संकटमोचन हनुमान अष्टक अर्थ सहित | Sankat Mochan Hanuman Ashtak

Sankat Mochan Hanuman Ashtak

संकटमोचन हनुमान अष्टक (Sankat Mochan Hanuman Ashtak) की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा पंद्रहवीं शताब्दी में की गयी थी। तुलसीदास जी श्रीराम व हनुमान के बहुत बड़े भक्त थे। उनके द्वारा ही रामचरितमानस, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान आरती सहित हनुमानाष्टक (Hanumanashtak) की रचना की गयी थी जिसमें कुल 8 पद आते हैं।

इस लेख में सर्वप्रथम आपको संकटमोचन हनुमानाष्टक पढ़ने को मिलेगा, तत्पश्चात संकटमोचन हनुमान अष्टक अर्थ सहित (Hanuman Ashtak Lyrics In Hindi) समझाया जाएगा। हनुमानाष्टक के प्रत्येक पद के सार, अर्थ व भावार्थ को इसके माध्यम से बताया जाएगा। अंत में हनुमान अष्टक के जाप से क्या लाभ मिलते हैं और उसका क्या महत्व है, यह बताया जाएगा। तो आइये सबसे पहले करते हैं संकट मोचन हनुमान अष्टक का पाठ।

Sankat Mochan Hanuman Ashtak | संकटमोचन हनुमान अष्टक

संकटमोचन हनुमानाष्टक का नाम ऐसा इसलिए है क्योंकि हनुमान जी को संकटमोचन के नाम से भी जाना जाता है तो वहीं हनुमानाष्टक में 8 पद आते हैं। संकटमोचन का संधि विच्छेद करें तो इसका अर्थ होता है संकटों को हरने वाला या उसे दूर करने वाला। वहीं हनुमानाष्टक का संधि विच्छेद करें तो इसका अर्थ होता है हनुमान का अष्टक अर्थात हनुमान जी को समर्पित आठ पद।

हनुमानाष्टक (Hanumanashtak) में कुल 8 पद होते हैं और उसके आखिर में एक दोहा आता है। प्रत्येक पद में 4-4 चौपाईयां आती हैं जिसमें से अंतिम चौपाई हर पद में समान है। हनुमान अष्टक का प्रत्येक पद हनुमान जी के जीवन के अलग-अलग कालखंड और उसमें घटित मुख्य घटनाओं सहित उनकी वीरता का वर्णन करता है। आइये इसे पढ़ लेते हैं।

॥ प्रथम पद ॥

बाल समय रवि भक्षि लियो तब,
तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग में,
यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी विनती तब,
छांड़ि दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥

॥ द्वितीय पद ॥

बालि की त्रास कपीस बसै गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि शाप दियो तब,
चाहिय कौन विचार विचारो।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥

॥ तृतीय पद ॥

अंगद के संग लेन गये सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवित ना बचिहौं हम सों जु,
बिना सुधि लाय इहाँ पगु धारो।
हेरि थके तट सिंधु सबै तब,
लाय सिया सुधि प्राण उबारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥

॥ चतुर्थ पद ॥

रावण त्रास दई सिय को तब,
राक्षसि सों कहि सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाय महा रजनीचर मारो।
चाहत सीय अशोक सों आगि सु,
दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥

॥ पंचम पद ॥

बाण लग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तज्यो सुत रावण मारो।
लै गृह वैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सुबीर उपारो।
आनि संजीवन हाथ दई तब,
लछिमन के तुम प्राण उबारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥

॥ षष्टम पद ॥

रावण युद्ध अजान कियो तब,
नाग के फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥

॥ सप्तम पद ॥

बंधु समेत जबै अहिरावण,
लै रघुनाथ पाताल सिधारो।
देवहिं पूजि भली विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो।
जाय सहाय भयो तब ही,
अहिरावण सैन्य समेत संहारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥

॥ अष्टम पद ॥

काज किये बड़ देवन के तुम,
वीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसों नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होय हमारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥

दोहा

लाल देह लाली लसे,
अरू धर लाल लँगूर।
बज्र देह दानव दलन,
जय जय जय कपि सूर॥

Hanuman Ashtak Lyrics In Hindi | संकटमोचन हनुमानाष्टक अर्थ सहित

हम सभी संकटमोचन हनुमानाष्टक का तो पूरे विधि-विधान के साथ जाप करते हैं किन्तु यदि आप इसी के साथ ही हनुमान अष्टक का अर्थ (Hanuman Ashtak) भी जान लेंगे तो इससे आपको सर्वोत्तम लाभ देखने को मिलेगा। ऐसे में आज हम हनुमानाष्टक के प्रत्येक पद का अर्थ और उसका भावार्थ आपके साथ सांझा करेंगे।

बाल समय रबि भक्षि लियो तब,
तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आन करि बिनती तब,
छांड़ि दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥

सार: हनुमान अष्टक के प्रथम पद में भगवान हनुमान के बचपन काल की एक घटना का वर्णन है जब वे सूर्य को फल समझ कर निगल लेते हैं।

अर्थ: अपने बाल्यकाल में हनुमान ने सूर्य को एक फल समझ कर निगल लिया था तब संपूर्ण विश्व में अंधेरा छा गया था। इस आपदा से संपूर्ण विश्व में त्राहिमाम मच गया था और सभी को इस संकट का हल नही सूझ रहा था। तब सभी देवतागण हनुमान जी के पास आए और उनसे सूर्य देव को छोड़ देने की विनती की। तत्पश्चात हनुमान ने सूर्य को वापस उगल दिया। हम में से कौन नही जानता कि भक्त हनुमान का नाम लेने मात्र से ही सभी भक्तों के संकट दूर हो जाते हैं।

भावार्थ: कहने का तात्पर्य यह हुआ कि बच्चों का मन बहुत ही चंचल होता है तथा उन्हें किसी भी चीज़ से मोहित किया जा सकता है। स्वयं हनुमान भगवान शिव के अंशावतार थे लेकिन स्वभाव से वे भी अन्य शिशुओं की ही भांति थे। हालाँकि उन्हें बचपन से ही असीमित शक्तियां मिली हुई थी लेकिन बुद्धि का अभाव था क्योंकि उसका छोटी आयु में होना असंभव बात थी।

यदि किसी के पास शक्तियां हो लेकिन बुद्धि का अभाव हो तो ऐसी दुर्घटनाएं हो जाती है। इसलिए बुद्धि का होना अति-आवश्यक है। ठीक उसी प्रकार धन के साथ-साथ विद्या का होना भी अति-आवश्यक है। तभी धन की देवी मां लक्ष्मी तथा विद्या व बुद्धि के दाता मां सरस्वती व भगवान गणेश की आराधना हमेशा साथ में की जाती है।

बालि की त्रास कपीस बसै गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि शाप दियो तब,
चाहिय कौन बिचार बिचारो।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥

सार: हनुमानाष्टक का दूसरा पद भक्त हनुमान की अपने आराध्य श्रीराम से भेंट व सुग्रीव की दुविधा का हल करने से संबंधित है।

अर्थ: जब महाराज सुग्रीव को ऋष्यमूक पर्वत पर दो धनुर्धारी योद्धाओं के आने का पता चला तब वे उसे बालि की चाल समझ कर अत्यंत भयभीत हो गए। उन दोनों धनुर्धारी योद्धाओं का पता लगाने सुग्रीव ने हनुमान को वहां भेजा। हनुमान ब्राह्मण का वेश बनाकर उनसे मिले और श्रीराम तथा लक्ष्मण का भेद जाना। इसके बाद उन्होंने दोनों की सुग्रीव से भेंट करवा कर उनके संकटों का निवारण किया।

भावार्थ: हनुमान सुग्रीव के सभी मंत्रियों में सबसे अधिक बुद्धिमान थे। जब सुग्रीव को अपने भेदियों के द्वारा दो धनुर्धारी योद्धाओं का ऋष्यमूक पर्वत पर चढ़ाई करने का पता चला तब वह अत्यंत भयभीत हो गया। कई मंत्रियों ने उन पर आक्रमण करने का सुझाव दिया लेकिन जाम्बवंत व हनुमान का इससे विपरीत सोचना था।

उनका मानना था कि किसी पर भी आक्रमण या प्रहार करने से पहले उनसे बातचीत करना और उनके बारे में जान लेना आवश्यक है। क्या पता इससे युद्ध करना ही ना पड़े और हुआ भी वही। जिन्हें वे अपना शत्रु समझ बैठे थे वे तो सुग्रीव से सहायता मांगने आ रहे थे और साथ ही सुग्रीव के सभी संकटों को हरने भी। इसलिए किसी पर भी बिना विचारे व्यक्तिगत या सार्वजनिक टिप्पणी करने से पहले उनकी मनोदशा को अवश्य समझ लें।

अंगद के संग लेन गये सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौं हम सों जु,
बिना सुधि लाय इहाँ पगु धारो।
हेरि थके तट सिंधु सबै तब,
लाय सिया सुधि प्राण उबारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥

सार: हनुमान अष्टक का तीसरा पद माता सीता की खोज व हनुमान द्वारा समुंद्र पार कर उन्हें ढूंढने से संबंधित है।

अर्थ: महाराज सुग्रीव ने किष्किंधा का राजा बनने के पश्चात अंगद के नेतृत्व में वानरों का एक दल दक्षिण दिशा में माता सीता की खोज में भेजा। साथ ही उन्होंने माता सीता को ढूंढने जा रहे वानरों के दल को यह चेतावनी भी दी कि यदि तुम माता सीता का पता लगाए बिना यहां वापस आओगे तो जीवित नही बच पाओगे।

अंगद के नेतृत्व में वानर दल जब भारत के अंतिम छोर पर समुंद्र के किनारे पहुंच गया तब आगे कोई रास्ता ना देखकर निराश हो गया। तब हनुमान ने उस विशाल समुंद्र को लांघ कर सभी के प्राणों की रक्षा की थी।

भावार्थ: सुग्रीव ने माता सीता की खोज करने के लिए भारतवर्ष की चारों दिशाओं में वानरों के चार विशाल दल भेजे थे जिनमे से मुख्य दल दक्षिण दिशा में गया था। उस दल में सुग्रीव की सेना के सभी मुख्य योद्धा थे जैसे कि अंगद, जाम्बवंत, हनुमान, नल-नीर इत्यादि। दक्षिण दिशा में ही लंका नरेश रावण की नगरी थी।

अंगद के नेतृत्व में वह दल भारत के अंतिम छोर तक पहुंच गया जहां से आगे महासमुंद्र था और उसे पार पाना लगभग असंभव था। यह देखकर संपूर्ण वानर दल में घोर निराशा छा गयी और सभी बिना सोचे-समझे हार मान बैठे और वहीं प्राण त्यागने का सोच लिया। किंतु जाम्बवंत व हनुमान जी ने बुद्धिमता से काम लिया।

जाम्बवंत जी ने हनुमान को उनकी पुरानी खोई हुई शक्तियों का स्मरण करवाया जिसकी सहायता से हनुमान समुंद्र को लांघ पाने और माता सीता को खोज पाने में सफल हुए। इससे तात्पर्य यह हुआ कि जीवन में पथ-पथ पर कई मुश्किलें आएंगी, कोई मुश्किल बहुत सामान्य होगी तो कोई अत्यधिक बड़ी। यदि हम पहले ही हार मान लेंगे तो कभी भी आगे नही बढ़ पाएंगे किंतु हम बिल्कुल विपरीत परिस्थितियों में भी अपने दिमाग को संतुलित रखकर आगे का रास्ता निकालेंगे तो अवश्य ही कोई ना कोई मार्ग निकल जाएगा।

रावण त्रास दई सिय को तब,
राक्षसि सों कहि सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाय महा रजनीचर मारो।
चाहत सीय अशोक सों आगि सु,
दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥

सार: हनुमानाष्टक का चौथा पद हनुमान के माता सीता के मिलन व उनके कष्ट निवारण से है।

अर्थ: रावण अशोक वाटिका में माता सीता को बहुत कष्ट दे रहा था और उन्हें भयभीत कर रहा था। उसने अशोक वाटिका की राक्षसनियों को माता सीता को उससे विवाह करने के लिए जो हो सके, करने को कहा। उस समय भक्त हनुमान ने वहां पहुंच कर कई राक्षसों को मौत के घाट उतार दिया।

रावण के कष्टों से दुखी होकर जब माता सीता ने अग्नि में भस्म होने का सोचा तब हनुमान ने भगवान श्रीराम की मुद्रिका देकर उन्हें सांत्वना दी तथा उनके कष्टों का निवारण किया।

भावार्थ: माता सीता कई महीनों से रावण की अशोक वाटिका में बंधक थी। उनकी सुध लेने को केवल रावण की सेविकाओं में माँ त्रिजटा थी जो समय-समय पर माता सीता को ढांढस बंधा देती थी लेकिन यह पर्याप्त नही था क्योंकि जब से माता सीता रावण के यहां बंदी थी तब से श्रीराम की ओर से आशा की एक भी किरण दिखाई नही दी थी।

धीरे-धीरे माता सीता को यह लगने लगा था कि श्रीराम उन्हें नही ढूंढ पाएंगे, इसलिए अब देह त्याग करना ही उचित होगा। ऐसे में भक्त हनुमान ने वहां पहुंच कर ना केवल अपनी सत्यता का परिचय उन्हें दिया बल्कि उचित ढांढस भी बंधाया। हनुमान जानते थे कि रावण का वध करने और श्रीराम का लक्ष्य पूर्ण करने के लिए माता सीता का जीवित रहना अति-आवश्यक है। इसलिए उन्होंने अपनी बुद्धिमता से ना केवल माता सीता को सांत्वना दी अपितु रावण की सेना को भी अपना उचित बल दिखाया।

कहने का तात्पर्य यह हुआ कि कभी-कभी दुविधा में फंसे अपने स्वजनों को थोड़ा बहुत ढांढस बंधा देने से ही उनकी बहुत सहायता हो जाती है। इसलिए हमे किसी की सहायता करने से कभी भी नही हिचकिचाना चाहिए और सभी के साथ मीठे बोल बोलने चाहिए।

बाण लग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तज्यो सुत रावण मारो।
लै गृह वैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सुबीर उपारो।
आनि संजीवन हाथ दई तब,
लछिमन के तुम प्राण उबारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥

सार: हनुमान अष्टक का पांचवां पद लक्ष्मण के मूर्छित होने व हनुमान द्वारा संजीवनी बूटी लाकर उनकी प्राण रक्षा करने से संबंधित है।

अर्थ: रावण पुत्र इन्द्रजीत ने जब लक्ष्मण पर शक्तिबाण चलाया तो वे मृत्यु की गोद में समाने लगे। तब हनुमान लंका के राजवैद्य सुषेन को वहां लेकर आए। राजवैद्य ने लक्ष्मण की प्राण रक्षा के लिए संजीवनी बूटी की मांग की तब हनुमान ने बिना देर किए हिमालय पर्वत से संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा की।

भावार्थ: जब लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध में लक्ष्मण मेघनाद के शक्तिबाण के प्रभाव से मूर्छित हो गए तब अपने छोटे भाई की यह स्थिति देखकर स्वयं नारायण अवतार प्रभु श्रीराम भी विचलित हो गए थे तथा निरंतर विलाप करने लगे थे। उस समय भी हनुमान ने बिना विचलित हुए अपनी बुद्धिमता का परिचय दिया।

वे तुरंत लंका के राजवैद्य को वहां लेकर आ गए। उन्होंने लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा के लिए संजीवनी बूटी को ही एकमात्र उपाय बताया। तब हनुमान ने बिना एक क्षण की भी देरी किए वह कार्य संपन्न किया जिससे लक्ष्मण के प्राण बच सके।

कहने का तात्पर्य यह हुआ कि यदि हनुमान भी बाकियों की भांति अधीर हो जाते तो लक्ष्मण के प्राण कभी नही बच पाते। वे जानते थे कि राजवैद्य विरोधी सेना के हैं लेकिन यहां पर उन्होंने वैद्य सुषेन को आयुर्वेद के सिद्धातों का स्मरण करवाया जिसके अनुसार एक वैद्य का कर्तव्य अपने रोगी की पहचान को ध्यान में ना रखकर उसका उपचार करना होता है।

साथ ही यह भी बताया कि विपरीत परिस्थितियों का भी हल निकाला जा सकता है। वे जानते थे कि सूर्योदय से पहले तक हिमालय से संजीवनी बूटी लाना एक दुष्कर कार्य है लेकिन उन्होंने प्रयत्न करना नही छोड़ा जिस कारण उन्हें सफलता भी मिली। इसलिए आप भी परिणाम की चिंता किए बिना हमेशा प्रयासरत रहेंगे तो सफलता अवश्य मिलेगी।

रावण युद्ध अजान कियो तब,
नाग के फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥

सार: हनुमानाष्टक का छठा पद श्रीराम व लक्ष्मण के नागपाश में बंधने व हनुमान का उस संकट के निवारण करने से संबंधित है।

अर्थ: श्रीराम-रावण युद्ध में जब रावण के द्वारा (रामचरितमानस के अनुसार इन्द्रजीत) श्रीराम व लक्ष्मण को नागपाश में बांध दिया जाता है तो संपूर्ण वानर सेना में हाहाकार मच जाता है। सुग्रीव समेत सभी वानर विलाप करने लगते हैं और हार मान लेते हैं। उस समय हनुमान बिना एक पल की देर किए भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ देव को लेकर आते हैं जो नागपाश के बंधन से श्रीराम व लक्ष्मण को मुक्त कराते हैं।

भावार्थ: जब मेघनाद के द्वारा श्रीराम व लक्ष्मण को नागपाश में बांधा गया तब श्रीराम की सेना में चारों ओर त्राहिमाम मच गया था तथा हर कोई विलाप करने लगा था। सभी मान चुके थे कि अब इस बंधन से उन्हें कोई नही मुक्त करवा सकता। तभी सभी का ध्यान हनुमान पर जाता है और सभी पाते हैं कि हनुमान तो वहां हैं ही नही। यह देखकर सभी अचंभित हो जाते हैं।

कुछ ही देर में हनुमान आकाश मार्ग से गरुड़ देवता को अपने साथ लेकर आते हुए दिखाई देते हैं। गरुड़ देवता अपनी शक्ति से नागपाश को काट देते हैं जिस कारण श्रीराम व लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा होती है।

कहने का तात्पर्य यह हुआ कि कभी-कभी हम मार्गदर्शन विहीन हो जाते हैं व हमारा नेतृत्व करने वाला कोई नही होता। कभी-कभी परिस्थितियां यह होती है कि हमे लगता है कि अब कुछ नही हो सकता। ऐसे में विलाप करने से क्या लाभ? यदि उस समय भी अपना शत-प्रतिशत दे दिया जाए तो क्या पता स्थिति बदल जाए। वही इस घटना में हुआ और स्थिति पूर्णतया बदल गयी।

बंधु समेत जबै अहिरावण,
लै रघुनाथ पाताल सिधारो।
देवहिं पूजि भली विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो।
जाय सहाय भयो तब ही,
अहिरावण सैन्य समेत संहारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥

सार: हनुमान अष्टक का सातवां पद अहिरावण द्वारा श्रीराम व लक्ष्मण को बंदी बनाने और हनुमान की उनकी सहायता करने से संबंधित है।

अर्थ: अहिरावण ने श्रीराम व लक्ष्मण को षडयंत्र से बंदी बना लिया और उन्हें पाताल लोक ले गया। वहां वह अपनी कुलदेवी के सामने दोनों की बलि चढ़ाने वाला था लेकिन उसी समय हनुमान ने वहां पहुंच कर ना केवल दोनों को अहिरावण के बंधन से मुक्त कराया बल्कि अहिरावण का सेनासहित वध भी किया।

भावार्थ: युद्ध में रावण अपने सभी सगे-संबंधियों की सहायता लेता है जिसमे उसका भाई अहिरावण भी होता है। अहिरावण पाताल लोक का राजा होता है जो छल से श्रीराम व लक्ष्मण को बंदी बना लेता है और उन्हें पाताल लोक ले जाता है। वहां वह उन दोनों की बलि चढ़ाने वाला होताहै।

उस समय हनुमान वहां पहुंच कर अपना पंचमुखी रूप धरकर दोनों के प्राणों की रक्षा करते हैं और अहिरावण का वध कर देते हैं। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि जब तक आशा की एक किरण भी बची हो तब तक हमे प्रयत्न करना नही छोड़ना चाहिए, वही हनुमान ने भी किया। उन्होंने बिना समय नष्ट किए अपना कार्य संपन्न किया क्योंकि यदि इस कार्य में थोड़ा सा भी विलम्ब होता तो अनर्थ हो सकता था।

समय का बहुत अधिक महत्व होता है। यदि हमने बिना निराश हुए अपनी बुद्धिमता से समय रहते कार्य संपन्न कर दिया तो स्वयं भगवान हमारी उसमे सहायता करते हैं और सफलता दिलाते हैं।

काज किये बड़ देवन के तुम,
वीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसों नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होय हमारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥

सार: हनुमानाष्टक के अंतिम पद में गोस्वामी तुलसीदास जी उनसे अपने कष्टों को हरने का कह रहे हैं।

अर्थ: हे वीर हनुमान!! आपने तो स्वयं नारायण के दुखों का निवारण किया है तो हम जैसे तुच्छ प्राणियों के ऐसे कौन-से संकट हो सकते हैं जो आप नही जान सकते हैं। इसलिए हम पर भी अपनी कृपा दृष्टि बरसाएं और हमारे सभी दुखों का निवारण करें।

भावार्थ: इस कथन का तात्पर्य भगवान की सच्चे मन से भक्ति करने से है और उन पर आस्था बनाए रखने से है। मनुष्य कभी भी इतना शक्तिशाली नही हो सकता कि वह ईश्वर से आगे निकल जाए। इसलिए हमे कर्म तो करते ही रहना चाहिए लेकिन साथ ही साथ ईश्वर पर भी विश्वास बनाए रखना चाहिए क्योंकि यह संसार विश्वास की पतली डोर पर ही टिका हुआ है।

॥ दोहा ॥

लाल देह लाली लसे,
अरू धर लाल लँगूर।
बज्र देह दानव दलन,
जय जय जय कपि सूर॥

अर्थ: हे हनुमान!! आपका शरीर लाल है और उस पर लाली भी लगी हुई है। आपका शरीर अत्यंत बलशाली है जिससे राक्षसों का संहार हुआ है। हे बंदर रुपी हनुमान!! आपकी सदैव जय हो, जय हो।

भावार्थ: माता सीता को सिंदूर लगाते हुए देखकर और उनके मुख से यह सुनकर की सिंदूर लगाने से श्रीराम की आयु बढ़ जाती है तो हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर पर ही सिंदूर का लेप कर लिया था। तब से ही उन्हें प्रसन्न करने के लिए सिंदूर का लेप हनुमान जी के शरीर पर किया जाता है।

हनुमान अष्टक का महत्व (Hanuman Ashtak Ka Mahatva)

भक्त हनुमान के जीवन में शुरू से लेकर अंत तक घटी हर महत्वपूर्ण घटना का वर्णन हमें इस संकटमोचन हनुमानाष्टक के माध्यम से पढ़ने को मिलता है। फिर चाहे वह बाल्य काल में सूर्य देव को निगल लेना हो या फिर राम-रावण युद्ध में श्रीराम की सहायता करना। ऐसे में हनुमान जी के जीवन को बड़ी सरलता से हनुमानाष्टक के आठ पदों में समेटा गया है।

भक्त हनुमान के बारे में सीमित शब्दों में संपूर्ण वर्णन कर देने के कारण ही संकट मोचन हनुमानाष्टक का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है। इसके माध्यम से हनुमान जी की शक्तियां, उद्देश्य, बुद्धि, गुणों तथा कर्मों के महत्व के ऊपर प्रकाश डाला गया है।

हनुमानाष्टक के फायदे (Hanumanashtak Ke Fayde)

जो भक्तगण पूरे विधि-विधान के साथ हर दिन संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ करते हैं, उसको एक नहीं बल्कि कई तरह के लाभ देखने को मिलते हैं। हनुमान जी हमारे सभी बिगड़े हुए कामों को बना देते हैं और हर विपदा का हल निकाल देते हैं। ऐसे में हमें अपने व्यवसाय, नौकरी, शिक्षा, घर, आर्थिक, सामाजिक इत्यादि किसी भी क्षेत्र में किसी भी तरह की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है तो वह हनुमान जी के कारण समाप्त हो जाती है।

यदि हमें आगे का मार्ग नहीं दिखाई दे रहा है या हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं, यह समझ नहीं आ रहा है तो वह भी हनुमान अष्टक के माध्यम से पता चलता है। एक तरह से हनुमान अष्टक के माध्यम से हमारा जीवन विपदाओं और संकटों से मुक्त हो जाता है जिससे हम निरंतर आगे बढ़ते रह पाते हैं। यही संकट मोचन हनुमान अष्टक के फायदे (Sankat Mochan Hanuman Ashtak) होते हैं।

संकट मोचन हनुमान अष्टक से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: संकटमोचन हनुमान अष्टक पढ़ने से क्या होता है?

उत्तर: संकटमोचन हनुमान अष्टक पढ़ने से मनुष्य के जीवन में जो भी संकट या बाधाएं आ रही है, वह स्वतः ही दूर होती चली जाती है और आगे का मार्ग प्रशस्त होता है

प्रश्न: हनुमान अष्टक का पाठ कब करना चाहिए?

उत्तर: आप दिन के किसी भी समय और किसी भी दिन हनुमान अष्टक का पाठ कर सकते हैं हालाँकि मंगलवार का दिन इसके लिए सबसे शुभ दिन माना जाता है

प्रश्न: क्या हम बजरंग बाण रोज पढ़ सकते हैं?

उत्तर: बजरंग बाण को रोजाना पढ़ा जा सकता है और इसमें कोई बुराई नहीं है बजरंग बाण का प्रतिदिन पाठ करने से आपके जीवन में आ रही समस्याओं का समाधान जल्दी निकल जाता है

प्रश्न: बजरंग बाण का पाठ कब नहीं करना चाहिए?

उत्तर: आपको बिना नहाये या किसी अशुद्ध स्थल पर बजरंग बाण का पाठ नहीं करना चाहिए कुछ लोग इसे रात में पढ़ने को मना करते हैं क्योंकि यह उग्र पाठ होता है

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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