आज हम दीपावली पर निबंध (Deepawali Essay In Hindi) लिखने जा रहे हैं और उसके माध्यम से आपको दीपावली का संदेश देंगे। हम हर वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली का त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते है। इस दिन को हम भगवान श्रीराम के चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात पुनः अयोध्या नगरी आगमन की खुशी में मनाते हैं। यह घटना आज से लाखों वर्ष पूर्व त्रेता युग में घटित हुई थी जब श्रीराम ने अपने पिता के वचनों का पालन करने के लिए सहजता से चौदह वर्ष के कठिन वनवास को स्वीकार कर लिया था व इसी दिन वापस अयोध्या लौटे थे।
किंतु क्या आपने कभी ध्यान दिया हैं कि तब से लेकर आज तक यह त्यौहार इतनी धूमधाम से क्यों आयोजित किया जाता हैं? श्रीराम के रूप में भगवान विष्णु का मुख्य लक्ष्य तो पापी रावण का अंत करना था व हम सभी उस दिन को दशहरा के रूप में मनाते हैं। फिर क्यों दिवाली का इतना महत्व (Deepawali Par Nibandh) हैं? आखिर यह त्यौहार हमे क्या शिक्षा व संदेश देकर जाता है? आइए जानते हैं।
दीपावली पर निबंध (Deepawali Essay In Hindi)
आज हम आपके साथ दिवाली पर्व से मिलती शिक्षा के बारे में ही बात करेंगे। दरअसल श्रीराम का लक्ष्य केवल पापी रावण का अंत करना ही नही था। यदि उनका लक्ष्य केवल रावण का अंत करना ही होता तो भगवान को कभी भी इतने जतन नही करने होते और वे अपने पूर्व के अवतारों की भांति सीधा उसका वध कर देते जिस प्रकार उन्होंने वराह व नृसिंह अवतार में हिरण्याक्ष व हिरन्यकश्यप का किया था।
श्रीराम के रूप में उन्होंने एक शिशु रूप में जन्म से लेकर सरयू नदी में देहत्याग तक मनुष्य जीवन के सभी कर्तव्य व संस्कारो का निर्वहन करके जीवन जीने के एक उच्च आदर्श स्थापित किए थे। इस रूप में उन्होंने मानवता का जो संदेश दिया वह युगों-युगों तक एक प्रेरणा बन गया। इन्ही आदर्शों को आत्म-सात करने व आगे आने वाली पीढ़ी को इसके बारे में बताने व इसकी महत्ता को समझाने के उद्देश्य से ही इस पर्व को सदियों से आयोजित किया जा रहा है।
आइए जानते हैं त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने अपने व अपने परिवार के द्वारा हम सभी को क्या-क्या शिक्षाएं मुख्य रूप से दी।
#1. श्रीराम ने मिलती दीपावली की शिक्षा
श्रीराम का तो संपूर्ण जीवन एक आदर्श था। आप उनके जीवन के हर पहलु से शिक्षा प्राप्त कर सकते है। वह एक निरासक्त भाव की मूर्ति थे। उनके अंदर मनुष्य को गलती का आभास हो जाने पर उसको क्षमा कर देने का गुण प्रधान था। उन्होंने जीवनपर्यंत केवल और केवल धर्म का साथ दिया व कभी भी अन्याय का आश्रय नही लिया।
आइए दीपावली पर निबंध की शुरुआत (Deepavali Essay In Hindi) भगवान श्रीराम के जीवन से मिलती शिक्षा से करते हैं।
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राज सिंहासन से ऊपर पिता के वचन
एक रात्रि पूर्व ही श्रीराम के अयोध्या के राजसिंहासन पर राज्याभिषेक की घोषणा हुई थी। अयोध्या की संपूर्ण प्रजा श्रीराम के साथ थी लेकिन अगली सुबह उन्हें ज्ञात हुआ कि उनकी सौतेली माँ कैकेयी के द्वारा उनके पिता दशरथ से वचन मांग लिया गया था कि अयोध्या का राज्याभिषेक उनके पुत्र भरत को मिले और श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास।
जब वे अपने पिता के कक्ष में गए तब वे रो रहे थे व उन्होंने श्रीराम को विद्रोह कर अयोध्या का राजसिंहासन हड़प लेने तक की भी सलाह दे दी थी। लेकिन जो श्रीराम ने किया वह हम सभी जानते हैं। उन्होंने सहजता से अपने पिता के वचनों का पालन करने के लिए चौदह वर्ष के वनवास को स्वीकार कर लिया व वन में चले गए।
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पारिवारिक द्वेष की सम्मान से काट
श्रीराम को वनवास दिलाने में उनकी सौतेली माँ कैकेयी की महत्वपूर्ण भूमिका थी लेकिन श्रीराम ने कभी भी उनका अनादर नही किया। यहाँ तक कि जब उनके भाई लक्ष्मण व मित्र निषादराज गुह के द्वारा उनकी माँ कैकेयी के लिए दुश्वचन कहे गए तब उन्होंने उन दोनों को भी रोक दिया व अपनी माता का सम्मान करने के लिए कहा। उन्होंने जीवनपर्यंत कभी भी कैकेयी को उनकी गलती के लिए दोषी नही ठहराया व हमेशा उनकी पुत्र की भांति सेवा की।
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ईश्वर सबके है
एक बहुत अच्छी शिक्षा श्रीराम ने माता शबरी की कुटिया में जाकर दी। जब माता सीता का रावण के द्वारा अपहरण कर लिया गया था तब श्रीराम माता सीता की खोज में शबरी के गाँव में पहुंचे थे। वहां कई आलिशान महल व धन-धान्य से संपन्न घर थे लेकिन उन्होंने एक निर्धन शबरी की कुटिया को विश्राम के लिए चुना। शबरी श्रीराम की इतनी बड़ी भक्त थी कि उसने अनजाने में अपने झूठे बेर प्रभु को खाने को दे दिए थे।
हम कभी भी यह सोच भी नही सकते हैं कि हम भगवान की मूर्ति को भी झूठे भोजन का भोग लगाएंगे लेकिन शबरी ने तो साक्षात प्रभु के सामने झूठा भोजन खाने को रख दिया। शबरी के दिए वह झूठे बेर खाकर भी श्रीराम ने यह शिक्षा दे दी कि यदि भगवान को सच्चे मन व श्रद्धा से झूठा भोजन भी दे दिया जाए तो वे उसे सहजता से स्वीकार कर लेते हैं।
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अधिक पाने की कोई लालसा नहीं
जब श्रीराम ने वानरराज सुग्रीव की सेना के साथ लंका पर चढ़ाई कर दी व एक-एक करके सभी राक्षसों का वध कर दिया व अंत में रावण का भी अंत हो गया तब लंका की सेना ने श्रीराम के सामने आत्म-समर्पण कर दिया था। अब श्रीराम के चरणों में लंका का राजमुकुट पड़ा था व लंका की सेना उनके सामने नतमस्तक थी।
उस समय श्रीराम ने जो कहा वह आदर्श स्थापित हो गया। उन्होंने उसी समय संपूर्ण लंका में यह घोषणा कर दी कि उनका लक्ष्य कभी भी लंका पर अधिकार करना व उसे अयोध्या के अधीन करना नही था। उनका लक्ष्य केवल पापियों का विनाश करना व अपनी पत्नी सीता को सम्मानसहित वापस पाना था। इतना कहकर उन्होंने लंका पुनः लंकावासियो को सौंप दी व उसका राजा रावण का छोटा भाई विभीषण को बना दिया।
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राजधर्म सबसे ऊपर
श्रीराम के आदर्शो व संस्कारो की परीक्षा तब आयी जब अयोध्या की प्रजा के द्वारा माता सीता के चरित्र पर कलंक लगाया जाने लगा। अपनी प्रजा के द्वारा यह सुनकर श्रीराम बहुत विचलित हो गए थे व माता सीता के साथ सब कुछ छोड़कर वन में जाने का मन बना चुके थे। लेकिन उस समय उन्होंने राजधर्म का पालन किया।
राजधर्म के अनुसार जो व्यक्ति राजा होता हैं उसकी निजी राय के कुछ मायने नही होते व ना ही उसका परिवार व रिश्ते राजकाज में आड़े आने चाहिए। उसे जीवनभर अपनी प्रजा के अनुसार कार्य करना चाहिए। इसी का पालन करते हुए उन्होंने माता सीता का त्याग कर दिया व माता सीता वन में चली गयी।
#2. माता सीता ने दिया दीपावली का संदेश
श्रीराम की ही भांति माता सीता ने भी हमे जो शिक्षा दी उसका उदाहरण आज तक दिया जाता है। उन्होंने मनुष्य को महिला की शक्ति का जो परिचय दिया व युगों-युगों तक एक प्रेरणा स्रोत है। माता सीता के द्वारा जो सबसे मुख्य रूप से शिक्षा दी गयी, दीपावली पर निबंध (Deepawali Essay In Hindi) के तहत आज हम आपको उसी के बारे में बताएँगे।
- जब चौदह वर्ष का वनवास समाप्त हो चुका था, रावण का वध हो चुका था, माता सीता पुनः अयोध्या लौट आयी थी, श्रीराम का राज्याभिषेक भी हो चुका था व सबकुछ हंसी-खुशी चल रहा था, उसी समय माता सीता को पता चलता हैं कि अयोध्या की प्रजा में दबे आवाज में माता सीता के चरित्र पर संदेह किया जा रहा हैं।
- उन्हें अपने गुप्तचरों के माध्यम से पता चला कि उनके लंका में एक वर्ष तक बंदी रहने के कारण अयोध्या की प्रजा यह चाहती हैं कि श्रीराम के द्वारा उनका त्याग कर दिया जाए।
- माता सीता चाहती तो उन प्रजवासियो का मुहं बंद करवा सकती थी, कुछ लोगों का वध करवा सकती थी, कुछ को डराया धमकाया जा सकता था, सेना का डर दिखाया जा सकता था।
- यहाँ तक कि श्रीराम ने उनके लिए अयोध्या का राजसिंहासन त्याग देने व उनके साथ वन में रहने की बात तक कह दी थी। लेकिन माता सीता ने इनमे से कुछ नही चुना, उन्होंने निर्णय लिया कि अयोध्या की प्रजा के निर्णय के फलस्वरूप वे अयोध्या व श्रीराम को हमेशा के लिए छोड़कर वन में चली जाएँगी लेकिन क्यों?
- दरअसल यह निर्णय करके माता सीता ने स्त्री शक्ति का परिचय दे दिया। जी हां, इस विश्व में केवल हिंसा से ही कार्य नही लिया जा सकता क्योंकि हिंसा केवल शरीर को क्षति पहुंचाती हैं लेकिन माता सीता ने जिस चीज़ पर चोट पहुंचाई वह था मनुष्य का मन।
- यदि मनुष्य के मन पर चोट कर दी जाए तो ना केवल वह हार जाता हैं बल्कि इससे मिली शिक्षा युगों-युगों तक प्रेरणा बन जाती है। और यही हैं स्त्री का सबसे बड़ा अस्त्र जिसका प्रयोग माता सीता ने किया था।
#3. लक्ष्मण की दिवाली की शिक्षा
जहां कही भी एक आदर्श भाई का उदाहरण दिया जाता हैं तब-तब लक्ष्मण जैसे भाई का नाम उसमे सदैव ऊपर रहता है। आखिर एक छोटे भाई का क्या कर्तव्य होता है यह लक्ष्मण ने भलीभांति बता दिया था। दीपावली पर निबंध (Deepawali Par Nibandh) के तहत आइए जाने भाई लक्ष्मण ने क्या शिक्षा दी थी।
- चौदह वर्ष का वनवास केवल श्रीराम को मिला था, लक्ष्मण को नही। फिर भी उन्होंने छोटे भाई के रूप में अपना कर्तव्य समझते हुए श्रीराम के साथ चौदह वर्ष वन में जाने के निर्णय लिया।
- यह निर्णय लेने के पश्चात वे अपनी पत्नी उर्मिला से मिलने गए। तब पता हैं उन्होंने उर्मिला से क्या कहा? उनकी पत्नी उर्मिला भी अपने पति के साथ वन में जाने की तैयारी कर रही थी लेकिन लक्ष्मण ने उन्हें अपने साथ ले जाने से मना कर दिया।
- उन्होंने उर्मिला से कहा कि वे वन में अपने बड़े भाई व भाभी की सेवा करने के उद्देश्य से जा रहे हैं और यदि उर्मिला भी उनके साथ चलेंगी तो वे सही से उनकी सेवा नही कर पाएंगे क्योंकि उर्मिला की सुरक्षा का भार भी उनके कंधो पर होगा। साथ ही उन्होंने अपनी पत्नी उर्मिला को चौदह वर्ष तक राजमहल में रहकर माताओं की सेवा करने को कहा।
- यहाँ तक कि वनवास के प्रथम दिन जब निद्रा देवी उनके पास आयी तब उन्होंने यह कहकर उन्हें भेज दिया कि अब वे चौदह वर्ष तक सो नही सकते क्योंकि रात में उन्हें जागकर श्रीराम व माता सीता की सुरक्षा करनी है। ऐसा था लक्ष्मण का अपने भाई के प्रति प्रेम।
#4. माता सुमित्रा का दिवाली संदेश
सुमित्रा लक्ष्मण की माँ थी और श्रीराम व भरत दोनों उनके सौतेले पुत्र। यह सब जो घटनाक्रम हुआ उसमे उनका व उनके दोनों पुत्रों का कुछ लेनादेना नही था। कौशल्या के पुत्र श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास हुआ था व कैकेयी के पुत्र भरत के राज्याभिषेक की घोषणा। दूसरी ओर उनके खुद के बड़े पुत्र लक्ष्मण ने श्रीराम की सेवा करने के लिए स्वयं वनवास में जाने का निर्णय लिया था जिसके बारे में उन्हें पता नही था। लक्ष्मण सहमे मन से अपनी माँ से इसकी आज्ञा मांगने उनके कक्ष में आए।
जब लक्ष्मण अपनी माँ सुमित्रा के कक्ष में आए तब उनके कुछ बोलने से पहले ही उनकी माँ सुमित्रा ने पता हैं क्या कहा? सुमित्रा ने लक्ष्मण को आदेश दिया कि वह अपने बड़े भाई श्रीराम की सेवा करने के लिए उनके साथ चौदह वर्ष वन में जाए व उनकी भरपूर सेवा करे। उन्होंने लक्ष्मण से कहा कि यदि श्रीराम को कुछ भी हुआ तो वे कभी भी अपना मुख उन्हें ना दिखाए। अपनी माँ के द्वारा इन वचनों को सुनकर लक्ष्मण की आँखों से असहज ही आसुओं की धारा फूट पड़ी थी।
एक ओर कैकेयी जैसे सौतेली माँ थी, जिसने अपने पुत्र को अयोध्या का राज दिलवाने के लिए श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास दिलवा दिया था और दूसरी ओर, सुमित्रा जैसी सौतेली माँ, जिसने अपने ही पुत्र को अपने सौतेले पुत्र की सेवा करने के लिए सहजता से वन में भेज दिया था।
#5. भरत के द्वारा दिवाली की सीख
दीपावली पर निबंध (Deepavali Essay In Hindi) के तहत अब जानते हैं श्रीराम के एक और भाई भरत ने क्या आदर्श स्थापित किए थे। श्रीराम चौदह वर्ष के लिए वनवास में जा चुके थे। उनके साथ उनकी पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण भी वनवास में गए थे। उनके पिता दशरथ का श्रीराम के वियोग में निधन हो चुका था लेकिन भरत इन सब बातों से अनभिज्ञ थे।
फिर एक दिन तुरंत उन्हें कैकेय से अयोध्या बुलाया गया। वहां उन्हें मंथरा के द्वारा सबसे पहले कैकेयी के कक्ष में ले जाया गया व सब बात बतायी गयी। कैकेयी भरत को बताते हुए बहुत खुश हो रही थी कि अब वे अयोध्या के राजा है।
उस समय भरत के पास अयोध्या का राज सिंहासन था व कोई भी इसका विरोध नही कर सकता था। राजसिंहासन के दावेदार श्रीराम को तो चौदह वर्ष का वनवास मिल चुका था जिसके लिए वे वन में थे। वे सहजता से अयोध्या का राजसिंहासन स्वीकार कर सकते थे लेकिन पता हैं उन्होंने क्या किया?
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सिंहासन से बड़ा भाई का रिश्ता
उन्होंने उसी समय अपनी माँ कैकेयी का हमेशा के लिए त्याग कर दिया व श्रीराम की माँ कौशल्या के कक्ष में जाकर उनके चरणों में गिरकर बुरी तरह विलाप करने लगे व अपनी माँ के कुकर्मो के लिए क्षमा मांगने लगे। अपने पिता दशरथ का अंतिम संस्कार कर वे अपने परिवार व अयोध्या की प्रजा के साथ वन को निकल पड़े व चित्रकूट में जाकर श्रीराम के चरणों में गिरकर क्षमा मांगी।
क्या आप विचार भी कर सकते हैं कि कलियुग में आपको कोई ऐसा उदाहरण देखने को मिलेगा? एक सौतेला भाई अपने हाथ में आए सब धन-संपदा, सत्ता इत्यादि का त्याग कर अपना कर्तव्य निभाने के लिए निकल पड़े। अब देखिये कर्तव्य की सुंदरता। भरत द्वारा श्रीराम को वापस चलने की याचना भी श्रीराम ने ठुकरा दी क्योंकि उन्हें अपने पिता के वचनों का पालन करना था।
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धर्म व कर्तव्य दोनों का किया पालन
तब भरत चित्रकूट से अयोध्या तक श्रीराम की चरण पादुका को अपने मस्तक पर रखकर नंगे पैर पैदल आये थे व संपूर्ण सभा के सामने वह चरण पादुका राजसिंहासन पर रख दी थी व स्वयं को श्रीराम का एक सेवक बताया था। यही नही, उन्होंने अयोध्या के निकट एक गाँव में श्रीराम की भांति एक वनवासी का जीवन व्यतीत करने का निर्णय लिया था। उन्होंने सोने के लिए भी धरती में गड्डा बनाया व उसमे सोते थे ताकि उनका स्थान हमेशा श्रीराम से नीचे रहे।
निष्कर्ष
दीपावली पर निबंध (Deepawali Essay In Hindi) और उससे मिलती शिक्षा पर लिखने को तो बहुत कुछ हैं। वह इसलिए क्योंकि रामायण का हर एक चरित्र अपने आप में एक आदर्श हैं फिर चाहे वह उर्मिला का बलिदान हो, हनुमान की भक्ति हो, शबरी का समर्पण हो या निषादराज व सुग्रीव की मित्रता हो।
इन्हीं सभी आदर्शों के कारण हमारे जीवन में दीपावली की भूमिका अत्यंत महत्वपुर्ण हो जाती हैं क्योंकि रामायण के द्वारा हमें जीवन व रिश्तो के बारे में जो उच्च आदर्श मिलते हैं, वह हमे कहीं और से नही मिल सकते।
दीपावली पर निबंध से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: दिवाली से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर: दिवाली से हमें एक नहीं बल्कि कई शिक्षाएं मिलती है। यह शिक्षा हमें भगवान श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण, भरत, सुमित्रा इत्यादि के जीवन चरित्र को देखकर मिलती है।
प्रश्न: दीपावली के त्योहार से हम क्या सीखते हैं?
उत्तर: दीपावली के त्यौहार से हम यह सीख सकते हैं जीवन में परिवार और रिश्तों का क्या महत्व होता है। पैसा, धन इत्यादि कभी भी परिवार या रिश्तों से ऊपर नहीं होता है।
प्रश्न: दीपावली से हमें क्या संदेश मिलता है?
उत्तर: दीपावली से हमें यह संदेश मिलता है कि हमें कभी भी अपने धर्म या कर्तव्य का पालन करना नहीं छोड़ना चाहिए। धर्म के मार्ग पर चलकर ही हमारा उद्धार हो सकता है।
प्रश्न: दीपावली का हमारे जीवन में क्या महत्व है?
उत्तर: दीपावली का हम सभी के जीवन में बहुत महत्व है। यह हमें अपने परिवार के साथ मेलझोल बढ़ाने, सभी का सम्मान करने और धर्म के मार्ग पर आगे बढ़ने की शिक्षा देती है।
नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:
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