जब श्रीराम का समय समाप्त हो गया था तब उन्होंने जल समाधि ले ली थी जिसे राम जल समाधि (Ram Jal Samadhi) भी कहते हैं। जो भी इस पृथ्वी लोक पर जन्म लेता है फिर चाहे वे स्वयं ईश्वरीय अवतार ही क्यों ना हो या देवता पुत्र हो, एक ना एक दिन उसे मृत्यु की गोद में समाना ही होता है। तभी पृथ्वी लोक का दूसरा नाम मृत्यु लोक भी है क्योंकि मृत्यु ही अंतिम सत्य है।
ऐसे में भगवान श्रीराम का भी इस देह का त्याग का करना आवश्यक था। इसके लिए उन्होंने अयोध्या के निकट ही सरयू नदी में जल समाधि ले ली थी और पुनः अपने धाम वैकुण्ठ को चले गए थे। इसके साक्षी स्वयं भगवान ब्रह्मा, सभी देवतागण और पृथ्वीवासी बने थे। इतना ही नहीं, उनके साथ हजारों लोगों ने भी जल समाधि ले ली थी। ऐसे में आज हम आपको राम जी की जल समाधि (Shri Ram Jal Samadhi) का संपूर्ण विवरण देंगे।
Ram Jal Samadhi | भगवान राम जल समाधि
यह उस समय की बात है जब श्रीराम के सभी उत्तरदायित्व पूर्ण हो चुके थे। उन्होंने रावण का अंत कर दिया था तथा लव कुश को भी पुत्र रूप में अपना लिया था। अब लव कुश सहित श्रीराम के तीनों भाइयों के पुत्र भी इतने बड़े हो चुके थे कि वे अब राज सिंहासन संभाल सकते थे। इसलिए उन्होंने अपने दोनों पुत्रों लव व कुश सहित अपने भाइयों के पुत्रों को भी कहीं ना कहीं का राजा बनाया। इसके लिए नए नगर भी बसाए गए थे।
फिर जब उनकी मृत्यु का समय पास आने लगा तब भगवान ब्रह्मा के आदेश पर महाकाल को भेजा गया था। महाकाल ने श्रीराम को मृत्यु का समय पास होने की बात बताई। श्रीराम ने भी उनसे कहा कि अब वे जल्द ही जल समाधि ले लेंगे और विष्णु लोक पहुँच जाएँगे। अब श्रीराम ने जल समाधि लेने से पहले जो-जो कार्य किए, आइए उन पर एक नज़र डाल लेते हैं।
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कुश को अयोध्या का राजा बनाना
नियमानुसार राजा का सबसे बड़ा पुत्र ही राज सिंहासन का अगला उत्तराधिकारी होता है। श्रीराम का बड़ा पुत्र कुश था। इसलिए श्रीराम ने कुश को अयोध्या का अगला राजा नियुक्त कर दिया था ताकि उनके बाद अयोध्या की व्यवस्था सही से चलती रहे। उन्होंने अपने छोटे पुत्र लव को लवपुरी का राजा बनाया जो वर्तमान में लाहौर, पाकिस्तान के नाम से जानी जाती है। वहीं अपने भाइयों के पुत्रों में भी गांधार, कारुपद व मथुरा-विदिशा को बाँट दिया।
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लक्ष्मण को मृत्युदंड देना
श्रीराम ने सोची-समझी रणनीति के तहत लक्ष्मण का त्याग कर दिया था। लक्ष्मण के लिए श्रीराम द्वारा त्याग किया जाना उन्हें मृत्युदंड दिए जाने के ही समान था। इसलिए अपना त्याग होने के पश्चात लक्ष्मण ने सरयू नदी में जाकर जल समाधि ले ली थी। श्रीराम को अपनी जल समाधि लेने से पहले लक्ष्मण का त्याग इसलिए करना पड़ा था क्योंकि यदि लक्ष्मण उस समय तक जीवित होते तो वे श्रीराम को समाधि नहीं लेने देते। इस कारण श्रीराम ने पहले लक्ष्मण को हरिलोक भेजा और फिर वे स्वयं वहाँ गए।
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श्रीराम जलसमाधि की घोषणा करना
जब भगवान राम के जल समाधि (Shri Ram Jal Samadhi) लेने का दिन पास आने लगा तो उसकी सूचना भारत भूमि की चारों दिशाओं में प्रसारित करवा दी गई। यह सुनते ही अयोध्या सहित पूरे भारत में हाहाकार मच गया था। सारी प्रजा का रो-रोकर बुरा हाल था लेकिन नियति को कोई नहीं बदल सकता है। श्रीराम ने सभी को समझाया कि मृत्यु ही परम सत्य है और अब उनके लिए इस सत्य को अपनाने का समय आ गया है। प्रजा ने भी भारी मन से इसे स्वीकार कर लिया था।
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महर्षि वशिष्ठ का आशीर्वाद लेना
राम जल समाधि (Ram Jal Samadhi) लेने से पहले अपने राजगुरु महर्षि वशिष्ठ का आशीर्वाद लेने उनके आश्रम पहुँचे थे। वहाँ पहुँच कर उन्होंने अपने गुरु की चरण वंदना की और इस पृथ्वी लोक को छोड़ने के बारे में बताया। महर्षि वशिष्ठ ने भी भारी मन से उन्हें आशीर्वाद दिया। इसके बाद श्रीराम वहाँ से सरयू नदी की ओर प्रस्थान कर गए।
Shri Ram Jal Samadhi | राम जी की जल समाधि
भगवान श्रीराम के साथ अयोध्यावासी सहित भारत के कोने-कोने से असंख्य लोग वहाँ पहुँचे थे। इसी के साथ ही श्रीराम के दोनों भाई भरत व शत्रुघ्न, किष्किंधा नरेश सुग्रीव, लंकापति विभीषण, सभी देवतागण व स्वयं भगवान ब्रह्मा भी वहाँ उपस्थित थे। श्रीराम ने सभी को संयम रखने और उनकी जल समाधि में बाधा उत्पन्न नहीं करने का आदेश दिया। सभी ने श्रीराम का यह अंतिम आदेश माना और दुखी मन से इस परम सत्य को स्वीकार कर लिया।
इसके बाद श्रीराम ने सरयू नदी को प्रणाम किया और उनकी वंदना की। फिर श्रीराम धीरे-धीरे सरयू नदी में उतरते चले गए, जब तक कि उनके पैर जमीन से ऊपर ना हो जाए। इस तरह से श्रीराम ने सरयू नदी के जल में समाधि ले ली थी। आकाश मार्ग से यह सब दृश्य देख रहे भगवान ब्रह्मा ने श्रीराम से कहा कि अब उन्हें विष्णु रूप ले लेना चाहिए।
इतने में ही, सरयू नदी के अंदर से भगवान श्रीराम श्री हरि अवतार में बाहर निकले। इसे देखकर पृथ्वीवासी उनके नाम का जयकारा लगाने लगे। आकाश मार्ग से देवताओं के द्वारा पुष्प वर्षा की जाने लगी। गरुड़ देव उन्हें विष्णु लोक ले जाने के लिए वहाँ पहुँच गए। भगवान विष्णु अपने वाहन पर जाकर बैठ गए। इसके बाद उन्होंने क्या कुछ कहा और वहाँ क्या घटनाक्रम घटित हुआ, आइए उसके बारे में भी जान लेते हैं।
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भरत व शत्रुघ्न की मृत्यु
श्रीहरि ने भरत और शत्रुघ्न को अपने अंदर समा लिया जो उनके सुदर्शन चक्र तथा शंख के रूप थे। कहने का अर्थ यह हुआ कि भरत और शत्रुघ्न ने भी वहीं समाधि ले ली थी। इस तरह से दोनों की मृत्यु भी श्रीराम के साथ ही जल समाधि लेने से हो गई थी।
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महाराज विभीषण को संदेश
इसके बाद श्रीहरि ने महाराज विभीषण को कलियुग के अंत तक जीवित रहने का वरदान दिया। उन्होंने विभीषण को सदा प्रजा कल्याण हेतु कार्य करने के आदेश दिए। इसी के साथ ही उन्हें भगवान जगन्नाथ की पूजा करने को कहा।
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हनुमान को आदेश
हनुमान श्रीराम के अनन्य भक्त थे। उन्होंने हनुमान को भी कलियुग के अंत तक जीवित रहने, श्रीराम भक्तों की सेवा और रक्षा करने तथा विष्णु के अन्य अवतारों की सहायता करने का आदेश दिया।
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जामवंत का कार्य
जामवंत जी को श्रीराम ने द्वापर युग के अंत तक जीवित रहने को कहा। जामवंत जी का जन्म सतयुग में ही हो गया था। द्वापर युग में श्रीकृष्ण से मिलने के बाद उन्होंने अपनी देह का त्याग कर दिया था।
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ब्रह्मा जी से अनुरोध
इसके पश्चात उन्होंने भगवान ब्रह्मा से कहा कि यहाँ जितने लोग आए हैं वह भी मेरे साथ समाधि लेना चाहते हैं इसलिए उन्हें उत्तम लोक प्रदान करें। इस पर भगवान ब्रह्मा ने कहा कि जो भी आपका सच्चा भक्त है तथा इस सरयू नदी में समाधि लेगा उन्हें संतानक लोक में स्थान मिलेगा। यह लोक स्वर्ग लोक से ऊपर तथा ब्रह्म लोक के निकट है।
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श्रीराम के साथ अन्य का जल समाधि लेना
इसके बाद भगवान विष्णु गरुड़ पर बैठकर अपने धाम विष्णु लोक को चले गए। इसके पश्चात मंत्री आर्य सुमंत, राजा सुग्रीव तथा निषाद राज समाधि लेकर अपनी-अपनी देवयोनि में मिल गए। महाराज सुग्रीव अंगद को पहले ही शासन सौंप आए थे ताकि वे भी श्रीराम के साथ ही देहत्याग कर सकें। अंत में हजारों राम भक्तों ने एक-एक करके सरयू नदी में समाधि ले ली थी।
इस प्रकार श्रीराम ने अंत में अपना देहत्याग (Ram Jal Samadhi) कर दिया व सभी भक्तो के साथ अपने धाम को लौट गए। वहाँ माता लक्ष्मी (माता सीता) पहले से ही उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। श्रीराम के देहत्याग के बाद उनके पुत्रों लव व कुश ने अयोध्या का राज सिंहासन संभाला जबकि उनके भाई के पुत्रों ने अन्य राज्यों का।
राम जल समाधि से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: राम के मरने के बाद हनुमान का क्या हुआ?
उत्तर: श्रीराम के देह त्याग के पश्चात हनुमान जी रामभक्ति में ही लीन रहते थे। उन्हें श्रीराम ने यह आदेश दिया था कि उन्हें कलियुग के अंत तक रामभक्तों की सेवा और विष्णु के अन्य अवतारों की सहायता करनी है।
प्रश्न: राम के बाद हनुमान का क्या हुआ?
उत्तर: श्रीराम ने जल समाधि लेने से पहले हनुमान को यह आदेश दिया था कि उन्हें कलियुग के अंत तक जीवित रहकर श्रीहरि के अन्य अवतारों की सहायता करनी है।
प्रश्न: अंत में राम का क्या हुआ?
उत्तर: अंत में भगवान श्रीराम के द्वारा अयोध्या के निकट सरयू नदी में जल समाधि ले ली गई थी। इसके बाद वे पुनः अपने धाम विष्णु लोक को चले गए थे।
प्रश्न: क्या राम ने जल समाधि ली थी?
उत्तर: जी हाँ, भगवान श्री राम ने अयोध्या के निकट सरयू नदी में जल समाधि ली थी। उसके बाद वे अपने धाम वैकुण्ठ लोक को चले गए थे।
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