चालीसा

श्री हनुमान चालीसा हिंदी में । Shri Hanuman Chalisa In Hindi

भक्त हनुमान को समर्पित हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा पंद्रहवीं सदी में की गयी थी। हनुमान चालीसा में कुल 3 दोहों समेत चालीस चौपाईयां आती है। इसमें प्रथम 10 चौपाईयां हनुमान जी की वीरता, फिर 10 चौपाईयां हनुमान जी की श्रीराम के प्रति भक्ति भावना व अंतिम 20 चौपाईयां हनुमान जी की अपने भक्तों के ऊपर कृपा रूप में समर्पित है।

अब हनुमान चालीसा तो आपको बहुत जगह पढ़ने को मिल जाएगी और ज्यादातर भक्तों को तो यह मूजबानी याद भी होती है, ऐसे में आज के इस लेख में आपको क्या अलग मिलेगा? दरअसल आज हम आपके साथ हनुमान चालीसा हिंदी में अर्थ सहित (Hanuman Chalisa In Hindi) और फिर साथ ही उसका भावार्थ भी समझायेंगे। अंत में हनुमान चालीसा का महत्व व लाभ भी आपको यहीं पर जानने को मिलेगा। तो आइये सबसे पहले पढ़ते हैं श्री हनुमान चालीसा (Shri Hanuman Chalisa)

Hanuman Chalisa | हनुमान चालीसा

॥ दोहा ॥

श्री गुरु चरन सरोज रज,
निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु,
जो दायकु फल चारि॥

बुद्धिहीन तनु जानिके,
सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं,
हरहु कलेश
 विकार॥

॥ चौपाई ॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥

रामदूत अतुलित बलधामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥

महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥

कंचन बरन विराज सुवेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा॥

हाथ ब्रज औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै॥

शंकर सुवन केसरी नन्दन।
तेज प्रताप महाजग वन्दन॥

विद्यावान गुणी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
विकट रूप धरि लंक जरावा॥

भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचन्द्र के काज संवारे॥

लाय संजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥

रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥

सहस बदन तुम्हरो यश गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥

यम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥

तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।
लकेंश्वर भए सब जग जाना॥

जुग सहस्त्र योजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गए अचरज नाहीं॥

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक ते कांपै॥

भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महावीर जब नाम सुनावै॥

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥

संकट ते हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा॥

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै॥

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥

साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥

अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता।
अस वर दीन जानकी माता॥

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥

तुम्हरे भजन राम को पावैं।
जनम जनम के दुःख बिसरावै॥

अन्त काल रघुवर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥

और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाई॥

जो शत बार पाठ कर कोई।
छूटहिं बंदि महासुख होई॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥

॥ दोहा ॥

पवनतनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित,
हृदय बसहु सुर भूप॥

वैसे तो हर सनातनी को हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) कंठस्थ होती है लेकिन फिर भी इसे सामने रखकर पढ़ना उचित समझा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे ध्यान भटकने व किसी प्रकार की त्रुटी होने की संभावना बहुत कम होती है।

Hanuman Chalisa In Hindi | हनुमान चालीसा हिंदी में अर्थ सहित

ऊपर आपने हनुमान चालीसा का पाठ तो कर लिया है लेकिन इसके साथ-साथ हनुमान चालीसा का अर्थ व भावार्थ भी जान लिया जाए तो हमें कई तरह के लाभ देखने को मिलते हैं। यही कारण है कि अब हम आपके साथ हनुमान चालीसा लिरिक्स इन हिंदी में (Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi) भी सांझा करेंगे ताकि आप हनुमान चालीसा अर्थ व भावार्थ सहित जान सकें।

॥ दोहा ॥

श्री गुरु चरन सरोज रज,
निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु,
जो दायकु फल चारि॥

अर्थ: श्री गुरु के चरणों की धूल से मैं अपने मन को पवित्र कर भगवान रघुबीर के गुणों का वर्णन करता हूँ गुण जो हमे चारों फल धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष प्रदान करते हैं।

भावार्थ: श्रीराम इतने पवित्र हैं कि मात्र उनके चरणों की धूल से ही हमारा मन पवित्र हो जाता है अर्थात उनका स्मरण करने से ही हमारा मन शांत व स्वच्छ विचारों वाला हो जाता है। श्रीराम की आराधना करने से हमे चारों फलों की प्राप्ति होती है व जीवन सफल हो जाता है।

बुद्धिहीन तनु जानिके,
सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं,
हरहु कलेश विकार॥

अर्थ: मैं अपने आप को बुद्धिहीन जानकर आपका ध्यान करता हूँ। आप मुझे शक्ति, बुद्धि व ज्ञान दें तथा मेरे सभी दुखों व कष्टों का निवारण करें।

भावार्थ: भक्त हनुमान इतने बुद्धिमान हैं कि उनके सामने हमारी बुद्धि कुछ भी नहीं। इसलिए उनके सामने नतमस्तक होकर प्रणाम करें व प्रार्थना करें कि उनके द्वारा हमें शक्ति व विद्या मिले। साथ ही हनुमान जी को संकटों का निवारण करने के लिए भी जाना जाता है। इसलिए उनसे प्रार्थना की गयी है कि वे हमारे भी संकट दूर कर दें या उनका उपाय बताएं।

॥ चौपाई ॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥

अर्थ: हे हनुमान, आपकी जय हो, आप ज्ञान व गुणों के सागर हैं। हे हनुमान, आपकी जय हो, आपकी कीर्ति व यश तीनों लोकों (स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक व पाताल लोक) में व्याप्त है।

भावार्थ: हनुमान चालीसा की इस चौपाई का तात्पर्य हनुमान जी के गुणों व कीर्ति का बखान करना है। हनुमान जी सभी वेदों व उपनिषदों में निपुण हैं तथा उनके गुण भी सभी से महान हैं। इसलिए ज्ञान व गुणों के सागर से अर्थ उनके असीमित गुणों के बारे में है। साथ ही अपने इन्हीं गुणों व ज्ञान के कारण उनकी कीर्ति ना केवल पृथ्वी लोक पर अपितु स्वर्ग में देवताओं व पाताल में राक्षसों के बीच भी हनुमान जी को सबसे अधिक लोकप्रिय बनाती है।

रामदूत अतुलित बलधामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥

अर्थ: वे वीर महाबली हनुमान, श्रीराम के दूत, शक्ति में सबसे अधिक बलवान, माँ अंजनि के पुत्र व पवन पुत्र के नामों से जाने जाते हैं।

भावार्थ: इस चौपाई में हनुमान जी के विभिन्न नामो के बारे में बताकर उनका परिचय दिया गया है। रामायण में कई बार उन्होंने श्रीराम के दूत की भूमिका निभाई है। इसलिए उन्हें श्रीराम का दूत कहकर संबोधित किया गया है। साथ ही समय-समय पर उन्होंने अपनी शक्ति का परिचय भी दिया है। इसलिए उन्हें सबसे शक्तिशाली कहकर संबोधित किया गया है।

महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥

अर्थ: महाबली, बजरंग बली, हनुमान अतिपराक्रमी शक्तिशाली हैं। वे ख़राब बुद्धि का नाश कर अच्छी बुद्धि का विकास करते हैं।

भावार्थ: कहने का तात्पर्य हुआ कि भक्त हनुमान का स्मरण करने और उनके बताए आदर्शों पर चलने से व्यक्ति की बुद्धि अच्छी बनती है। हमारे दिमाग में जो नकारात्मक या अनावश्यक विचार आ रहे होते हैं, वह दूर होते हैं और उनकी जगह सकारात्मक व लाभकारी विचारों का समावेश होता है।

कंचन बरन विराज सुवेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा॥

अर्थ: भक्त हनुमान का वर्ण सुनहरा, वस्त्र सुंदर, कानों में कुण्डल व बाल घुंघराले हैं।

भावार्थ: इसमें भक्त हनुमान की वेशभूषा व रंग-रूप का बखान किया गया (Hanuman Chalisa Lyrics In Hindi) है। उनका रंग कैसा है, वे किस प्रकार के वस्त्र पहनते हैं, उनके कानों में क्या है और बाल कैसे हैं, इत्यादि का पता इस चौपाई के माध्यम से चलता है।

हाथ ब्रज औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै॥

अर्थ: भक्त हनुमान के हाथों में गदा व ध्वज है तो वहीं कंधे पर मूँज का जनेऊ है।

भावार्थ: इसमें भक्त हनुमान ने क्या धारण किया हुआ है, उसके बारे में बताया गया है। वो शत्रुओं का नाश करने के लिए हमेशा अपने पास गदा रखते हैं जिससे उन्होंने राक्षस राजा रावण की सेना का भी संहार किया था। साथ ही दूसरे हाथ में धर्म ध्वजा रहती है। कंधे पर यज्ञोपवित संस्कार के बाद पहनाए जाने वाला जनेऊ भी धारण किए हुए रहते हैं।

शंकर सुवन केसरी नन्दन।
तेज प्रताप महाजग वन्दन॥

अर्थ: हे भगवान शिव के अंशावतार व केसरी के पुत्र, आपके यश और कीर्ति की पूरे विश्व में वंदना होती है।

भावार्थ: इसमें हनुमान को भगवान शिव का अंशावतार बताया गया है। साथ ही उनका केसरी पुत्र होने का परिचय भी दिया गया है। भक्त हनुमान की शक्ति का तेज तीनों लोकों में व्यापत है जो इस चौपाई के माध्यम से बताया गया है।

विद्यावान गुणी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥

अर्थ: भक्त हनुमान सभी विद्याओं के धनी हैं और साथ में अत्यधिक बुद्धिमान व चतुर भी हैं। वे हमेशा अपने स्वामी श्रीराम की सेवा करने को सबसे आगे व व्याकुल रहते हैं।

भावार्थ: इस चौपाई के माध्यम से भक्त हनुमान के ज्ञान के साथ-साथ उनकी बुद्धि के बारे में भी बताया गया है जिसका परिचय उन्होंने समय-समय पर दिया है। साथ ही रामायण देखने पर हमे पता चलता है कि चाहे श्रीराम पर कोई संकट आया हो या उनकी निःस्वार्थ भाव से सेवा करनी हो, भक्त हनुमान उसमे हमेशा व्याकुल व तत्पर दिखाई दिए।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥

अर्थ: भक्त हनुमान को सदैव श्रीराम की कथा सुनने में अति आनंद की अनुभूति होती है। उनके हृदय में सदैव श्रीराम, माता सीता लक्ष्मण का वास रहता है।

भावार्थ: कहने का तात्पर्य यह हुआ कि चाहे यह उस समय की बात हो या आज की, जहां भी श्रीराम की कथा हो रही होती है वहां पर सदैव ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हनुमान जी का भी वास रहता है क्योंकि उन्हें श्रीराम की कथा सबसे अधिक प्रिय है। साथ ही श्रीराम राज्याभिषेक के समय माता सीता के आशीर्वाद से भक्त हनुमान के हृदय में हमेशा राम, लखन व सीता का वास रहता है।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
विकट रूप धरि लंक जरावा॥

अर्थ: भक्त हनुमान ने एक ओर माता सीता को अपना बहुत ही छोटा रूप दिखाया था तो वहीं दूसरी ओर भयंकर व विनाशकारी रूप में लंका को जला दिया था।

भावार्थ: भक्त हनुमान परिस्थिति के अनुसार अपनी शक्ति व बुद्धिमता का परिचय देते हैं। माता सीता की खोज में जब हनुमान समुंद्र पार कर लंका पहुंचे तो माता सीता तक श्रीराम का संदेश पहुंचाने के लिए उन्होंने अपना लघु रूप कर लिया था ताकि लंकावासी और वहां के सैनिक उन्हें देख ना पाए। इसी रूप में वे माता सीता से मिले थे किंतु उन तक श्रीराम का संदेश पहुंचा कर हनुमान ने लंका के राक्षसों को अपना भीषण रूप भी दिखा दिया था और पूरी लंका जला डाली थी।

भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचन्द्र के काज संवारे॥

अर्थ: भक्त हनुमान ने अपना विशालकाय रूप धरकर अनेक राक्षसों का वध किया और श्रीराम के कार्यों को सफल बनाया।

भावार्थ: जब श्रीराम का रावण की सेना से युद्ध चल रहा था तब उस युद्ध में हनुमान ने निरंतर अपनी शक्तियों का परिचय दिया। उन्होंने अपने विशाल व रौद्र रूप से रावण की सेना के कई महाबली योद्धाओं का वध करके श्रीराम के कार्यों को सफल बनाया और उनकी विजय में अहम भूमिका निभाई।

लाय संजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥

अर्थ: हनुमान ने हिमालय से संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण की प्राण रक्षा की थी जिससे प्रसन्न होकर श्रीराम ने उन्हें गले से लगा लिया था।

भावार्थ: राम-रावण युद्ध में लक्ष्मण मेघनाद के शक्तिबाण से मुर्छित हो गए थे और उनके प्राण संकट में आ गए थे। यह देखकर श्रीराम अत्यधिक अधीर हो गए और विलाप करने लगे थे। तब लंका के राजवैद्य सुशेन के निर्देशानुसार भक्त हनुमान ने एक रात में ही हिमालय पर्वत से संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण को बचाया था। हनुमान के इस अविश्वनीय कार्य को देखकर श्रीराम इतने अभिभूत हो गए थे कि उन्होंने हनुमान को कई देर तक गले लगाकर रखा था।

रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥

अर्थ: श्रीराम ने भक्त हनुमान की बहुत प्रशंसा की है और उन्हें अपने छोटे भाई भरत के समान बताया है।

भावार्थ: ऐसे कई अवसर आए जब भक्त हनुमान ने भगवान श्रीराम के संकटों का निवारण चुटकियों में कर दिया जिससे श्रीराम का कार्य सफल हो पाया। इस कारण श्रीराम ने कई अवसरों पर दिल खोलकर हनुमान की प्रशंसा की है और उन्हें अपने भाइयों के समान ही बताया है।

सहस बदन तुम्हरो यश गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥

अर्थ: श्रीराम ने भक्त हनुमान को अपने गले से लगाकर उनकी प्रशंसा में कहा कि तुम्हारे यश व कीर्ति का बखान तो हजारों मुखों से करना चाहिए।

भावार्थ: भक्त हनुमान ने श्रीराम के कई अविश्वनीय कार्य किए जैसे हिमालय से संजीवनी बूटी लाना, अहिरावण से राम-लक्ष्मण को छुड़ाना, नागपाश के बंधन से मुक्त करवाना, माता सीता को खोज निकालना इत्यादि। इन सभी अकाल्पनिक कार्यों के कारण ही श्रीराम ने हनुमान के सन्दर्भ में ऐसी बात कही।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥

अर्थ: भक्त हनुमान के शौर्य व गुणों का बखान तो स्वयं भगवान ब्रह्मा, नारद मुनि, ऋषि, संत, देवता इत्यादि करते हैं।

भावार्थ: भक्त हनुमान के कार्य ही इतने अद्भुत थे कि उनकी कीर्ति केवल तीनों लोकों में ही नही अपितु ब्रह्म लोक व संपूर्ण ब्रह्मांड में विख्यात थी। इसी कारण भगवान ब्रह्मा व नारद मुनि को भी उनकी प्रशंसा करते हुए सुना जा सकता है।

यम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥

अर्थ: स्वयं मृत्यु के देवता यमराज, धन के देवता कुबेर व सभी दिशाओं के दिगपाल भी भक्त हनुमान की वीरता का संपूर्ण परिचय नहीं दे सकते तो कोई कवि या विद्वान इसमें कैसे समर्थ हो सकता है।

भावार्थ: इसमें तुलसीदास जी ने कहा है कि हनुमान की कीर्ति तो मुझसे क्या बल्कि किसी अन्य कवि या विद्वान से भी संपूर्ण रूप में नही लिखी जा सकती है क्योंकि उनके शौर्य का संपूर्ण वर्णन तो यमराज, कुबेर, दिगपाल जैसे महान देवता भी नही कर सकते हैं।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥

अर्थ: भक्त हनुमान ने सुग्रीव को श्रीराम से मिलवा कर उन पर बहुत बड़ा उपकार किया था जिस कारण उन्हें अपना खोया हुआ राज्य किष्किन्धा वापस मिला था।

भावार्थ: सुग्रीव को अपने भाई व किष्किंधा राजा बालि के द्वारा अपमानित कर वहां से निकाल दिया गया था जो ऋष्यमूक पर्वत पर रह रहा था। तब भक्त हनुमान ने ही श्रीराम व लक्ष्मण की भेंट अपने महाराज सुग्रीव से करवाई थी। बाद में श्रीराम ने ही बालि का वध कर सुग्रीव को पुनः उनका राज्य किष्किंधा लौटाया था। इस प्रकार हनुमान ने सुग्रीव को श्रीराम से मिलाकर उनका उद्धार किया था।

तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।
लकेंश्वर भए सब जग जाना॥

अर्थ: रावण के छोटे भाई विभीषण ने हनुमान जी की बात का पालन किया और उसी कारण वे लंका के राजा बन पाए। इस बात को संपूर्ण विश्व जानता है।

भावार्थ: जब हनुमान माता सीता की खोज में लंका पहुंचे थे तब उनकी भेंट विभीषण से हुई थी। राक्षस नगरी में भी श्रीराम भक्त विभीषण को देखकर हनुमान जी बहुत प्रभावित हुए थे। बाद में लंका के राजा रावण के द्वारा निष्कासित किए जाने पर विभीषण श्रीराम की शरण में जा पहुंचे। तब सभी ने उनका विरोध किया था लेकिन श्रीराम ने हनुमान के परामर्श पर विभीषण को शरण दी और उन्हें लंका का भावी राजा घोषित किया।

जुग सहस्त्र योजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥

अर्थ: पृथ्वी से एक युग व हजार योजन की दूरी पर जो सूर्य स्थित है उसे आपने एक फल समझ कर निगल लिया था।

भावार्थ: जब भक्त हनुमान छोटे थे तब उन्होंने आकाश में चमकते सूर्य को देखा। वह उन्हें मीठा फल जान पड़ा। यह समझ कर वे आकाश में उसे खाने के लिए उड़ गए। जिस दूरी को करने में एक युग लग जाता है उसे उन्होंने सहजता से कुछ ही समय में पूरा कर लिया। इतना ही नहीं, उन्होंने पूरे सूर्य को एक मीठा फल समझ कर निगल भी लिया था।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गए अचरज नाहीं॥

अर्थ: भक्त हनुमान ने श्रीराम की मुद्रिका को अपने मुंह में दबाकर समुंद्र को पार किया था। इस बात में किसी को भी आश्चर्य नही होना चाहिए।

भावार्थ: बालि पुत्र अंगद के नेतृत्व में सुग्रीव की सेना का एक दल माता सीता की खोज में दक्षिण दिशा के अंतिम छोर पर पहुंच गया था लेकिन वहां से समुंद्र पार करके लंका पहुंचना किसी की भी क्षमता के बाहर था। तब भक्त हनुमान ने उसे सहजता से पार किया था और माता सीता को खोज निकाला था। श्रीराम ने हनुमान को माता सीता की खोज पर जाने से पहले अपनी एक अंगूठी भेंट की थी ताकि वे सीता के सामने अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर सकें। इसी अंगूठी को हनुमान ने समुंद्र पार करते समय अपने मुंह में दबाकर रखा था।

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

अर्थ: इस विश्व के जितने भी दुर्गम या कठिन कार्य हैं वे सभी भक्त हनुमान का नाम लेते ही सरल व सुगम हो जाते हैं।

भावार्थ: भक्त हनुमान ने अपने जीवनकाल में कई असंभव से दिखने वाले कार्यों को भी इतनी सुगमता से कर दिखाया कि वह सभी के लिए अविश्वसनीय है। ऐसे ही हमे उनका अनुसरण कर किसी भी कार्य से मुख नही मोड़ना चाहिए और उसे पूरा करने में अपना शत प्रतिशत लगा देना चाहिए। उस कार्य को करने से पहले अपने अंदर शक्ति का संचार करने के लिए हनुमान का नाम लेना चाहिए।

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥

अर्थ: श्रीराम तक पहुंचने के द्वार के रक्षक स्वयं हनुमान हैं, जहां पर बिना हनुमान की आज्ञा के प्रवेश नही किया जा सकता है।

भावार्थ: कहने का तात्पर्य यह हुआ कि यदि हमे श्रीराम को पाना है और उनका आशीर्वाद चाहिए तो भक्त हनुमान की कृपा हम पर होनी आवश्यक है। श्रीराम भी उन्हीं पर अपनी कृपा दृष्टि रखते हैं जो हनुमान को प्रिय हैं। अधर्मी, कपटी, दुष्ट लोग चाहे भगवान श्रीराम का कितना ही नाम ले लें लेकिन हनुमान उन्हें श्रीराम तक कभी नहीं पहुंचने देंगे।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥

अर्थ: विश्व के सभी प्रकार के सुख भक्त हनुमान की ही शरण लेते हैं। इसलिए यदि हमारे रक्षक स्वयं हनुमान हैं तो हमे किसी चीज से डरने की आवश्यकता नहीं।

भावार्थ: कहने का तात्पर्य यह हुआ कि भक्त हनुमान की भक्ति करने से ही हमे विश्व के सभी प्रकार के सुखों और आनंद की प्राप्ति होती है। मन शांत व स्वच्छ रहता है तथा आत्मा तृप्त होती है। साथ ही यदि हमे किसी भी चीज से भय या डर है तो उस समय हनुमान को याद कर लेना चाहिए क्योंकि यदि वे हमारी रक्षा करेंगे तो हमे कोई भी चीज क्षति नही पहुंचा सकती है।

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक ते कांपै॥

अर्थ: हनुमान अपने तेज व शक्ति को केवल स्वयं ही संभाल सकते हैं, कोई और नहीं। साथ ही उनकी हुंकार से तीनों लोक कांपते हैं।

भावार्थ: हनुमान की गति व शक्ति इतनी अधिक है कि कोई अन्य उनको नियंत्रित नही कर सकता। वे वायु व ध्वनि की गति से भी तेज दौड़ या उड़ सकते हैं। यदि उन्हें क्रोध आ जाए तो तीनों लोकों में उपस्थित राक्षस, अधर्मी व कपटी लोग थरथरा उठते हैं। ऐसे लोगों के मन में हमेशा हनुमान के प्रकोप का भय बना रहता है और वे अधर्म का कार्य करने से पहले दो बार सोचते हैं।

भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महावीर जब नाम सुनावै॥

अर्थ: केवल हनुमान का नाम मात्र लेने से ही हमारे आसपास के सभी भूत, बुरी आत्माएं, प्रेत इत्यादि दूर चले जाते हैं।

भावार्थ: विश्व में जितनी भी बुरी आत्माएं, शक्तियां, भूत, प्रेत इत्यादि स्थित है जिनका कभी भी आपको अपने आसपास होने का आभास हो या किसी ने जादू-टोना किया हो तो भक्त हनुमान का नाम लेना चाहिए और उनकी भक्ति करनी चाहिए। ऐसा करने से बुरी शक्तियों का प्रभाव कम होता है और वे डरकर दूर चली जाती हैं।

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥

अर्थ: जो भक्त निरंतर हनुमान के नाम का जाप करते हैं उनके सभी प्रकार के रोग व संकट हनुमान दूर कर देते हैं।

भावार्थ: यदि हमे कोई बीमारी है या मन कुंठित है या किसी काम में मन नही लग रहा है तो हनुमान नाम का जाप करना चाहिए। इससे हमारा मन स्थिर होता है, शरीर के रोग दूर होते हैं तथा हम पहले की अपेक्षा अधिक मजबूत व स्वस्थ बनते हैं।

संकट ते हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥

अर्थ: यदि कोई भक्त अपने मन से, अपने कार्यों से और अपने वचनों से हनुमान का ध्यान करता है और उनकी स्तुति करता है तो उनके संकट स्वयं हनुमान दूर करते हैं।

भावार्थ: यदि हमारे ऊपर कोई संकट आ पड़ा है या हमे उससे निकलने का मार्ग नही दिखाई दे रहा है तो ऐसे में भक्त हनुमान का नाम लेना चाहिए और उनका स्मरण करना चाहिए। ऐसा करने से आगे का मार्ग प्रशस्त होता है तथा सभी प्रकार के संकट दूर हो जाते हैं।

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा॥

अर्थ: श्रीराम जो कि तपस्वी हैं वे सभी के राजा हैं, उनके भी कार्यों को भक्त हनुमान ने सरल कर दिया।

भावार्थ: श्रीराम को भगवान विष्णु का सातवां अवतार माना गया है जिन्होंने राक्षस राजा रावण का वध करने के लिए इस धरती पर जन्म लिया था। उनके कठिन कार्यों और उद्देश्यों को भी अपनी महानता से सरल कर देने वाले भक्त हनुमान ही थे।

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै॥

अर्थ: जो भी भक्तगण हनुमान के सामने सच्चे मन से अपनी कोई इच्छा या आकांक्षा प्रकट करता है, हनुमान जी उसका फल जीवनभर देते हैं जिसकी कोई सीमा नही होती है।

भावार्थ: जो भक्तगण सच्चे मन से श्रीराम व हनुमान की भक्ति करते हैं, धर्म के कार्य करते हैं और फिर हनुमान से कुछ मांगते हैं तो हनुमान अपने भक्तों की विनती को कभी भी अनदेखा नही करते। वे अपने भक्तों की हर अभिलाषा और इच्छा को पूरा करते हैं और उन्हें मनवांछित वर देते हैं। हनुमान जी अपने भक्तों को इतना दे देते हैं कि फिर उनके भक्तों को जीवनभर किसी की कमी नही रहती है।

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥

अर्थ: आपका प्रताप व यश चारों युगों (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग व कलियुग) में फैला हुआ है तथा उसकी ज्योति से पूरा विश्व रोशन है।

भावार्थ: भगवान हनुमान अपने कर्मों के कारण ना केवल त्रेता युग में प्रसिद्ध हैं बल्कि वे सदा के लिए अमर हो गए हैं। उनका यश त्रेतायुग के बाद के द्वापर युग और अभी के कलियुग में भी कम नही हुआ है तथा वे आज भी सभी के बीच पूजनीय हैं। उनकी शक्ति के पुंज से विश्व के सभी प्राणियों को प्रेरणा मिलती है।

साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥

अर्थ: हनुमान एक ओर साधु-संतों की रक्षा करते हैं तो दूसरी ओर दुष्टों का संहार भी करते हैं। इस कारण वे श्रीराम के सबसे अधिक प्रिय भी हैं।

भावार्थ: इस कथन से तात्पर्य सत्कर्मों के करने से है। जो व्यक्ति अच्छे कर्म करता है और दूसरों का भला करता है, हनुमान सदैव उनकी रक्षा करते हैं और उनका बेड़ा पार लगाते हैं तो वहीं दूसरी ओर जो बुरे कर्म करते हैं व दूसरों को कष्ट पहुंचाते हैं, उनको उचित दंड भी हनुमान ही देते हैं।

अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता।
अस वर दीन जानकी माता॥

अर्थ: हनुमान की श्रीराम के प्रति भक्ति से प्रसन्न होकर माता सीता ने उन्हें आशीर्वाद दिया था कि वे किसी को भी आठों सिद्धियों व नौ निधियों का वरदान दे सकते हैं।

भावार्थ: भक्त हनुमान ने अपनी शक्ति से आठों सिद्धियां व नौ की नौ निधियां अर्जित की थी किंतु इन सिद्धियों व निधियों में दूसरों को पारंगत करने की शक्ति उन्हें माता सीता के आशीर्वाद के फलस्वरूप मिली थी। यदि हम सच्चे मन से हनुमान की भक्ति करें और मन स्वच्छ रखें तो हमे भी यह सिद्धियां निधियां प्राप्त हो सकती है जो कि किसी का भी उद्धार करने में सक्षम है।

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥

अर्थ: हनुमान के पास श्रीराम के नाम का रस हमेशा रहता है। वे सदा ही श्रीराम के सेवक बनकर रहते हैं।

भावार्थ: श्रीराम ने कई बार हनुमान की प्रशंसा की है व उन्हें अपने भाई के समान बताया है किंतु हनुमान को केवल उनका सेवक कहलाने में ही आनंद आया। वे सदैव श्रीराम के चरणों में रहे और उनकी आज्ञा का पालन किया। माता सीता और श्रीराम के अन्य प्रियजनों ने उन्हें कई बार उपहार स्वरुप कुछ देना चाहा लेकिन हनुमान ने सदैव श्रीराम की कृपा और उनकी भक्ति ही मांगी।

तुम्हरे भजन राम को पावैं।
जनम जनम के दुःख बिसरावै॥

अर्थ: भक्त हनुमान के भजन करके श्रीराम को प्राप्त किया जा सकता है और जन्मों जन्म के दुखों का निवारण किया जा सकता है।

भावार्थ: यदि हमे श्रीराम को पाना है तो हनुमान की भक्ति करनी चाहिए। तुलसीदास जी को भी हनुमान ने ही श्रीराम व लक्ष्मण से मिलने का मार्ग बताया था। साथ ही हमारे दुःख चाहे कितने ही बड़े क्यों ना हो, वे सभी सच्चे मन से हनुमान भक्ति करने से दूर हो जाते हैं व सुख की प्राप्ति होती है।

अन्त काल रघुवर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥

अर्थ: भक्त हनुमान का नाम लेकर अपने अंतिम समय में श्रीराम के धाम बैकुंठ जाया जा सकता है। इसके पश्चात अगले जन्म में भी हरि की भक्ति प्राप्त होती है।

भावार्थ: यदि हम हनुमान की भक्ति करते हैं तो हमे ना केवल श्रीराम की भक्ति का फल प्राप्त होता है बल्कि बैकुंठ में भी स्थान मिलता है और मोक्ष प्राप्ति होती है। यदि हमारा पुनर्जन्म भी होता है तो उस जन्म में भी हरि भक्ति मिलती है जिससे बेड़ा पार होता है।

और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥

अर्थ: हनुमान की सेवा करने और ध्यान लगाने मात्र से ही सभी सुखों की प्राप्ति हो जाती है, फिर हमे किसी और देवता का ध्यान लगाने की आवश्यकता ही नही पड़ती।

भावार्थ: इस कथन से तात्पर्य यह हुआ कि केवल हनुमान की भक्ति करने से ही हमे सभी देवताओं की पूजा का फल प्राप्त होता है। इस प्रकार हनुमान इतने शक्तिशाली व अपने भक्तों पर कृपा बरसाने वाले हैं कि वे अपने भक्तों की हर इच्छा पूरी कर उन्हें सभी प्रकार के सुख देते हैं।

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

अर्थ: जो हनुमान नाम का ध्यान करता है, उनके सभी प्रकार के संकट व पीड़ा समाप्त हो जाते हैं।

भावार्थ: इस चौपाई से भी यही तात्पर्य है कि भक्त हनुमान के स्मरण मात्र से ही हमारे सभी प्रकार के कष्ट, दुःख, कठिनाई, बाधाओं, संकटों इत्यादि का निवारण हो जाता है। यदि हमारे शरीर या मन को किसी प्रकार की कोई पीड़ा या दुःख भी है तो वह भी समाप्त हो जाता है। कुल मिलाकर भक्त हनुमान अपने सभी भक्तों के लिए संकटमोचन का काम करते हैं।

जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाई॥

अर्थ: हे सभी के रक्षक हनुमान जी, आपकी जय हो, जय हो, जय हो, आप मुझ पर एक गुरु की भांति दया करें।

भावार्थ: इस चौपाई में हनुमान को हमारे गुरु की संज्ञा दी गयी है। एक गुरु का कर्तव्य अपने शिष्य का मार्गदर्शन कर उसके जीवन को उज्जवल बनाना होता है। ठीक उसी प्रकार महर्षि तुलसीदास जी के द्वारा भी हनुमान जी से यह प्रार्थना की गयी है कि वे हनुमान चालीसा का पाठ करने वाले अपने भक्तों के ऊपर एक गुरु की भांति कृपा दृष्टि बनाए रखें और सभी को सद्बुद्धि दें।

जो शत बार पाठ कर कोई।
छूटहिं बंदि महासुख होई॥

अर्थ: जो व्यक्ति हनुमान चालीसा का निरंतर सौ बार पाठ करेगा उसके सभी बंधन टूट जाएंगे व महा सुख की प्राप्ति होगी।

भावार्थ: यदि हम सच्चे मन से हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे और हनुमान की भक्ति में रम जाएंगे तो हम इस भौतिक दुनिया के सभी बंधनों से मुक्त हो जाएंगे अर्थात हमारा मार्ग प्रशस्त होगा तथा कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी। उन कार्यों को करने से हमें असीम आनंद की अनुभूति होगी।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥

अर्थ: जो भी भक्त हनुमान चालीसा का पाठ करेगा, उसका उद्धार निश्चित है और इसके साक्षी स्वयं माँ गौरी के पति महादेव हैं।

भावार्थ: हनुमान को महादेव का अंशावतार माना जाता है। इसलिए उनकी कृपा से अर्थ भगवान शिव की कृपा से है। यदि हम हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं तो हमारा उद्धार निश्चित ही होगा और कोई भी दुःख हमारे जीवन में टिक नहीं पाएगा। जिस प्रकार हनुमान ने अपने आराध्य भगवान श्रीराम के सभी दुःख हर लिए थे ठीक उसी प्रकार वे हमारे भी दुःख हर लेंगे।

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥

अर्थ: तुलसीदास जी सदैव ही श्रीराम के भक्त रहे हैं, इसलिए हे हनुमान जी, आप उनके हृदय में निवास करें।

भावार्थ: अंतिम चौपाई में तुलसीदास जी अपने बारे में हनुमान जी को बताते हैं कि वे हमेशा से ही श्रीराम के परम भक्त रहे हैं। इसलिए हे हनुमान, आप मुझ पर अपनी कृपा बनाए रखें और सदैव मेरे हृदय में निवास करें। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि जो भी भक्तगण गोस्वामी तुलसीदास की ही भांति श्रीराम की सेवा व ध्यान करता है, उनके हृदय में सदैव हनुमान जी का वास रहता है।

॥ दोहा ॥

पवनतनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित,
हृदय बसहु सुर भूप॥

अर्थ: हे पवन पुत्र, हे संकटों को हरने वाले, हे कल्याणकारी मंगल करने वाले, हे सभी देवताओं के रूप, आप श्रीराम, माता सीता व लक्ष्मण सहित मेरे हृदय में निवास करें।

भावार्थ: कहने का तात्पर्य यह हुआ कि जिस प्रकार हनुमान के हृदय में श्रीराम व माता सीता निवास करते हैं ठीक उसी प्रकार श्रीराम, लक्ष्मण, माता सीता व हनुमान हम सभी के हृदय में निवास करें और उसे निर्मल कर दें।

श्री हनुमान चालीसा का महत्व (Shri Hanuman Chalisa Ka Mahatva)

हनुमान चालीसा का अपना बहुत महत्व है। ऊपर आपने हनुमान जी की चालीसा तो पढ़ी ही और उसी के साथ-साथ हनुमान चालीसा का अर्थ व भावार्थ भी जाना। ऐसे में महर्षि गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री हनुमान चालीसा के माध्यम से भक्त हनुमान के गुणों, शक्तियों, कर्मों, उद्देश्य इत्यादि पर प्रकाश डालने का काम किया है।

हनुमान चालीसा से हमें भक्त हनुमान के बारे में तो पता चलता ही है और उसी के साथ-साथ उनकी आराधना भी हो जाती है। हनुमान चालीसा का पाठ करने से ना केवल हम हनुमान जी को प्रसन्न कर रहे होते हैं बल्कि उसके साथ ही श्रीराम व माता सीता को भी प्रसन्न करने का कार्य कर रहे होते हैं। यही श्री हनुमान चालीसा का महत्व होता है।

श्री हनुमान चालीसा के फायदे (Shree Hanuman Chalisa Ke Fayde)

जो भक्तगण पूरे विधि-विधान के साथ हर दिन हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं, उसको एक नहीं बल्कि कई तरह के लाभ देखने को मिलते हैं। हनुमान जी हमारे सभी बिगड़े हुए कामों को बना देते हैं और हर विपदा का हल निकाल देते हैं। ऐसे में हमें अपने व्यवसाय, नौकरी, शिक्षा, घर, आर्थिक, सामाजिक इत्यादि किसी भी क्षेत्र में किसी भी तरह की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है तो वह हनुमान जी के कारण समाप्त हो जाती है।

यदि हमें आगे का मार्ग नहीं दिखाई दे रहा है या हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं, यह समझ नहीं आ रहा है तो वह भी हनुमान चालीसा के माध्यम से पता चलता है। एक तरह से श्री हनुमान चालीसा (Shri Hanuman Chalisa) के माध्यम से हमारा जीवन विपदाओं और संकटों से मुक्त हो जाता है जिससे हम निरंतर आगे बढ़ते रह पाते हैं। यही हनुमान जी की चालीसा के फायदे होते हैं।

हनुमान चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: हनुमान चालीसा पढ़ना कैसे सीखे?

उत्तर: यदि आपको हनुमान चालीसा पढ़ना सीखना है या उसे कंठस्थ करना है तो इसके लिए आपको प्रतिदिन सुबह उठकर हनुमान चालीसा का पाठ करने का नियम अपनाना होगा कुछ ही सप्ताह में आपको हनुमान चालीसा अपने आप ही कंठस्थ हो जाएगी

प्रश्न: सुबह 4 00 बजे हनुमान चालीसा पढ़ने से क्या होता है?

उत्तर: सुबह 4 बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त का समय होता है यदि आप ब्रह्म मुहूर्त की शुरुआत ही हनुमान चालीसा के पाठ से करते हैं तो इससे आपका पूरा दिन ही शुभमय हो जाता है उस दिन आप किसी विपदा का सामना नहीं करते हैं और समस्याओं का हल निकल जाता है

प्रश्न: हनुमान चालीसा कब नहीं पढ़ना चाहिए?

उत्तर: हनुमान चालीसा का पाठ हमेशा स्नान करके ही किया जाना चाहिए यदि आप बिना नहाये धोये हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं तो यह अशुभ माना जाता है

प्रश्न: 1 बार हनुमान चालीसा पढ़ने में कितना समय लगता है?

उत्तर: यह पूर्ण रूप से व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है यदि हम जल्दी-जल्दी हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं तो उसमें 3 मिनट का समय लगता है और यदि हम लय-ताल के साथ इसका पाठ करते हैं तो उसमें 10 मिनट का समय लगता है

प्रश्न: हनुमान चालीसा का पाठ 1 दिन में कितनी बार करना चाहिए?

उत्तर: इसका वर्णन स्वयं हनुमान चालीसा में ही देखने को मिल जाता है जिसमें एक बारी में 100 बार हनुमान चालीसा का पाठ शुभ माना गया है हालाँकि यह आप अपनी इच्छानुसार कितनी भी बार कर सकते हैं

प्रश्न: क्या हम बिना स्नान किए हनुमान चालीसा पढ़ सकते हैं?

उत्तर: नहीं, आपको बिना स्नान किये हनुमान चालीसा नहीं पढ़नी चाहिए क्योंकि यह एक ग्रंथ के समान है ऐसे में किसी ग्रंथ को पढ़ना और वो भी बिना नहाये, वर्जित माना गया है

नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘‍♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:

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कृष्णा

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  • यह पोस्ट "श्री हनुमान चालीसा" के हिंदी में एक छोटी सी टिप्पणी प्रदान करती है। श्री हनुमान चालीसा हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण प्रार्थना है जो हनुमान जी की महिमा को गाती है। इस पोस्ट में हनुमान चालीसा के पंक्तियों का अनुवाद, अर्थ और महत्वपूर्ण विवरण प्रदान किया गया है। यह पोस्ट आपको हनुमान चालीसा का अद्भुत संग्रह प्रदान करती है जो आपको स्प्रितुअल उन्नति और आध

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