रामायण के अंगद कौन था? जाने अंगद का जीवन परिचय – जन्म से मृत्यु तक

Angad Ramayan

रामायण में अंगद कौन था (Angad Ramayan) व उसकी क्या कुछ भूमिका रही थी? दरअसल अंगद किष्किंधा के राजा बाली का पुत्र था। बाली वही था जिसने श्रीराम से पहले ही रावण को बुरी तरह पराजित कर दिया था। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात अंगद श्रीराम की सेना के साथ मिल गया तथा रावण की सेना से भीषण युद्ध लड़ा।

युद्ध शुरू होने से पहले श्रीराम ने अंगद को ही शांतिदूत बनाकर रावण के दरबार में भेजा था। वहाँ जाकर अंगद (Ramayan Angad) ने अपनी शक्ति व बुद्धि दोनों का परिचय दिया था। इसलिए आज हम आपके सामने अंगद का जीवन परिचय शुरू से अंत तक रखने जा रहे हैं।

Angad Ramayan | अंगद कौन था?

अंगद के पिता का नाम बाली था। बाली किष्किन्धा के राजा होने के साथ-साथ अत्यंत बलशाली थे। उन्हें वरदान प्राप्त था कि जो कोई भी उससे युद्ध करने आएगा तो उसकी आधी शक्ति बाली के अंदर आ जाएगी। अपनी इसी शक्ति के कारण बाली ने लंका के राजा रावण को हराकर छह माह तक उसकी बेइज्जती की थी।

अंगद की माँ का नाम तारा था जो हिंदू धर्म की पांच सर्वश्रेष्ठ महिलाओं जिन्हें हम पंचकन्या के नाम से जानते हैं, उसमें आती है। अंगद के चाचा का नाम सुग्रीव था। अंगद ने अपनी युवावस्था में ही कई तरह के बदलाव देखे। एक दिन उसे सूचना प्राप्त होती है कि उसके पिता बाली का मायावी राक्षस के द्वारा वध कर दिया गया है तथा उसके चाचा सुग्रीव किष्किन्धा के राजा बन चुके हैं।

उसके कुछ दिनों के पश्चात अंगद के पिता जीवित लौट आते हैं तथा सुग्रीव को देशनिकाला दे देते हैं तथा पुनः किष्किन्धा के राजा बन जाते हैं। इसके बाद अंगद के चाचा बाली से छुपकर ऋष्यमूक पर्वत पर रहने लगते हैं जहाँ उसके पिता ने सुग्रीव पर नज़र रखने का कार्य सौंपा होता है।

एक दिन अंगद (Angad Ramayana) आकर अपने पिता को सूचना देता है कि सुग्रीव से मिलने अयोध्या के दोनों राजकुमार श्रीरामलक्ष्मण आए हैं। इसके कुछ दिनों के पश्चात उसे सूचना मिलती है कि श्रीराम ने उसके पिता बाली का वध कर दिया है। वह तुरंत अपनी माता तारा के साथ युद्धस्थल पर जाता है जहाँ वह देखता है कि बाली श्रीराम के बाण से घायल है जिसके कुछ ही देर में प्राण निकल जाएंगे।

मृत्यु से पहले बाली अंगद को आदेश देता है कि वह जीवनपर्यंत श्रीराम के आदेशों का पालन करे व माता सीता को ढूंढने में उनका सहयोग दे। इसके बाद किष्किन्धा का राजा पुनः सुग्रीव बन जाता है व अंगद को वहाँ का राजकुमार बनाया जाता है। उसकी माँ तारा का विवाह सुग्रीव के साथ हो जाता है।

Ramayan Angad | अंगद का शांतिदूत बनना

श्रीराम के आदेश पर सुग्रीव की वानर सेना को चार दलों में बांटकर चारों  दिशाओं में माता सीता की खोज के लिए भेजा जाता है। इसमें से दक्षिण दिशा में भेजे गए दल का नेतृत्व अंगद को दिया जाता है। उसके दल में हनुमान, जामवंत, नल नील जैसे शक्तिशाली योद्धा होते हैं। यही दल वापस आकर श्रीराम को माता सीता का पता देता है।

इसके बाद अंगद (Angad Ramayan) श्रीराम व वानर सेना के साथ समुंद्र पर रामसेतु बनाकर लंका पहुँच जाता है। वहाँ श्रीराम रावण से युद्ध करने से पहले अंगद को शांतिदूत बनाकर रावण के दरबार में भेजते हैं।श्रीराम अंगद को परामर्श देते हैं कि वह रावण तक उनका शांति संदेश उचित माध्यम के साथ पहुँचा दे तथा उसके ना मानने पर उसे श्रीराम की चेतावनी भी बता दे।

  • अंगद और रावण का संवाद

अंगद श्रीराम का शांति संदेश लेकर श्रीराम के दरबार में जाता है तो उसे बैठने तक को स्थान नहीं दिया जाता। यह देखकर वह अपनी पूँछ को बड़ा करके रावण से भी ऊँचा अपना स्थान बना लेता है तथा वहाँ बैठकर श्रीराम का संदेश पढ़ता है। वह रावण को माता सीता को सम्मानसहित लौटा देने व श्रीराम की शरण में जाने को कहता है। रावण अंगद का परिचय जानकर उससे सहानुभूति जताता है तथा उसके पिता की मृत्यु का प्रतिशोध श्रीराम व सुग्रीव से लेने में सहायता करने का प्रस्ताव रखता है। इसके साथ ही वह अंगद को किष्किन्धा का राजा बनाने को भी कहता है।

अंगद रावण के इस प्रस्ताव को निर्लज्जता के साथ ठुकरा देता है तथा रावण का सभी के सामने अपमान करता है। इससे क्रोधित होकर रावण श्रीराम के शांति संदेश को ठुकरा देता है। तब अंगद रावण को श्रीराम की चेतावनी पढ़कर सुनाता है व कहता है कि अब उसका अंत समय आ गया है व श्रीराम उसका सेना सहित वध कर देंगे।

इसी के साथ अंगद भरी सभा में सभी को चेतावनी देता है कि यदि अभी भी कोई श्रीराम की शरण में जाना चाहता है तो चला जाए अन्यथा बाद में किसी के भी प्राण नहीं बचेंगे। रावण के दरबार में सभी योद्धा एक छोटी आयु के वानर के द्वारा ऐसी बड़ी-बड़ी बातें करने पर उसका उपहास करते हैं।

  • अंगद की रावण के योद्धाओं को चुनौती

अपना उपहास होता देखकर अंगद रावण की सभा में सभी को चुनौती देते हैं कि जो कोई भी उसका पैर भूमि से उठा देगा तो वह अपनी हार स्वीकार कर लेगा तथा श्रीराम बिना युद्ध किए अपनी सेना वहाँ से लेकर लौट जाएंगे। यह कहकर अंगद अपनी प्राण विद्या के सहारे बायां पैर धरती पर जमा देता है।

फिर एक-एक करके रावण के दरबार में उपस्थित सभी योद्धा आते हैं लेकिन अंगद का पैर नहीं उठा पाते। रावण का शक्तिशाली पुत्र मेघनाद भी अंगद का पैर उठाने में अक्षम होता है। यह देखकर अंत में रावण अंगद का पैर उठाने अपने सिंहासन से उठकर नीचे आता है। रावण को आता देखकर अंगद अपना पैर हटा लेता है तथा उसे श्रीराम के पैर पकड़ने को कहता है। इतना कहकर अंगद ठोकर मारकर रावण का मुकुट उतारकर बाहर श्रीराम के चरणों में फेंक देता है व तेज गति से महल के बाहर चला जाता है।

अंगद का युद्ध

तब श्रीराम व रावण की सेनाओं का युद्ध शुरू हो जाता है जिसमें अंगद भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह युद्ध में रावण के कई शक्तिशाली योद्धाओं का अंत कर देता है। जब रावण का छोटा भाई कुंभकरण युद्धभूमि में आता है तो अंगद भी उससे लड़ने जाता है। कुंभकरण वानरों को चींटियों की भाँति मसलता हुआ आगे बढ़ रहा था लेकिन वह भी अंगद की शक्ति से प्रसन्न होता है।

इसी तरह अंगद (Angad Ramayana) ने युद्ध में कई शक्तिशाली योद्धाओं का सामना किया था और श्रीराम की सहायता की थी। अंगद की सुरक्षा के लिए किष्किंधा नगरी और वानरों के सेनापति नल-नील, हनुमान व जामवंत हमेशा ही लामबंद हुए दिखाई देते हैं। वह इसलिए क्योंकि अंगद किष्किंधा का राजकुमार होता है। रावण वध के पश्चात वह श्रीराम के साथ उनका राज्याभिषेक देखने अयोध्या जाता है तथा कुछ दिनों के पश्चात पुनः किष्किन्धा नगरी आ जाता है।

अंगद का राज्याभिषेक

किष्किंधा नगरी आकर अंगद अपने चाचा सुग्रीव के साथ किष्किंधा नगरी को संभालने का कार्य कर रहा होता है। सुग्रीव कहीं भी जाते हैं तो किष्किंधा संभालने का दायित्व अंगद पर ही होता है। उदाहरण के तौर पर जब सुग्रीव श्रीराम के द्वारा आयोजित किए गए अश्वमेध यज्ञ में जाते हैं तो वे अंगद पर ही राज्य का भार सौंप कर जाते हैं।

फिर एक समय ऐसा आता है जब सुग्रीव अंगद को राज्य का भार पूरी तरह से सौंप देते हैं। दरअसल श्रीराम के द्वारा सुग्रीव को यह सूचना पहुँचाई जाती है कि वे जल्द ही सरयू नदी में जल समाधि लेने वाले हैं। यह सुनकर सुग्रीव भी श्रीराम के साथ ही जल समाधि लेने का निर्णय लेते हैं। इसलिए वे अंगद का किष्किंधा के अगले राजा के रूप में राज्याभिषेक कर देते हैं और स्वयं अयोध्या जल समाधि लेने के लिए चले जाते हैं।

अंगद की मृत्यु कैसे हुई?

अंगद की मृत्यु कैसे और कहाँ हुई थी, इसके बारे में रामायण या रामचरितमानस में कोई उल्लेख नहीं मिलता है। रामायण का हर संस्करण श्रीराम के द्वारा जल समाधि लेते ही समाप्त हो जाता है। संभव है कि इसके बाद अंगद ने कई वर्षों तक किष्किंधा नगरी पर शासन किया होगा। फिर एक दिन वृद्ध हो जाने पर शांतिपूर्वक अपने प्राण त्याग दिए होंगे।

इस तरह से आज आपने अंगद कौन था (Angad Ramayan) और रामायण में उसकी क्या कुछ भूमिका रही थी, इसके बारे में जान लिया है। अंगद को रावण की सभा में सभी राक्षसों को चुनौती देने और अपने पैर जमाने के कारण आज तक याद किया जाता है।

अंगद रामायण से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: अंगद किसका अवतार है?

उत्तर: अंगद किसी का भी अवतार नहीं था उसके पिता बाली किष्किंधा नगरी के महाराज थे जो वानर जाति से थे बाली सूर्य देव के पुत्र थे जिस कारण अंगद सूर्य देव का पोता था

प्रश्न: अंगद के पिता को किसने मारा?

उत्तर: अंगद के पिता बाली को भगवान श्रीराम ने मारा था बाली ने अपने छोटे भाई सुग्रीव की पत्नी रुमा का बिना उसकी इच्छा के और सुग्रीव के जीवित रहते अपहरण किया था जिस कारण उसे यह दंड मिला था

प्रश्न: क्या अंगद मंदोदरी का पुत्र है?

उत्तर: नहीं, अंगद मंदोदरी का पुत्र नहीं है अंगद के माता और पिता का नाम तारा और बाली था तारा पंच कन्या में से एक और बाली किष्किंधा का महाराज था

प्रश्न: रामायण में अंगद कैसे थे?

उत्तर: रामायण में अंगद की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है अंगद ने अपने पिता के आदेश पर हमेशा श्रीराम की सेवा करने का निर्णय लिया था अपने चाचा सुग्रीव के बाद अंगद ही किष्किंधा नगरी का राजा बना था

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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