माता सीता की खोज किसने की? जाने हनुमान जी के अलावा बाकियों का योगदान

सीता की खोज (Sita Ki Khoj)

माता सीता की खोज में हनुमान अवश्य ही सफल हुए थे लेकिन इसमें केवल उन्हीं का ही योगदान नहीं था। माता सीता का पता लगाने में हनुमान के अलावा और भी कई लोगों का योगदान रहा था। ऐसे में आपका प्रश्न होगा कि हनुमान के अलावा माता सीता की खोज किसने की (Sita ki Khoj Kisne Ki) थी?

जब दुष्ट रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया था तब ना तो भगवान श्रीराम जानते थे व ना लक्ष्मण कि उनका अपहरण किसके द्वारा किया गया, क्यों किया गया व वह उन्हें कहाँ ले जाया गया है। वे दोनों ही इधर-उधर Mata Sita Ki Khoj में भटक रहे थे। तब मुख्यतया 9 लोगों ने अलग-अलग तरीकों से माता सीता की खोज में योगदान दिया था। आइए जानते हैं उनके बारे में।

माता सीता की खोज किसने की?

आपको यह अच्छे से पता होगा कि जब रावण माता सीता को अपने पुष्पक विमान में बैठाकर लंका नगरी ले जाने लगा था तब उसका सामना सबसे पहले जटायु से हुआ था। जटायु ने माता सीता को बचाने के लिए अपने प्राण तक दे दिए थे। माता सीता का पता लगाने में सबसे पहले इन्होंने ही श्रीराम की सहायता की थी क्योंकि उन्होंने ही श्रीराम को यह सूचित किया था कि माता सीता को कौन उठा ले गया है।

ऐसे ही अलग-अलग महापुरुषों ने अपने-अपने स्तर पर माता सीता का पता लगाने में मदद की थी। हालाँकि अंत में जाकर माता सीता की खोज हनुमान के द्वारा पूरी हो पाई थी। आइए सीता माता की खोज में किस महापुरुष का क्या योगदान रहा था, उसके बारे में विस्तार से जान लेते हैं।

#1. जटायु

जटायु भगवान श्रीराम की कुटिया की सुरक्षा में तैनात थे व रावण को माता सीता को ले जाते हुए सबसे पहले उसी ने देखा था। उसने रावण से युद्ध किया था किंतु उस युद्ध में वह बुरी तरह घायल होकर मरणासन्न की स्थिति में जा पहुँचा था।

जब भगवान श्रीराम माता सीता को खोजते हुए जटायु के पास पहुँचे तो उसने मरने से पहले उन्हें रावण के द्वारा माता सीता के अपहरण करने की बात बताई। इसके बाद जटायु ने अपने प्राण त्याग दिए थे।

#2. कबंध राक्षस

जटायु से रावण के बारे में जानकर भगवान श्रीराम दक्षिण दिशा में आगे की ओर बढ़ रहे थे तभी उन्हें रास्ते में कबंध राक्षस दिखाई दिया। उसके कहने पर भगवान श्रीराम ने उसका वध किया। उसी राक्षस ने श्रापमुक्त होकर शबरी माता का पता दिया जिससे उन्हें अपने आगे का मार्ग मिल सके।

#3. शबरी

शबरी माता बहुत वर्षों से भगवान श्रीराम के आने की प्रतीक्षा कर रही थी। जब अंत में श्रीराम उनकी कुटिया में आए तब उन्होंने उनका बहुत आदर-सत्कार किया व किष्किन्धा के राजा बालि के छोटे भाई सुग्रीव का पता बताया। माता शबरी से सुग्रीव का पता पाकर भगवान राम ऋष्यमूक पर्वत पर उनसे मिलने पहुँचे थे।

#4. सुग्रीव

सुग्रीव से मिलकर भगवान श्रीराम ने उनसे मित्रता की व बाली का वध करके उन्हें किष्किन्धा का राजा बनाया। उसके बाद सुग्रीव ने अपना वचन निभाने के उद्देश्य से वानर सेना को माता सीता की खोज में चारों दिशाओं में भेजा था। एक तरह से महाराज सुग्रीव ने Mata Sita Ki Khoj करने में अपनी पूरी जसना लगा दी थी ताकि उनका जल्द से जल्द पता लगाया जा सके।

#5. अंगद

अंगद किष्किन्धा के राजकुमार, सुग्रीव के भतीजे और पूर्व महाराज बाली के पुत्र थे। सुग्रीव ने भारत की चारों दिशाओं में चार अलग-अलग दल भेजे थे जिसमें से दक्षिण दिशा में भेजा गया दल सबसे महत्वपूर्ण था। ऐसे में उस दल का नेतृत्व अंगद को दिया गया था। अंगद के नेतृत्व में ही वह दल माता सीता की खोज में आगे बढ़ रहा था।

#6. स्वयंप्रभा

दक्षिण दिशा में गए दल को कई दिन बीत गए थे। एक दिन जब उन्हें एक रहस्यमयी गुफा दिखी तो वहाँ उनकी भेंट स्वयंप्रभा से हुई। माता स्वयंप्रभा ने अपनी दिव्य शक्ति से संपूर्ण वानर सेना को भारत के दक्षिणी छोर पर समुद्र किनारे लाकर छोड़ दिया था।

#7. सम्पाती

सम्पाती जटायु के बड़े भाई थे जो दक्षिण तट पर समुंद्र के किनारे रहते थे। जब वानर सेना का एक दल वहाँ पहुँचा तो उन्होंने सम्पाती को सब बात बताई। सम्पाती ने अपनी गिद्ध दृष्टि से माता सीता का पता लगाया व उनके लंका में होने की बात कही। उन्होंने वानर सेना को समुंद्र पार कर लंका में जाकर माता सीता को खोजने को कहा।

#8. जाम्बवंत

वानर सेना के लिए समुंद्र को पार करना असंभव था। स्वयं जामवंत जी बहुत शक्तिशाली थे लेकिन वृद्धावस्था के कारण अब वे इसमें असक्षम थे। इसलिए उन्होंने हनुमान को अपनी भूली हुई शक्तियों को याद करवाया। बचपन में हनुमान एक ऋषि के श्राप के कारण अपनी अद्भुत शक्तियों को भूल गए थे लेकिन जाम्बवंत जी के द्वारा पुनः याद दिलाने के कारण हनुमान के अंदर वही पराक्रम व बल वापस आ गया था।

#9. सीता की खोज में हनुमान

हनुमान स्वयं भगवान शिव के 11वें अंशावतार थे व जाम्बवंत जी के द्वारा उन्हें अपनी शक्तियां याद दिलाने के पश्चात वे सौ योजन का समुंद्र लांघकर लंका पहुँच गए। वहाँ जाकर उन्होंने माता सीता को खोज निकाला व उनसे भेंट की। वापस आकर उन्होंने माता सीता का पता प्रभु श्रीराम को दिया जिसके बाद श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने का निर्णय लिया।

इसलिए जब कभी भी यह पूछा जाता है कि माता सीता की खोज किसने की (Sita ki Khoj Kisne Ki), तो उसमें भक्त हनुमान का ही नाम सामने आता है। यह सही भी है लेकिन हमें माता सीता की खोज करने में अन्य महापुरुषों के योगदान को भी नहीं भूलना चाहिए।

Mata Sita Ki Khoj से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: हनुमान जी ने सीता को कैसे पता लगाया?

उत्तर: हनुमान जी अपनी शक्ति से लंका नगरी पहुँच गए थे वहाँ उन्होंने बहुत छोटा रूप धारण कर लिया था और पूरी लंका नगरी में घूम-घूम कर माता सीता का पता लगाया था

प्रश्न: सीता ने हनुमान को कैसे पहचाना?

उत्तर: पहले तो सीता ने हनुमान को एक मायावी राक्षस समझा किन्तु जब हनुमान जी ने उन्हें श्रीराम की अंगूठी दिखाई तब माता सीता ने उन्हें पहचान लिया

प्रश्न: सीता जी की खोज में जा रहे हनुमान जी की परीक्षा लेने कौन आया था?

उत्तर: सीता जी की खोज में जा रहे हनुमान जी की परीक्षा लेने सुरसा माता एक राक्षसी के रूप में आई थी जो कि नागमाता थी

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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