हनुमान जी की आरती | Hanuman Ji Ki Aarti – अर्थ व भावार्थ सहित

Hanuman Ji Ki Aarti

हनुमान जी से संबंधित हर काव्य या रचना जनमानस में प्रसिद्ध है, फिर चाहे वह हनुमान जी की आरती (Hanuman Ji Ki Aarti) हो या हनुमान चालीसा, बजरंग बाण या फिर हनुमानाष्टक। इन सभी का पाठ करने में बहुत ही आनंद आता है और बहुत से लोगों को तो यह कंठस्थ भी होती है। आज के इस लेख में आपको हनुमान जी की सर्वप्रसिद्ध आरती आरती कीजै हनुमान लला की लिरिक्स सहित (Aarti Kije Hanuman Lala Ki Lyrics) पढ़ने को मिलेगी।

इतना ही नहीं, आज हम आपके साथ हनुमान आरती इन हिंदी (Hanuman Aarti Lyrics In Hindi) में भी सांझा करेंगे ताकि आप उसका भावार्थ समझ सकें। लेख के अंत में हनुमान जी की आरती का महत्व व लाभ भी जानने को मिलेगा। तो आइये सबसे पहले पढ़ते हैं आरती कीजै हनुमान लला की।

Hanuman Ji Ki Aarti | हनुमान जी की आरती

आरती कीजै हनुमान लला की,
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।

जाके बल से गिरिवर कांपै,
रोग दोष जाके निकट न झांकै।

अंजनि पुत्र महा बलदाई,
संतन के प्रभु सदा सहाई।

दे बीरा रघुनाथ पठाये,
लंका जारि सिया सुधि लाई।

लंका सो कोट समुद्र सी खाई,
जात पवनसुत बार न लाई।

लंका जारि असुर संहारे,
सीता रामजी के काज संवारे।

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे,
आनि संजीवन प्राण उबारे।

पैठि पाताल तोरि जम कारे,
अहिरावन की भुजा उखारे।

बायें भुजा असुर दल मारे,
दाहिने भुजा संत जन तारे।

सुर नरमुनिजन आरती उतारें,
जय जय जय हनुमान उचारें।

कंचन थार कपूर की बाती,
आरति करत अंजना माई।

जो हनुमानजी की आरती गावै,
बसि बैकुण्ठ अमर फल पावै।

लंका विध्वंस किये रघुराई,
तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई।

आरती कीजै हनुमान लला की,
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।

तो यह थी हनुमान जी की सबसे प्रचलित आरती जिसे हम सभी आरती कीजै हनुमान लला की (Aarti Kije Hanuman Lala Ki Lyrics) के नाम से जानते हैं। वैसे तो हनुमान जी की कई अन्य आरतियाँ भी हैं लेकिन उन सभी में यही आरती सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। ऐसे में यदि आपको हनुमान जी की आरती करनी है तो आप ऊपर लिखी गयी आरती का पाठ कर सकते हैं।

Hanuman Aarti Lyrics In Hindi | हनुमान आरती इन हिंदी

हनुमान जी की आरती तो आपने पढ़ ली लेकिन यदि आपको उसका अर्थ ही नहीं पता होगा तो हनुमान आरती का संपूर्ण लाभ नहीं मिल पायेगा। ऐसे में यदि आप हनुमान जी आरती करने जा रहे हैं तो उसका हिंदी अर्थ भी जान लें। अब हम आपके साथ हनुमान आरती इन हिंदी (Hanuman Aarti In Hindi) में तो सांझा करेंगे ही करेंगे बल्कि साथ के साथ उसका भावार्थ भी बताएँगे।

आरती कीजै हनुमान लला की,
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।

अर्थ: हम सभी वीर हनुमान की आरती करते हैं। वे दुष्टों का संहार करने वाले और श्रीराम के परम भक्त हैं।

भावार्थ:हनुमान जी भगवान शिव के 11वें अंशावतार थे जो श्रीराम की सहायता करने के लिए इस धरती पर आये थे। उन्होंने श्रीराम से मिलन के पश्चात जीवनभर उनके हरेक कष्ट को दूर करने में उनकी सहायता की, फिर चाहे कैसा ही संकट क्यों ना आ पड़ा हो। उनके निश्छल सेवाभाव के कारण ही उन्हें श्रीराम का परम भक्त कहा जाता है। इस तरह से इसके माध्यम से बताया गया है कि ईश्वर का सच्चा भक्त वह होता है जो धन, संपत्ति, वैभव, सम्मान इत्यादि की लालसा किये बिना केवल ईश्वर के सानिध्य में रहने के लिए उनकी सेवा करता है।

जाके बल से गिरिवर कांपै,
रोग दोष जाके निकट न झांकै।

अर्थ: हनुमान जी की शक्ति से बड़े-बड़े पर्वत तक कांप जाते हैं। उनके प्रभाव से किसी भी प्रकार का रोग या मन का कोई दोष हमारे पास भी नही आ सकता है।

भावार्थ:हनुमान जी ने कभी भी शारीरिक परिश्रम में मुहं नहीं फेरा और साथ ही वे प्रतिदिन योग व ध्यान भी करते थे। ऐसे में यदि हम भी उनसे प्रेरणा लेकर प्रतिदिन व्यायाम, योग व ध्यान करते हैं तो फिर हमारा शरीर रोगमुक्त हो जाता है और हम शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ बनते हैं। इसी के साथ ही यदि हम हनुमान जी के चरित्र को अपने मन में उतारते हैं और उनका ध्यान करते हैं तो इससे हमारे अंदर के सभी दोष, अवगुण, नकारात्मक भावनाएं इत्यादि स्वतः ही दूर हो जाती है।

अंजनि पुत्र महा बलदाई,
संतन के प्रभु सदा सहाई।

अर्थ: माँ अंजनी ने एक महान पुत्र को जन्म दिया है जो संतों अर्थात अच्छे लोगों के हमेशा सहायक रहे हैं।

भावार्थ:हनुमान जी का जन्म माँ अंजनी के गर्भ से हुआ था जो सूर्य देव का आशीर्वाद था। उनके अंदर असीम शक्तियां थी जिसका सामना करने का साहस शायद ही कोई जुटा सकता हो। ऐसे में हनुमान जी अपने को मिली इन असीम शक्तियों का उपयोग या दुरुपयोग करने के लिए स्वतंत्र थे लेकिन उन्होंने सदैव अच्छे व संत लोगों की रक्षा करने और अनुचित कार्य करने वालों को दंड देने के लिए ही इसका उपयोग किया। यह हमें शिक्षा देता है कि यदि हमारे पास शक्ति है तो हमें उसका अच्छे कार्य में सदुपयोग करना चाहिए।

दे बीरा रघुनाथ पठाये,
लंका जारि सिया सुधि लाई।

अर्थ: श्रीराम ने उन्हें माता सीता को ढूंढने का महान कार्य दिया था जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक किया। वे रावण की नगरी लंका को जलाकर माता सीता का पता लगाकर आये।

भावार्थ:सीता माता की खोज के लिए भारतवर्ष की चारों दिशाओं में ही विशाल सेनाओं के समूह भेजे गए थे जिसमें से हनुमान ने ही अपनी बुद्धिमता व शक्ति का परिचय दिया। रावण की नगरी लंका में अकेले जाने के लिए साहस व बुद्धि दोनों की आवश्यकता थी जो कि आसान कार्य नहीं था किन्तु हनुमान जी ने यह कार्य बखूबी निभाया। उन्होंने ना केवल लंका में प्रवेश किया बल्कि माता सीता को आश्वस्त कर रावण को चेताने का भी कार्य किया। इस तरह से यह हमें शक्ति के साथ-साथ साहस व बुद्धि का होना भी जरुरी है, यह बताता है।

लंका सो कोट समुद्र सी खाई,
जात पवनसुत बार न लाई।

अर्थ: रामेश्वरम से लंका सौ योजन की दूरी पर थी लेकिन पवन पुत्र हनुमान ने उसे पार करने में एक क्षण भी नही लगाया।

भावार्थ:समुंद्र बहुत ही विशाल था और उसे पार करना बहुत मुश्किल और थका देने वाला था। हनुमान जी चाहते तो बीच-बीच में विश्राम कर आगे बढ़ सकते थे लेकिन उनके मन में स्वयं के विश्राम से पहले अपने प्रभु की पीड़ा थी जिसने उन्हें थकने नहीं दिया। बीच में उन्हें विश्राम करने का अवसर भी मिला लेकिन उन्होंने इसे सहर्ष ठुकरा दिया। यह हमें शिक्षा देता है कि यदि हमारा मन ईश्वरीय भक्ति में है तो इससे हमारी थकान भी स्वतः ही दूर हो जाती है और हमें निरंतर कार्य करते रहने की प्रेरणा मिलती है।

लंका जारि असुर संहारे,
सीता रामजी के काज संवारे।

अर्थ: हनुमान ने लंका को जलाकर नष्ट कर दिया और वहां के राक्षसों का नाश कर दिया। ऐसा करके उन्होंने माता सीता व श्रीराम के कार्यों को और सरल बना दिया।

भावार्थ:हनुमान जी के द्वारा लंका को जलाना कोई साधारण या बिना सोचे-समझे किया गया कार्य नहीं था। हनुमान जी चाहें तो अपनी पूँछ में आग लगाये जाने के बाद सीधा उसे बुझाकर वापस लौट सकते थे, फिर उन्होंने लंका में आग क्यों लगायी? दरअसल उन्होंने पहले ही भांप लिया था कि श्रीराम की सेना को यहाँ तक पहुँचने में अभी समय लगेगा, ऐसे में लंका में आग लगाकर रावण को उसे पुनः व्यवस्थित करने में व्यस्त कर दिया जाए तो प्रभु के कार्य सरल हो जाएंगे।

इसी के साथ ही रावण की सेना का साहस भी डगमगाएगा क्योंकि उन्हें लगेगा कि जब श्रीराम का भेजा गया एक दूत इतना शक्तिशाली है तो पूरी सेना कितनी अधिक शक्तिशाली होगी। इसके अलावा, अभी तक जो राक्षसी माता सीता को दिनरात पीड़ा पहुंचा रही थी, वे युद्ध में श्रीराम के विजयी होने का सोचकर उन्हें कम पीड़ा पहुंचाएगी। इस तरह से उन्होंने हमें शिक्षा दी कि भविष्य में उत्पन्न होने वाली संभावनाओं को देखकर निर्णय लेने की आदत डालें।

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे,
आनि संजीवन प्राण उबारे।

अर्थ: मेघनाद के शक्तिबाण के प्रभाव से लक्ष्मण मूर्छित अवस्था में पड़े थे लेकिन हनुमान जी ने समय पर संजीवनी बूटी लाकर उनके प्राणों की रक्षा की थी।

भावार्थ:लक्ष्मण के पास केवल सूर्योदय तक का ही समय था और उससे पहले उन्हें संजीवनी बूटी नहीं मिलती तो उनके प्राण निकल जाते। ऐसे में एक रात में ही भारत के दक्षिणी छोर से उत्तरी छोर तक जाकर और फिर वहां से संजीवनी बूटी लाने का कार्य असंभव सा प्रतीत हो रहा था। उस असंभव दिखने वाले कार्य को भी हनुमान जी ने अपनी कुशलता से संभव कर दिखाया।

इसी तरह हमारे जीवन में भी बहुत से ऐसे कार्य आते हैं जो हमें असंभव से दिखते हैं लेकिन हमें उनसे डरने या दूर हटने की बजाये, उन्हें किस तरह से किया जाना चाहिए, इस ओर ध्यान देना चाहिए। इस तरह की सोच रखने और निरंतर प्रयास करते रहने से हमें भी उस कार्य में सफलता मिलती है।

पैठि पाताल तोरि जम कारे,
अहिरावन की भुजा उखारे।

अर्थ: जब अहिरावण श्रीराम व लक्ष्मण को पाताल लोक ले गया तब आप ने ही अहिरावण का वध कर श्रीराम व लक्ष्मण को उसके बंधन से मुक्त कराया था।

भावार्थ:पृथ्वी लोक पर रावण की राक्षसी सेना से लड़ना अलग बात है लेकिन पाताल लोक तो है ही राक्षसी नगरी। ऐसे में वहां जाना और फिर अहिरावण के यज्ञ को विफल कर देना भी बहुत चुनौतीपूर्ण था। पांच दिशाओं में रखी अग्नि को एक साथ बुझाना भी असंभव सा ही कार्य था लेकिन हनुमान जी ने उसे भी अपनी बुद्धि से कर दिखाया। इससे हमें पता चलता है कि असंभव कार्य कई तरह के होते हैं जिसमें से कोई कठिन परिश्रम मांगता है तो कोई तीव्र बुद्धि। ऐसे में उस कार्य के लिए किस चीज़ की कितनी जरुरत है, उस पर भी सोच-विचार कर लेना चाहिए।

बायें भुजा असुर दल मारे,
दाहिने भुजा संत जन तारे।

अर्थ: हनुमान जी अपने एक हाथ से (बाहिने) राक्षसों का संहार करते हैं तो दूसरे हाथ से (दाहिने) संतों का भला करते हैं।

भावार्थ:यदि आपने हनुमान जी का चित्र या मूर्तियाँ देखी होंगी तो आपने अवश्य ही यह देखा होगा कि उनके एक हाथ में घोटा होता है तो दूसरा हाथ भक्तों को वर मुद्रा देने में होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि वे अपने घोटे से दुष्ट लोगों को मार गिराते हैं तो वहीं दूसरे हाथ से अपने भक्तों को अभय प्रदान करते हैं। ऐसे में हमें भी केवल एक ही जगह पर ध्यान नहीं लगाना चाहिए, हमारा उद्देश्य बुरे लोगों को सही मार्ग दिखाना तो होना ही चाहिए और उसी के साथ-साथ अच्छे लोगों की भलाई का काम भी होना चाहिए।

सुर नरमुनिजन आरती उतारें,
जय जय जय हनुमान उचारें।

अर्थ: सभी देवतागण, मनुष्य, ऋषि-मुनि आपकी ही आरती करते हैं और आपकी जय-जयकार करते हैं।

भावार्थ:इसमें यह बताया गया है कि हनुमान जी की आरती तो स्वयं देवताओं और बड़े-बड़े ऋषि मुनियों के द्वारा भी उतारी जाती है। यहाँ तक कि सूर्य देव जो उनके पिता हैं, वे भी हनुमान जी की पूजा करते हैं। इस कथन से हमें यह पता चलता है कि कोई भी व्यक्ति अपने कर्मों से महान बनता है। यदि उस व्यक्ति के कर्म श्रेष्ठ हैं तो उसका स्थान देवताओं से भी ऊपर हो जाता है जिस कारण वह उनके लिए भी पूजनीय हो जाता है।

कंचन थार कपूर की बाती,
आरति करत अंजना माई।

अर्थ: आपकी माता अंजनी भी कंचन की थाली में कपूर की बाती जगाकर पूरे विधि-विधान के साथ आपकी आरती करती हैं।

भावार्थ:अब ऊपर ही हमने आपको बता दिया है कि यदि मनुष्य के कर्म महान बन जाते हैं तो वह अपने माता-पिता सहित देवताओं के लिए भी पूजनीय हो जाता है। इसी कारण हनुमान जी की माता अंजनी भी उनकी आरती करती है। अब बहुत से लोगों का प्रश्न होता है कि हनुमान जी की आरती कैसे करते हैं। ऐसे में उनकी आरती करने के लिए आपको कपूर का उपयोग अवश्य करना चाहिए क्योंकि इससे वायु शुद्ध होती है और मन पवित्र होता है।

जो हनुमानजी की आरती गावै,
बसि बैकुण्ठ अमर फल पावै।

अर्थ: जो भक्तगण सच्चे मन से हनुमान जी की आरती करते हैं, वे भवसागर को पार कर बैकुण्ठ में अर्थात विष्णु लोक में स्थान प्राप्त करते हैं।

भावार्थ:यहाँ प्रश्न केवल हनुमान जी की आरती (Hanuman Ji Ki Aarti) करने से ही नहीं है अपितु हनुमान जी के चरित्र से प्रेरणा लेकर उसे अपने मन मस्तिष्क में धारण करने से है। आपने यह भी सुना होगा कि यदि आपको श्रीराम के पास जाना है तो उससे पहले आपको भक्त हनुमान की अनुमति चाहिए होगी और जो हनुमान जी को प्रसन्न कर लेता है तो इसका अर्थ हुआ श्रीराम भी उससे प्रसन्न हो गये। ऐसे में यदि आप सच्चे मन के साथ हनुमान भक्ति करते हैं और उनके बताये मार्ग पर चलते हैं तो अवश्य ही अंतिम समय में मोक्ष प्राप्त करते हैं।

लंका विध्वंस किये रघुराई,
तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई।

अर्थ: श्रीराम ने रावण का वध कर संपूर्ण लंका का राक्षसों सहित विध्वंस कर दिया है और गोस्वामी तुलसीदास जी उनकी कीर्ति का बखान स्वयं करते हैं।

भावार्थ:अंतिम पंक्ति में हनुमान आरती के रचनाकार महर्षि गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा हनुमान के लिए पूजनीय और उनके ईश्वर श्रीराम की महिमा का वर्णन किया गया है। वे हनुमान जी की आरती का समापन श्रीराम को प्रणाम कर करते हैं। वे बता रहे हैं कि श्रीराम ने ही राक्षस राजा रावण का उसकी संपूर्ण सेनासहित वध कर दिया था और हम सभी को उसके आतंक से मुक्त करने का शुभ कार्य किया था।

हनुमान जी की आरती का महत्व (Hanuman Ji Ki Aarti Ka Mahatva)

हनुमान आरती का अपना बहुत महत्व है। ऊपर आपने हनुमान जी की आरती तो पढ़ी ही और उसी के साथ-साथ हनुमान आरती का अर्थ व भावार्थ भी जाना। ऐसे में महर्षि गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान जी की आरती के माध्यम से भक्त हनुमान के गुणों, शक्तियों, कर्मों, उद्देश्य इत्यादि पर प्रकाश डालने का काम किया है।

हनुमान जी की आरती के माध्यम से हमें भक्त हनुमान के बारे में तो पता चलता ही है और उसी के साथ-साथ उनकी आराधना भी हो जाती है। हनुमान आरती करने से ना केवल हम हनुमान जी को प्रसन्न कर रहे होते हैं बल्कि उसके साथ ही श्रीराम व माता सीता को भी प्रसन्न करने का कार्य कर रहे होते हैं। यही हनुमान जी की आरती का महत्व होता है।

हनुमान जी की आरती के फायदे (Hanuman Ji Ki Aarti Ke Fayde)

जो भक्तगण पूरे विधि-विधान के साथ हर दिन हनुमान जी की आरती का पाठ करते हैं, उसको एक नहीं बल्कि कई तरह के लाभ देखने को मिलते हैं। हनुमान जी हमारे सभी बिगड़े हुए कामों को बना देते हैं और हर विपदा का हल निकाल देते हैं। ऐसे में हमें अपने व्यवसाय, नौकरी, शिक्षा, घर, आर्थिक, सामाजिक इत्यादि किसी भी क्षेत्र में किसी भी तरह की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है तो वह हनुमान जी के कारण समाप्त हो जाती है।

यदि हमें आगे का मार्ग नहीं दिखाई दे रहा है या हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं, यह समझ नहीं आ रहा है तो वह भी हनुमान जी की आरती के माध्यम से पता चलता है। एक तरह से हनुमान आरती के माध्यम से हमारा जीवन विपदाओं और संकटों से मुक्त हो जाता है जिससे हम निरंतर आगे बढ़ते रह पाते हैं। यही हनुमान जी की आरती के फायदे होते हैं।

हनुमान जी की आरती से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: आरती की जय हनुमान लला की प्रसिद्ध हनुमान आरती किसकी रचना है?

उत्तर: आरती की जय हनुमान लला की प्रसिद्ध हनुमान आरती महर्षि गोस्वामी तुलसीदास जी की रचना है इस तरह से हम तुलसीदास जी को
आरती कीजै हनुमान लला की के रचयिता कह सकते हैं

प्रश्न: हनुमान जी की आरती के रचयिता कौन है?

उत्तर: हनुमान जी की एक नहीं बल्कि कई आरतियाँ हैं लेकिन उनमें से सबसे प्रसिद्ध आरती आरती की जय हनुमान लला की है जिसे तुलसीदास जी ने लिखा था इस तरह से हनुमान जी की आरती के रचयिता तुलसीदास जी को कहा जा सकता है

प्रश्न: हनुमान जी का दूसरा रूप कौन सा है?

उत्तर: वैसे तो हनुमान जी के एक नहीं बल्कि कई रूप प्रसिद्ध हैं लेकिन यदि उनके दूसरे रूप की बात हो तो उसमें उनका पंचमुखी हनुमान का रूप सर्वप्रसिद्ध है जो उन्होंने भगवान श्रीराम व लक्ष्मण को अहिरावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए धारण किया था

प्रश्न: हनुमान जी जल्दी प्रसन्न कैसे होते हैं?

उत्तर: यदि आप हनुमान जी को जल्दी प्रसन्न करना चाहते हैं तो आपको श्रीराम के बताये मार्ग पर चलना होगा इसी के साथ ही आपको प्रतिदिन हनुमान चालीसा, आरती, बजरंग बाण व संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ करना शुरू करना होगा

प्रश्न: क्या हम बिस्तर पर हनुमान चालीसा पढ़ सकते हैं?

उत्तर: बहुत लोग रात को सोने से पूर्व अपने बिस्तर पर भी हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं ताकि उन्हें बुरे सपने ना आये और अच्छी नींद आये ऐसे में बिस्तर पर हनुमान चालीसा का पाठ करने में कोई बुराई नहीं है

प्रश्न: हनुमान चालीसा की रचना कब और किसने की?

उत्तर: हनुमान चालीसा की रचना महर्षि गोस्वामी तुलसीदास जी ने पंद्रहवीं शताब्दी में की थी उस समय तुलसीदास जी दुष्ट अकबर की कैद में थे और कारावास में रहकर ही उन्होंने हनुमान चालीसा लिख डाली थी

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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