ही अहिल्या पत्थर से स्त्री में बदल गई। आइए ऐसी ही कुछ कथाओं के बारे में जानते हैं।
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अहिल्या
एक समय में माता अहिल्या अपने पति गौतम ऋषि के साथ वन में रहती थी। वह बहुत सुंदर थी, इसी कारण देवराज इंद्र उन पर सम्मोहित हो गए। एक दिन गौतम ऋषि स्नान करने गए हुए थे तो पीछे से इंद्र ने गौतम ऋषि का रूप धारण कर माता अहिल्या के साथ दुराचार किया। जब इंद्र वापस जा रहे थे तो उसी समय गौतम ऋषि ने उन्हें देख लिया। यह देखकर गौतम ऋषि ने क्रोधवश दोनों को श्राप दे दिया था।
माता अहिल्या अपने पति गौतम ऋषि के द्वारा दिए गए श्राप के कारण वर्षों तक पत्थर की मूर्त बनी रही। जब भगवान श्रीराम अपने गुरु विश्वामित्र व भ्राता लक्ष्मण के साथ इस वन में आए तब उन्होंने माता अहिल्या को देखा। गुरु विश्वामित्र के कहने पर उन्होंने उस पत्थर की शिला को अपने चरणों से स्पर्श किया जिसके फलस्वरूप माता अहिल्या को फिर से नारी का रूप मिला। इस प्रकार वर्षों के पश्चात माता अहिल्या का उद्धार संभव हो सका।
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ताड़का
दुष्ट प्रवत्ति के लोगों का वध करके उनकी मुक्ति करना भी धर्म का एक भाग है। ताड़का पहले एक बहुत सुंदर स्त्री थी किंतु अगस्त्य मुनि के द्वारा दिए गए श्राप के कारण वह एक कुरूप स्त्री में बदल गई जो नरभक्षी थी। जिस वन में महर्षि विश्वामित्र यज्ञ करते थे व दिव्य अस्त्रों का निर्माण करते थे वहां ताड़का का प्रकोप बहुत बढ़ गया था। इसके कारण विश्वामित्र जी के कार्यों में व्यवधान उत्पन्न हो रहा था।
ताड़का का वध करने के उद्देश्य से विश्वामित्र जी अयोध्या नरेश दशरथ से उनके सबसे बड़े पुत्र श्रीराम को अपने साथ लेकर आए। भगवान राम शुरू में तो ताड़का का वध करने में थोड़ा हिचकिचाए थे क्योंकि धर्म में स्त्री हत्या पाप था किंतु ऋषि विश्वामित्र के आदेशानुसार उन्होंने ताड़का का वध करके उसका उद्धार किया।
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शबरी
शबरी एक आदिवासी महिला थी जिसके मन में भगवान श्रीराम से मिलकर मोक्ष प्राप्ति की इच्छा थी। उनके गुरु ने अंतिम समय में बताया था कि एक दिन उसकी कुटिया में स्वयं भगवान श्रीराम आएंगे जिनसे उन्हें मुक्ति मिलेगी। इसी आस में वह प्रतिदिन अपनी कुटिया को पूरी तरह से साफ करती थी, नए-नए पुष्पों को कुटिया के रास्ते में सजाती थी व प्रभु के लिए फल एकत्रित करती थी। भगवान राम की प्रतीक्षा में शबरी का पूरा जीवन बीत गया।
अंत में जब भगवान राम अपने भ्राता लक्ष्मण के साथ माता सीता की खोज में वहां आए तब उन्होंने उस वन के सभी विद्वानों के आश्रमों को छोड़कर शबरी की कुटिया को चुना और उसके दिए झूठे बेर खाए। शबरी की इच्छानुसार भगवान राम ने हृदय से ही शबरी को नवधा भक्ति का ज्ञान दिया जिससे उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ।
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तारा
तारा किष्किन्धा के वानर राजा बाली की पत्नी थी जिसे भगवान श्री राम ने अपने सखा व बाली के भाई सुग्रीव की सहायता करने के लिए मार दिया था। उसके पश्चात सुग्रीव को किष्किन्धा का नया राजा नियुक्त किया गया था। चूँकि बाली के समय तारा किष्किन्धा की महारानी थी लेकिन उसके मरने के पश्चात तारा का राज्य पर कोई अधिकार नही रह गया था।
तारा व किष्किन्धा के लोग वानर जाती से थे जहाँ स्त्री का पुनः विवाह हो सकता था। भगवान राम ने तारा की बुद्धिमता से प्रसन्न होकर उसे सुग्रीव की पत्नी घोषित किया व पुनः उन्हें किष्किन्धा की महारानी बनाया।
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मंदोदरी
मंदोदरी दशानन रावण की धर्मपत्नी थी। जब भगवान राम ने रावण का वध कर दिया तब मंदोदरी युद्धभूमि में आई और अपने पति व पुत्रों की मृत्यु को देखकर विचलित हो उठी। मंदोदरी दुष्ट रावण की पत्नी तो थी किंतु वह भगवान विष्णु की भी भक्त थी। उसने हमेशा रावण को सही मार्ग पर चलाने के लिए बहुत प्रयास किए थे व माता सीता का भी यथोचित आदर किया था।
भारतीय समाज में विधवा के पुनः विवाह की परंपरा नही थी व उसे सभी सांसारिक सुखों को त्याग कर एक विधवा की तरह जीवन व्यतीत करना होता था। किंतु भगवान श्रीराम ने विभीषण को लंका का महाराज घोषित करने के पश्चात उन्हें मंदोदरी से विवाह करने को भी कहा। भगवान राम के कहने पर विभीषण ने अपने भाई की विधवा पत्नी के साथ विवाह किया व इस तरह पुनः उन्हें लंका की महारानी का सम्मान प्राप्त हुआ।
इन्हीं कारणों से ही राम की महिमा (Ram Ki Mahima) का गुणगान किया जाता है। उन्होंने हर किसी का उद्धार किया है, फिर चाहे वे उनके शत्रु थे या मित्र। तभी आज तक श्रीराम का नाम और उनकी शिक्षा प्रासंगिक है।
राम की महिमा से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: राम नाम की महिमा क्या है?
उत्तर: राम नाम की महिमा यही है कि यदि हम लगातार राम नाम का जाप कर लेंगे तो भवसागर को पार कर जाएंगे।
प्रश्न: राम के नाम में कितनी शक्ति है?
उत्तर: राम के नाम में इतनी शक्ति है कि इसका लगातार जाप मनुष्य को मोक्ष प्राप्त करवा सकता है। राम का नाम लेना इस पृथ्वी में सबसे ज्यादा शक्तिशाली माना जाता है।
प्रश्न: राम नाम इतना शक्तिशाली क्यों है?
उत्तर: राम नाम अपने नाम के कारण नहीं अपितु भगवान श्रीराम के कारण शक्तिशाली है। इसलिए जो कोई भी राम नाम लेता है, उसका उद्धार हो जाता है।
प्रश्न: राम का नाम लेने से क्या फल मिलता है?
उत्तर: राम का नाम लेने से मनुष्य को आत्मिक शांति का अनुभव होता है और परेशानियों का हल निकलने लगता है।
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