जटायु कौन था? जाने रामायण के जटायु की कहानी

जटायु कौन था (Jatayu Kaun Tha)

रामायण में जटायु कौन था (Jatayu Kaun Tha)? हम सभी श्रीराम के वनवास काल के दौरान जटायु के बारे में सुनते हैं कि कैसे उसने माता सीता को बचाने के लिए रावण के साथ युद्ध में अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। किंतु क्या आप जानते हैं कि जटायु पहले दशरथ के भी मित्र रह चुके थे और यह बात उन्होंने राम जी से भी कही थी।

आज के इस लेख में हम आपके साथ जटायु की कहानी (Jatayu Kon Tha) ही साझा करने वाले हैं इसमें आपको जटायु के पुत्र का नाम, जटायु व दशरथ की मित्रता, राम जटायु मिलन, जटायु रावण का युद्ध, जटायु राम संवाद व जटायु का अंतिम संस्कार इत्यादि घटनाओं को सिलसिलेवार पढ़ने को मिलेगा

Jatayu Kaun Tha | जटायु कौन था?

सम्पाती व जटायु दोनों गिद्ध थे जो महर्षि कश्यप के वंशज थे। महर्षि कश्यप के अपनी पत्नी विनीता से दो पुत्र हुए जिनके नाम थे गरुड़ व अरुण। इसमें से गरुड़ देवता भगवान विष्णु की सेवा में चले गए थे व अरुण सूर्य देव की सेवा में। अरुण सूर्य देव के सारथि बने। अरुण देव का विवाह श्येनी से हुआ। इन्हीं से उनके दो पुत्र हुए जिनके नाम सम्पाती व जटायु थे। दोनों में से सम्पाती बड़े थे जिन्हें पक्षीराज या गिद्दों का राजा भी कहा जाता है।

एक दिन दोनों भाइयों ने कैलाश पर्वत के ऋषियों से शर्त लगाई कि वे अपने पराक्रम से सूर्य के आभामंडल में जाकर सूर्य को छूकर वापस आ जाएंगे। यह सोचकर दोनों भाइयों ने सूर्य की ओर उड़ान भरी किंतु रास्ते में सूर्य के प्रकोप से दोनों व्याकुल हो उठे। पहले तो उन्हें इसका आभास नहीं हुआ लेकिन धीरे-धीरे सूर्य की गर्मी बहुत ज्यादा बढ़ गई थी।

यह देखकर सम्पाती ने अपने बड़े-बड़े पंखों से छोटे भाई जटायु को ढक लिया। इस कारण सम्पाती के पंख जल गए। जटायु मुर्छित होकर पंचवटी के वनों में गिरे। वहीं सम्पाती दक्षिण में समुंद्र किनारे गिरे जहाँ चंद्रमा/ निशाकर नामक एक ऋषि ने उनका उपचार किया। बस यहीं से जटायु की कहानी (Jatayu Kon Tha) शुरू होती है जहाँ उनका मिलन श्रीराम से हुआ था

  • जटायु के पुत्र का नाम

बहुत लोग यह भी जानना चाहते हैं कि जटायु के पुत्र का क्या नाम था। तो यहाँ हम आपको बता दें कि रामायण सहित किसी अन्य कथा में जटायु के पुत्र या उनके विवाह का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। ऐसे में जटायु ने किसके साथ विवाह किया था या किया भी था या नहीं, किया था तो उससे उन्हें कितने पुत्र व पुत्री प्राप्त हुए और उनके क्या नाम थे, यह कहा नहीं जा सकता है।

  • जटायु व दशरथ की मित्रता

जब राजा दशरथ इंद्र की सहायता के लिए देवासुर संग्राम में भाग लेने आए तब उनका सामना शंबरासुर नामक दैत्य से हुआ था। उस युद्ध में जटायु ने भी राजा दशरथ की सहायता की थी। एक पक्षी के द्वारा अपने प्रति इतनी कर्तव्यनिष्ठा व उसकी महानता को देखकर राजा दशरथ अत्यंत प्रसन्न हुए थे व उन्हें अपना मित्र बनाया था। तब से राजा दशरथ व जटायु के बीच मित्रता हो गई थी।

  • राम जटायु मिलन

जब भगवान श्रीराम को 14 वर्षों का वनवास हुआ था तब अपने वनवास के अंतिम पड़ाव में वे पंचवटी के वनों में पहुँचे थे। वहीं पर उनका मिलन जटायु से हुआ था। जटायु अपने मित्र राजा दशरथ की मृत्यु का समाचार सुनकर दुखी हुए व उन्हें अपना परिचय दिया। जटायु ने ही भगवान राम, लक्ष्मण व माता सीता को वहाँ कुटिया बनाने के लिए उचित स्थान बताया व साथ ही उनकी रक्षा करने का वचन भी दिया।

  • जटायु रावण का युद्ध

जब रावण ने छल से अपने मामा मारीच की सहायता से भगवान राम व लक्ष्मण को कुटिया से दूर भेज दिया तब माता सीता को कुटिया में अकेले पाकर उसने उनका अपहरण कर लिया। वह माता सीता को अपने पुष्पक विमान से लंका लेकर जा रहा था लेकिन माता सीता की सुरक्षा में तैनात जटायु ने उसे देख लिया। यह देखकर जटायु व रावण के बीच आकाश में ही भीषण युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने जटायु के पंख काट डाले व जटायु मरणासन्न की अवस्था में भूमि पर गिर पड़े।

  • जटायु राम संवाद

जब भगवान श्रीराम व लक्ष्मण माता सीता की खोज में इधर-उधर भटक रहे थे तब उन्हें करहाते हुए जटायु दिखाई पड़े। जटायु ने उन्हें रावण के द्वारा माता सीता के अपहरण की पूरी बात बताई। जटायु ने यह भी बताया कि रावण माता सीता को किस दिशा में लेकर आगे बढ़ा है। साथ ही उसने आगे जाकर माता शबरी से मिलने को कहा और बताया कि शबरी के माध्यम से उन्हें महाराज सुग्रीव का पता मिलेगा। इतना कहकर जटायु ने प्राण त्याग दिए।

  • जटायु का अंतिम संस्कार

जटायु की मृत्यु के बाद भगवान राम ने एक पुत्र की भाँति उनका पूरे विधि विधान से अंतिम संस्कार किया। जटायु का अंतिम संस्कार जिस जगह हुआ था, वह आज के समय में भक्तों के लिए पूजनीय स्थल है। यह भारत के केरल राज्य में स्थित है।

जटायु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: जटायु के पिता का नाम क्या है?

उत्तर: जटायु के पिता का नाम अरुण देव है अरुण देव महर्षि कश्यप के पुत्र व सूर्य देव के सारथि हैं।

प्रश्न: जटायु की माता का नाम क्या है?

उत्तर: जटायु की माता का नाम श्येनी है जो अरुण देव की पत्नी हैं।

प्रश्न: जटायु किसका बेटा था?

उत्तर: जटायु अरुण देवता व श्येनी माता का पुत्र था उसके बड़े भाई का नाम सम्पाती था

प्रश्न: मृत्यु के बाद जटायु का क्या हुआ?

उत्तर: जटायु भगवान श्रीराम की गोद में ही मृत्यु को प्राप्त हुए थे उसके बाद भगवान श्रीराम ने एक पुत्र की भाँति जटायु का अंतिम संस्कार किया था

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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