मां वैष्णो चालीसा हिंदी में – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

वैष्णो चालीसा (Vaishno Chalisa)

आज हम आपके साथ वैष्णो देवी चालीसा (Vaishno Devi Chalisa) का पाठ करेंगे। हर वर्ष लाखों लोग कटरा के वैष्णो माता मंदिर में माथा टेकने पहुँचते हैं। माता वैष्णो माँ आदिशक्ति का ही एक रूप हैं जो पहाड़ों पर स्थित हैं। उनके दर्शन करने के साथ ही ऊपर स्थित भैरव बाबा के दर्शन करने भी जरुरी होते हैं और उसके बाद ही वैष्णो देवी की यात्रा सफल मानी जाती है। ऐसे में यदि आप वैष्णो माता चालीसा का पाठ कर लेंगे तो यह और भी शुभ फल देने वाला होगा।

आज के इस लेख में हम आपके साथ वैष्णो चालीसा (Vaishno Chalisa) का पाठ करने जा रहे हैं। इसी के साथ आपको माता वैष्णो देवी चालीसा का हिंदी अर्थ भी पढ़ने को मिलेगा ताकि आप वैष्णो माता की चालीसा का संपूर्ण ज्ञान ले सकें। अंत में आपको मां वैष्णो चालीसा पढ़ने के फायदे और महत्व भी जानने को मिलेंगे। तो आइए सबसे पहले पढ़ते हैं मां वैष्णो देवी चालीसा।

Vaishno Devi Chalisa | वैष्णो देवी चालीसा

॥ दोहा ॥

गरुड़ वाहिनी वैष्णवी त्रिकूटा पर्वत धाम।
काली, लक्ष्मी, सरस्वती शक्ति तुम्हें प्रणाम

॥ चौपाई ॥

नमो: नमोः वैष्णो वरदानी, कलि काल में शुभ कल्याणी।

मणि पर्वत पर ज्योति तुम्हारी, पिण्डी रूप में ही अवतारी।

देवी देवता अंश दियो है, रत्नाकर घर जन्म लियो है।

करी तपस्या राम को पाऊँ, त्रेता की शक्ति कहलाऊँ।

कहा राम मणि पर्वत जाओ, कलियुग की देवी कहलाओ।

विष्णु रूप से कल्की बनकर, लूँगा शक्ति रूप बदलकर।

तब तक त्रिकुटा घाटी जाओ, गुफा अन्धेरी जाकर पाओ।

काली लक्ष्मी सरस्वती माँ, करेंगी पोषण पार्वती माँ।

ब्रह्मा, विष्णु, शंकर द्वारे, हनुमत, भैरों प्रहरी प्यारे।

रिद्धि, सिद्धि चंवर ढुलावें, कलियुग-वासी पूजन आवें।

पान सुपारी ध्वजा नारियल, चरणामृत चरणों का निर्मल।

दिया-फलित वर माँ मुस्काई, करन तपस्या-पर्वत आई।

कलि-काल की भड़की ज्वाला, इक दिन अपना रूप निकाला।

कन्या बन नगरोटा आई, योगी भैरों दिया दिखाई।

रूप देख सुन्दर ललचाया, पीछे-पीछे भागा आया।

कन्याओं के साथ मिली माँ, कौल कंदौली तभी चली माँ।

देवा माई दर्शन दीना, पवन रूप हो गई प्रवीणा।

नवरात्रों में लीला रचाई, भक्त श्रीधर के घर आई।

योगिन को भण्डारा दीना, सबने रुचिकर भोजन कीना।

मांस, मदिरा भैरों मांगी, रूप पवन कर इच्छा त्यागी।

बाण मार कर गंगा निकाली, पर्वत भागी हो मतवाली।

चरण रखे-आ एक शिला जब, चरण पादुका नाम पड़ा तब।

पीछे भैरों था बलकारी, छोटी गुफा में जाय पधारी।

नौ माह तक किया निवासा, चली फोड़कर किया प्रकाशा।

आद्या शक्ति-ब्रह्मा कुमारी, कहलाई माँ आद कुंवारी।

गुफा द्वार पहुंची मुस्काई, लांगुर वीर ने आज्ञा पाई।

भागा भागा भैरों आया, रक्षा हित निज शस्त्र चलाया।

पड़ा शीश जा पर्वत ऊपर, किया क्षमा जा दिया उसे वर।

अपने संग में पुजवाऊंगी, भैरों घाटी बनवाऊंगी।

पहले मेरा दर्शन होगा, पीछे तेरा सुमरन होगा।

बैठ गई माँ पिण्डी होकर, चरणों में बहता जल झर-झर।

चौंसठ योगिनी भैरों बरवन, सप्तऋषि आ करते सुमरन।

घंटा ध्वनि पर्वत पर बाजे, गुफा निराली सुन्दर लागे।

भक्त श्रीधर पूजन कीना, भक्ति सेवा का वर लीना।

सेवक ध्यानू तुमको ध्याया, ध्वजा व चोला आन चढ़ाया।

सिंह सदा-दर-पहरा देता, पंजा शेर का दुःख हर लेता।

जम्बू-दीप महाराज मनाया, सर सोने का छत्र चढ़ाया।

हीरे की मूरत संग प्यारी, जगे अखंड इक जोत तुम्हारी।

आश्विन-चैत्र-नवराते जाऊँ, पिण्डी रानी दर्शन पाऊँ।

सेवक शर्मा शरण तिहारी, हरो वैष्णों विपत हमारी।

॥ दोहा ॥

कलियुग में महिमा तेरी, है माँ अपरम्पार।
धर्म की हानि हो रही, प्रगट हो अवतार

Vaishno Chalisa | वैष्णो चालीसा – अर्थ सहित

॥ दोहा ॥

गरुड़ वाहिनी वैष्णवी त्रिकूटा पर्वत धाम।
काली, लक्ष्मी, सरस्वती शक्ति तुम्हें प्रणाम॥

हे वैष्णवी माता!! आपका वाहन गरुड़ है और आप त्रिकूट पर्वत पर निवास करती हो। आप माँ काली, लक्ष्मी व सरस्वती का सम्मिलित रूप हो और आपके इस रूप को हम सभी का प्रणाम है।

॥ चौपाई ॥

नमो: नमोः वैष्णो वरदानी, कलि काल में शुभ कल्याणी।

मणि पर्वत पर ज्योति तुम्हारी, पिण्डी रूप में ही अवतारी।

देवी देवता अंश दियो है, रत्नाकर घर जन्म लियो है।

करी तपस्या राम को पाऊँ, त्रेता की शक्ति कहलाऊँ।

हम सभी को वरदान देने वाली माँ वैष्णो!! आपको हमारा नमन है। इस कलियुग में आप सभी का कल्याण करने वाली हो। मणि पर्वत पर आपकी ज्योत प्रज्ज्वलित होती है और वहां आपने पिण्डी रूप में अवतार लिया हुआ है। आपने रत्नाकर के घर में देवी-देवताओं के अंश के रूप में जन्म लिया है। आपने श्रीराम को अपने पति रूप में पाने के लिए त्रेतायुग में कठिन तपस्या की थी।

कहा राम मणि पर्वत जाओ, कलियुग की देवी कहलाओ।

विष्णु रूप से कल्की बनकर, लूँगा शक्ति रूप बदलकर।

तब तक त्रिकुटा घाटी जाओ, गुफा अन्धेरी जाकर पाओ।

काली लक्ष्मी सरस्वती माँ, करेंगी पोषण पार्वती माँ।

श्रीराम माता सीता से विवाहित थे और एक पत्नी के वचन से बंधे हुए थे। इस कारण उन्होंने आपको मणि पर्वत पर जाने को कहा और आगे चल कर कलियुग की देवी बनने का आशीर्वाद दिया। श्रीराम ने आपसे कहा कि वे कलियुग में विष्णु के कल्कि अवतार के रूप में जन्म लेंगे। तब तक आपको त्रिकूट पर्वत की अन्धेरी गुफा में निवास करना होगा। स्वयं माँ काली, लक्ष्मी व सरस्वती का रूप वहां होगा और आपका भरण-पोषण माँ पार्वती किया करेंगी।

ब्रह्मा, विष्णु, शंकर द्वारे, हनुमत, भैरों प्रहरी प्यारे।

रिद्धि, सिद्धि चंवर ढुलावें, कलियुग-वासी पूजन आवें।

पान सुपारी ध्वजा नारियल, चरणामृत चरणों का निर्मल।

दिया-फलित वर माँ मुस्काई, करन तपस्या-पर्वत आई।

आपके द्वार पर तो स्वयं भगवान ब्रह्मा, विष्णु व शंकर का निवास होता है तो वहीं हनुमान व भैरों बाबा आपकी रक्षा में खड़े रहेंगे। रिद्धि व सिद्धि आपको चंवर करेंगी तो कलियुग में मनुष्य आपकी पूजा करेंगे। वे आपको पान, सुपारी, ध्वजा व नारियल चढ़ाएंगे और आपके चरणों से निकला जल अमृत कहलायेगा। यह वरदान पाकर माँ वैष्णो बहुत प्रसन्न हो गयी और तपस्या करने के लिए त्रिकूट पर्वत आ गयी।

कलि-काल की भड़की ज्वाला, इक दिन अपना रूप निकाला।

कन्या बन नगरोटा आई, योगी भैरों दिया दिखाई।

रूप देख सुन्दर ललचाया, पीछे-पीछे भागा आया।

कन्याओं के साथ मिली माँ, कौल कंदौली तभी चली माँ।

तब कलियुग की शुरुआत हुई और माँ ने वैष्णो धाम में अपना रूप प्रकट किया। वे एक कन्या का रूप धारण कई नगर में आयी और भैरों बाबा पर अपनी दया दिखायी। भैरों माँ वैष्णो का कन्या रूप देखकर ललचा गया था और वह उसे पाने उनके पीछे-पीछे भागा था। यह देखकर माँ अन्य कन्याओं के साथ मिल गयी थी और कन्दौली चली गयी थी।

देवा माई दर्शन दीना, पवन रूप हो गई प्रवीणा।

नवरात्रों में लीला रचाई, भक्त श्रीधर के घर आई।

योगिन को भण्डारा दीना, सबने रुचिकर भोजन कीना।

मांस, मदिरा भैरों मांगी, रूप पवन कर इच्छा त्यागी।

भैरव से बचने के लिए माँ वैष्णो ने वायु का रूप धारण कर लिया था और पवन वेग से उड़ गयी थी। यह कथा नवरात्र के समय की है जब माँ अपने एक भक्त श्रीधर के घर पहुंची थी। माँ के आदेश पर श्रीधर ने सभी को अपने घर भंडारे पर बुलाया था और माँ ने अपनी कृपा से सभी को भोजन करवाया था। उस भंडारे में पहुंचे भैरों ने माँ से मांस व मदिरा माँग लिया जिसके लिए माँ ने मना कर दिया। माँ वहां से वायु का रूप धारण कर चली गयी।

बाण मार कर गंगा निकाली, पर्वत भागी हो मतवाली।

चरण रखे-आ एक शिला जब, चरण पादुका नाम पड़ा तब।

पीछे भैरों था बलकारी, छोटी गुफा में जाय पधारी।

नौ माह तक किया निवासा, चली फोड़कर किया प्रकाशा।

माँ ने अपनी शक्ति से त्रिकूट पर्वत पर बाण चलाकर वहां से गंगा की धारा निकाल दी जिससे वह पर्वत भी धन्य हो गया। आपने जब उस पर्वत की एक शिला पर अपने चरण रखे तो उसका नाम चरण पादुका पड़ गया। आपको पाने के लिए पीछे-पीछे भैरों भी त्रिकूट पर्वत पर आ गया था तब आपने एक छोटी गुफा में प्रवेश किया। आपने उस गुफा में नौ महीने तक वास किया और फिर उसके पीछे से रास्ता बना कर निकल गयी।

आद्या शक्ति-ब्रह्मा कुमारी, कहलाई माँ आद कुंवारी।

गुफा द्वार पहुंची मुस्काई, लांगुर वीर ने आज्ञा पाई।

भागा भागा भैरों आया, रक्षा हित निज शस्त्र चलाया।

पड़ा शीश जा पर्वत ऊपर, किया क्षमा जा दिया उसे वर।

आप ही माँ आदिशक्ति व ब्रह्म का रूप हो और आपका एक नाम आद कुंवारी भी है। आप भैरों से बच कर गुफा के अंदर प्रवेश कर गयी और हनुमान को रक्षा करने के लिए कहा। हनुमान ने भैरों के संग युद्ध किया लेकिन वह हारा नहीं। तब आपने अपना काली का रूप धरकर भैरों का शीश धड़ से अलग कर दिया जो उसके ऊपर के पर्वत पर जाकर गिरा। फिर आपने भैरों के क्षमा मांगने पर उसे क्षमा कर दिया।

अपने संग में पुजवाऊंगी, भैरों घाटी बनवाऊंगी।

पहले मेरा दर्शन होगा, पीछे तेरा सुमरन होगा।

बैठ गई माँ पिण्डी होकर, चरणों में बहता जल झर-झर।

चौंसठ योगिनी भैरों बरवन, सप्तऋषि आ करते सुमरन।

आपने भैरों से कहा कि आपकी पूजा के साथ ही भैरों की भी पूजा होगी और उसके लिए वे भैरों घाटी भी बनवाएंगी। पहले वैष्णो माता के दर्शन होंगे और उसके बाद भैरों बाबा के दर्शन करने होंगे। इसके बाद माँ वहां पर पिण्डी रूप में बैठ गयी जिनके चरणों से बाणगंगा निकल रही थी। चौंसठ योगिनियाँ, भैरों, सप्तऋषि भी आपके दर्शन करने के लिए इस गुफा में आते हैं।

घंटा ध्वनि पर्वत पर बाजे, गुफा निराली सुन्दर लागे।

भक्त श्रीधर पूजन कीना, भक्ति सेवा का वर लीना।

सेवक ध्यानू तुमको ध्याया, ध्वजा व चोला आन चढ़ाया।

सिंह सदा-दर-पहरा देता, पंजा शेर का दुःख हर लेता।

त्रिकूट पर्वत पर आपका ही घंटा बजता है और आपकी गुफा बहुत ही सुन्दर लगती है। भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर आपने उसको वरदान दिया। हम सभी आपके सेवक आपका ही ध्यान करते हैं और आपको ध्वजा व चोला चढ़ाते हैं। आपके द्वार पर सिंह आपकी रखवाली करता है और उसके पंजे से ही हमारे दुःख दूर हो जाते हैं।

जम्बू-दीप महाराज मनाया, सर सोने का छत्र चढ़ाया।

हीरे की मूरत संग प्यारी, जगे अखंड इक जोत तुम्हारी।

आश्विन-चैत्र-नवराते जाऊँ, पिण्डी रानी दर्शन पाऊँ।

सेवक शर्मा शरण तिहारी, हरो वैष्णों विपत हमारी।

जम्बू द्वीप के महाराज ने आपके यहाँ सोने का छत्र चढ़ाया था। आपकी मूरत हीरे से भी ज्यादा प्यारी है और आपकी ज्योत हमेशा जलती रहती है। हम सभी आश्विन चैत्र मास के नवरात्र में आपके दर्शन करने हेतु त्रिकूट पर्वत पर आते हैं। शर्मा नाम का यह सेवक आपकी शरण में आया है और अब आप इसकी हर विपत्ति दूर कर दीजिये।

॥ दोहा ॥

कलियुग में महिमा तेरी, है माँ अपरम्पार।
धर्म की हानि हो रही, प्रगट हो अवतार॥

कलियुग में आप ही परम देवी हैं और आपकी महिमा सबसे ऊपर है। इस समयकाल में धर्म को बहुत क्षति हो रही है और अधर्म बढ़ता ही जा रहा है, इसलिए आप अवतार लेकर हम सभी का भला कीजिये।

वैष्णो चालीसा का महत्व

अभी तक आपने वैष्णो देवी चालीसा पढ़ ली है और साथ ही उसका अर्थ भी जान लिया है। तो वैष्णो चालीसा के माध्यम से भक्तों को वैष्णो माता के जीवन, कर्मों, गुणों इत्यादि के बारे में बताया जाता है। साथ ही वैष्णो माता की पूजा करने से हमें क्या कुछ लाभ मिलता है और क्यों हमें उनकी आराधना करनी चाहिए, इसके बारे में पता चलता है। तो यही तो वैष्णो चालीसा का महत्व होता है।

वैष्णो चालीसा में माता वैष्णो के जीवन के बारे में संपूर्ण रूप से बताया गया है। वैष्णो चालीसा को पढ़ने से हम माता वैष्णो देवी के बारे में तो जानते ही हैं, साथ ही वैष्णो माता की कृपा भी हम पर बरसती है। वैष्णो चालीसा का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि माँ वैष्णो माँ आदिशक्ति का ही एक रूप हैं जो भगवान विष्णु को प्रिय हैं। ऐसे में वैष्णो चालीसा का महत्व किसी से भी छुपा नहीं है।

वैष्णो देवी चालीसा के फायदे

यह तो आप जान ही गए हैं कि माँ वैष्णो ही माँ आदिशक्ति हैं और वही हम सभी की जननी हैं। उनके द्वारा ही इस सृष्टि की रचना की गयी है और मातारानी का वास हर जगह है। ऐसे में यदि हम अपनी जननी अर्थात माँ वैष्णो देवी की चालीसा का पाठ करते हैं तो उनकी कृपा दृष्टि अवश्य ही हम पर होती है। वैष्णो चालीसा के निरंतर पाठ से हमारे मन में चल रहा द्वंद्व व तनाव दूर हो जाता है और हम आंतरिक शांति का अनुभव करते हैं।

इसी के साथ ही हम अपने शत्रुओं पर विजय पा सकते हैं, सभी तरह के बिगड़े हुए कामो को बना सकते हैं, घर में सुख-समृद्धि ला सकते हैं तथा वह सब कुछ पा सकते हैं जिसकी कामना हम करते हैं। वैष्णो माता चालीसा का पाठ करने से बहुत लाभ देखने को मिलते हैं जो किसी भी मनुष्य को इस विश्व का सबसे सुखी मनुष्य बना सकते हैं। इसलिए आपको भी प्रतिदिन वैष्णो देवी चालीसा का पाठ करना चाहिए।

निष्कर्ष

आज के इस लेख के माध्यम से आपने वैष्णो देवी चालीसा हिंदी में अर्थ सहित (Vaishno Devi Chalisa) पढ़ ली है। साथ ही आपने वैष्णो चालीसा के फायदे और महत्व के बारे में भी जान लिया है। यदि आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।

वैष्णो चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: वैष्णो देवी का मंत्र क्या है?

उत्तर: ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा। बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति। दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।

प्रश्न: कटरा से वैष्णो देवी की चढ़ाई कितने किलोमीटर है?

उत्तर: कटरा से वैष्णो देवी की चढ़ाई 13 किलोमीटर है जिसमे लगभग 3200 के आसपास सीढ़ियाँ है लेकिन आप घुमावदार रास्ते से भी आगे बढ़ सकते हैं।

प्रश्न: वैष्णो देवी की चढ़ाई में कितने घंटे लगते हैं?

उत्तर: वैष्णो देवी की चढ़ाई सामान्य तौर पर 3 से 5 घंटो में पूरी हो जाती है किन्तु यह आप पर निर्भर करता है कि आप कौन सा मार्ग ले रहे हैं और आपकी शारीरिक क्षमता कैसी है।

प्रश्न: वैष्णो मां किसकी बेटी है?

उत्तर: मान्यता है कि दक्षिण भारत के रत्नाकर के घर में माँ वैष्णो देवी का जन्म हुआ था।

प्रश्न: वैष्णो देवी का असली नाम क्या है?

उत्तर: वैष्णो देवी का असली नाम त्रिकुटा था किन्तु बाद में भगवान विष्णु के वंश से जन्म लेने के कारण उनका नाम वैष्णवी और फिर वैष्णो पड़ गया।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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