रामायण में रावण कौन था (Ravan Kaun Tha) और क्यों भगवान विष्णु को उसका वध करने के लिए अवतार लेना पड़ा था? त्रेता युग में जन्मा रावण एक ऐसा दुष्ट राक्षस था जो भगवान शिव का भी अनन्य भक्त था। उसका जन्म ब्राह्मण-राक्षस कुल में हुआ था लेकिन उसके अंदर राक्षस प्रवत्ति के गुण ज्यादा थे। ब्राह्मण होने के कारण उसे समस्त वेदों व शास्त्रों का अच्छे से ज्ञान था लेकिन उसके कर्म राक्षसों के समान थे।
रावण (Ramayan Ravan) ने अपने जीवन में कई वरदान प्राप्त किए थे लेकिन उसकी सबसे बड़ी भूल माता लक्ष्मी के अवतार माता सीता का हरण करना था। इस घटना ने रावण समेत उसके कुल का नाश कर दिया था। रावण के पापकर्म ही ऐसे थे कि भगवान विष्णु को पृथ्वीलोक पर अवतार लेना था। आज हम आपको रावण के जन्म से लेकर उसके वध तक की कथा का वर्णन करेंगे।
Ravan Kaun Tha | रावण कौन था?
सप्त ऋषियों व दस मुख्य प्रजापतियों में से एक महर्षि पुलस्त्य के पुत्र महान ऋषि विश्रवा हुए। दूसरी ओर राक्षस कुल में सुमाली के दस पुत्रो व चार पुत्रियों में से एक कैकसी थी। सुमाली अपनी राक्षसी पुत्री कैकसी का विवाह उच्च कोटि के पुरुष से करवाना चाहते थे लेकिन उन्हें पृथ्वी पर कोई भी ऐसा महान राजा दिखाई नही दिया।
अंत में कैकसी ने महान ऋषि विश्रवा को अपने पति रूप में चुन लिया। ऋषि विश्रवा का पहले से ही एक पुत्र था जिसे धन का देवता कुबेर के नाम से जाना जाता हैं। कैकसी से उनके विवाह के पश्चात उन्हें रावण पुत्र रूप में प्राप्त हुआ। रावण (Ramayana Ravana) को कई नामो से जाना जाता हैं जो उसकी विभिन्न विशेषताओं को दिखाता है, जैसे कि:
- दशानन/ दशग्रीव/ दशाकंथा: दस सिर होने के कारण।
- लंकापति/ लंकेश/ लंकेश्वर: लंका का राजा होने के कारण।
रावण का परिवार
रावण के अलावा महर्षि विश्रवा व कैकसी के कई अन्य पुत्र-पुत्रियाँ भी हुए। रावण के सात भाई व दो बहने थी जिनके नाम हैं:
इन सभी भाई-बहनों में कुबेर सबसे बड़े व धार्मिक प्रवत्ति के प्राणी थे क्योंकि उनके माता-पिता दोनों ब्राह्मण थे। विभीषण राक्षस पुत्र होने के बाद भी भगवान विष्णु का भक्त था। अन्य सभी में राक्षसी प्रवत्ति के गुण विद्यमान थे।
रावण की तीन पत्नियाँ थी जिनमे मुख्य मंदोदरी थी। अन्य दो में एक का नाम धन्यमालिनी था तथा तीसरी का नाम कही लिखित नही हैं। इन तीन पत्नियों से रावण को 6 पुत्र प्राप्त हुए, जिनके नाम हैं:
- मेघनाद
- अक्षय कुमार
- अतिकाय
- नारंतक
- देवांतक
- त्रिशिरा
रावण का लंका का राजा बनना
पहले लंका का राजा कुबेर था जिसके पास पुष्पक विमान भी था। कुबेर को पुष्पक विमान देवशिल्पी विश्वकर्मा जी ने बनाकर दिया था। जब रावण बड़ा हो गया तब उसने अपनी शक्ति के प्रभाव से कुबेर से लंका छीन ली तथा स्वयं लंका का स्वामी बन गया। रावण के भय से कुबेर लंका को छोड़कर चले गए।
अब रावण का लंका पर एकछत्र राज था। उसके भाई व पुत्र शासन सँभालने में उसकी सहायता करते थे। अपने दो भाइयों खर-दूषण को उसने समुंद्र के उस पार दंडकारण्य के वनों में छावनी बनाने का आदेश दिया था।
रावण की शक्तियां व वरदान
रावण ने अपने दो भाइयो कुंभकरण व विभीषण के साथ मिलकर हजारो वर्षों तक भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या की। इससे रावण को कई वरदान प्राप्त हुए। उसने भगवान ब्रह्मा के बनाए किसी भी प्राणी से अपनी मृत्यु ना होने का वरदान माँगा लेकिन मनुष्य व वानर को छोड़कर। रावण मनुष्य व वानर को तुच्छ समझता था इसलिये उसने अपने वरदान में इन दोनों को नही माँगा।
इसके साथ ही रावण (Ramayan Ravan) ने अपनी नाभि में अमृत भी पा लिया जो उसे कभी मरने नही देता था। यदि किसी कारणवश रावण का वध भी हो जाता तो उसकी नाभि का अमृत उसे पुनः जीवित कर देता।
रावण की शिव भक्ति
रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। उसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बहुत प्रयास किए थे। एक बार उसने अपने हाथ से कैलाश पर्वत को उठाने का प्रयास किया था तब भगवान शिव ने अपने पैर के भार से रावण का हाथ कैलाश पर्वत के नीचे दबा दिया था।
अपने हाथ के दबने के बाद भी रावण शिव की भक्ति करता रहा। रावण को वीणा बजाने में बहुत रुचि थी। वह भगवान शिव के तांडव की धुन को अपनी वीणा पर बजाकर उन्हें सुनाया करता था। इससे प्रसन्न होकर महादेव ने रावण को एक शक्तिशाली खड्ग व लिंगम उपहार में दिया था।
रावण के अत्याचार
इन वरदानो को पाने के पश्चात रावण की शक्तियां और अधिक बढ़ गयी। इसके साथ ही उसकी तीनो लोको को जीतने की महत्वाकांक्षा भी बढ़ गयी थी। उसने पाताल लोक को जीतने के लिए अपनी बहन शूर्पनखा के पति विद्युत्जिव्ह का भी वध कर डाला था। इसके बाद शूर्पनखा ने मन ही मन रावण के सर्वनाश करने की प्रतिज्ञा कर ली थी।
रावण ने पाताल लोक पर अधिकार कर वहां का राजा अपने भाई अहिरावण को बना दिया था। पृथ्वी लोक के कई राजाओं को भी उसने परास्त कर दिया था। उसके पुत्र मेघनाद ने देवराज इंद्र को परास्त कर बंदी बना लिया था तथा उसका वध करने वाला था। तब भगवान ब्रह्मा ने आकर इंद्र के प्राणों की रक्षा की थी।
सभी ग्रह व नक्षत्र रावण के नाम से भय खाते थे। उसने अपनी ही पुत्रवधू रंभा के साथ दुराचार किया था जिस कारण उसे अपने भतीजे नलकुबेर से श्राप मिला था कि वह किसी भी परायी स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध दुष्कर्म करने का प्रयास करेगा तो वह जलकर भस्म हो जाएगा।
रावण अपने राज सिंहासन पर अपने पैरों के नीचे शनि देव को रखता था तथा उसके महल में सभी नवग्रह, नक्षत्र इत्यादि दास रूप में थे। अपने इसी विश्व विजयी अभियान के कारण रावण का अहंकार सातवें आसमान तक पहुँच गया था। इस तरह से आपने रावण कौन था (Ravan Kaun Tha), इसके बारे में जान लिया है। अब हम आगे आपको बताएँगे कि रावण के जीवन में क्या कुछ घटित हुआ था।
रावण की हार
ऐसा नही हैं कि रावण (Ramayana Ravana) ने जितने भी युद्ध किये उसमे हमेशा उसकी जीत हुई। उसे कई बार पराजय का भी मुख देखना पड़ा था। इसमें रावण के द्वारा मुख्य रूप से पांच युद्ध हारे गए थे। उनके यह युद्ध इंद्र देव, सहस्त्रबाहु, बाली और श्रीराम के साथ हुए थे। आइए उनके बारे में सक्षिप्त जानकारी ले लेते हैं।
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इंद्र और रावण का युद्ध
रावण ने जब देवलोक पर आक्रमण किया था तब सभी देवताओं ने मिलकर उसके साथ युद्ध किया। इंद्र देव ने अपनी शक्ति से रावण को हरा दिया था और उसे बंदी बना लिया था। तब उसके उतरा मेघनाद ने उसकी प्राण रक्षा की थी।
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सहस्त्रबाहु और रावण का युद्ध
रावण का युद्ध सहस्त्र से भी हुआ था। एक बार जब रावण ने सहस्त्रबाहु को अपना अहंकार दिखाया तब उसने अपनी हज़ार भुजाओं से रावण के अहंकार को चूर कर दिया था। बाद में भगवान परशुराम ने सहस्त्रबाहु का वध कर दिया था।
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बाली और रावण का युद्ध
रावण ने किष्किंधा के वानर राजा बाली से भी युद्ध किया था। बाली ने ना केवल रावण को हराया बल्कि छह माह तक उसे बंदी भी बनाकर रखा। इस कारण रावण को बहुत अपमानित होना पड़ा था।
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रावण और राम का युद्ध
श्रीराम ने रावण को दो बार पराजित किया था। राम रावण युद्ध में रावण कुछ महाबली योद्धाओं के मरने के बाद स्वयं ही युद्धभूमि में आ गया था। तब श्रीराम ने उसे पराजित करके यह कहकर जाने दिया था कि अगली बार पूरी तैयारी के साथ आए। इस प्रकार युद्ध के आखिरी दिन रावण की श्रीराम के हाथों ना अकेवल हार हुई थी बल्कि उसका वध भी हो गया था।
Ramayan Ravan | रावण द्वारा माता सीता का हरण
रावण का सही मायनों में रामायण में प्रवेश अब से होता है। रावण के जीवन में जो सबसे बड़ी भूल थी वह थी माँ लक्ष्मी के रूप माँ सीता का अपहरण। एक दिन रावण अपने राजमहल में बैठा था कि तभी उसकी बहन शूर्पनखा रोती हुई वहां आयी। उसकी नाक व एक कान कटा हुआ था। शूर्पनखा ने भरी सभा में बताया कि अयोध्या के राजकुमार श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण ने उनका यह हाल किया हैं। इसके साथ ही श्रीराम ने उनके दो भाइयो खर व दूषण का भी वध कर दिया हैं।
शूर्पनखा ने भरी सभा में सीता के रूप व गुणों का वर्णन किया तथा उन्हें रावण के लिए उपयुक्त स्त्री बताया। उसने सीता को विश्व की सबसे सुंदर स्त्री बताया। रावण सीता का ऐसा वर्णन सुनकर मनमोहित हो गया तथा उन्हें पाने के लिए बैचेन हो उठा।
उसने अपने मामा मारीच की सहायता से माता सीता का पंचवटी से अपहरण कर लिया। इसके लिए उसने छल का आश्रय लिया तथा छुपके से माता सीता को लंका ले आया। वहां लाकर उसने माता सीता को स्वयं से विवाह करने के लिए बहुत मनाया लेकिन वे नही मानी। रावण जानता था कि यदि वह सीता की आज्ञा के बिना उसके साथ कुछ भी करेगा तो अपने भतीजे के मिले श्राप के फलस्वरूप जलकर भस्म हो जाएगा।
रावण की लंका का जलना
सीता अपहरण के कुछ माह के पश्चात रावण (Ramayan Ravan) को किसी वानर के द्वारा अशोक वाटिका में उथल-पुथल किये जाने की सूचना मिली तो उसने अपने छोटे पुत्र अक्षय कुमार को भेजा। वह वानर कोई और नही बल्कि स्वयं हनुमान थे जो माता सीता को ढूंढते हुए वहां आए थे। हनुमान ने अक्षय कुमार का वध कर डाला।
इसके बाद रावण ने मेघनाथ को भेजा। मेघनाद के द्वारा हनुमान को बंदी बनाकर रावण की सभा में प्रस्तुत किया गया। हनुमान ने माता सीता को सम्मान सहित लौटा देने व श्रीराम की शरण में जाने को कहा लेकिन रावण ने उनका उपहास किया व उनकी पूँछ में आग लगा दी। इसके बाद हनुमान ने रावण की लंका को जला डाला और वह कुछ नही कर सका। इस अग्नि में रावण को बहुत नुकसान हुआ था जिसमे उसके कई शस्त्रागार, सुरक्षा परकोटे इत्यादि जलकर खाक हो गए थे। तब रावण ने इसे वापस बनवाने में बहुत धन खर्च किया था।
रावण द्वारा विभीषण का त्याग
इसके बाद रावण को सूचना मिली कि श्रीराम किष्किन्धा के नए राजा सुग्रीव को साथ लेकर समुंद्र पर रामसेतु बना रहे हैं। रावण के दरबार में सभी उसकी चापलूसी करते थे लेकिन उसका भाई विभीषण उसे सही बात कहता था। जब विभीषण ने उसे श्रीराम की शरण में जाने को कहा तो रावण अत्यंत क्रोधित हो गया। इसी क्रोध में उसने विभीषण को देश निकाला दे दिया। इसके बाद विभीषण समुंद्र पार करके श्रीराम की शरण में चले गए। यह रावण की दूसरी सबसे बड़ी भूल थी।
रावण का श्रीराम से युद्ध
रावण (Ramayana Ravana) पूरी तरह से आश्वस्त था कि उसे व उसकी सेना को कोई नही हरा सकता। उसे कई गणमान्य लोगो जैसे कि उसकी पत्नी मंदोदरी, नाना माल्यवान, माता कैकसी, भाई कुंभकरण तथा अन्य कई लोगों ने माता सीता को लौटा देने व श्रीराम की शरण में जाने को कहा लेकिन उसने किसी की नही सुनी। आइए जानते हैं, श्रीराम के साथ युद्ध में मुख्य रूप से क्या कुछ घटित हुआ था।
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शांति संदेश ठुकराना
अंत में श्रीराम की सेना लंका तक पहुँच गयी तथा अंगद के द्वारा रावण को शांति संदेश भेजा गया जिसे रावण ने निर्लज्जता के साथ ठुकरा दिया। इसके बाद दोनों सेनाओं के बीच भीषण युद्ध शुरू हो गया।
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रावण की श्रीराम से पराजय
रावण ने एक-एक करके अपने कई योद्धाओं, पुत्रों व भाइयों को खो दिया। उसे पहली बार सबसे गहरा आघात तब पहुंचा था जब वह स्वयं पहली बार युद्धभूमि में गया तथा श्रीराम के हाथो पराजित होकर लौटा। अपनी हार से रावण इतना ज्यादा बोखला गया था कि उसने अपने महापराक्रमी भाई कुंभकरण को जगा दिया।
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कुंभकरण की मृत्यु
कुंभकरण ने पहले रावण को समझाने का प्रयास किया लेकिन उसके ना समझने पर वह युद्ध भूमि में गया। तब रावण को दूसरा आघात लगा जब कुंभकरण के वध की सूचना उसके पास आयी। अब तक रावण के सभी भाई, पुत्र व योद्धा मारे जा चुके थे केवल उसके पुत्र मेघनाथ व भाई अहिरावण को छोड़कर।
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मेघनाद का युद्ध
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मेघनाद का पहला युद्ध
जब रावण ने अपने पुत्र मेघनाथ को युद्ध के लिए भेजा तो पहले दिन वह श्रीराम व लक्ष्मण को नागपाश में बांधकर विजयी होकर आया। बहुत दिनों बाद रावण अपनी विजय से इतना खुश हुआ था लेकिन कुछ ही देर में उसके पास सूचना आयी कि गरुड़ देवता ने राम-लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त कर दिया हैं।
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मेघनाद का दूसरा युद्ध
अगले दिन उसने फिर से अपने पुत्र मेघनाद को भेजा। इस बार भी मेघनाद विजयी होकर लौटा था तथा लक्ष्मण को शक्ति बाण के प्रभाव से मूर्छित कर दिया था। लेकिन सुबह होते-होते सूचना आयी कि संजीवनी बूटी के प्रभाव से लक्ष्मण स्वस्थ हो गए है।
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मेघनाद की मृत्यु
इसका अगला दिन रावण के जीवन का सबसे गहरा आघात लेकर आया था। रावण को सूचना मिली कि युद्ध में उसके पुत्र मेघनाद का भी वध हो चुका हैं। यह समाचार सुनकर रावण जोर-जोर से चीत्कार करने लगा था तथा उसके मन में प्रतिशोध की ज्वाला भड़क उठी थी।
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रावण की मृत्यु कैसे हुई?
युद्ध में और शक्तिशाली होने के लिए रावण ने शिव के दिए गए लिंगम की कठोर साधना की व सभी दिव्य अस्त्र प्राप्त किए। अब रावण पूरी तैयारी के साथ युद्ध भूमि में उतरा तथा चारो और त्राहिमाम मचा दिया। सभी देवता, ऋषिगण, गन्धर्व इत्यादि आकाश से यह युद्ध देख रहे थे। प्रथम दिन श्रीराम व रावण के बीच घमासान युद्ध हुआ लेकिन कोई विजयी नही रहा। संध्या होने के पश्चात युद्ध अगले दिन के लिए टाल दिया गया।
अगला दिन रावण के जीवन का अंतिम दिन था। इस दिन श्रीराम को इंद्र का दिव्य रथ प्राप्त था। दोनों का आकाश में भयंकर युद्ध चल रहा था। श्रीराम ने अपने धनुष बाण से रावण के सिर को दस बार काट डाला लेकिन अपनी नाभि में स्थित अमरत्व से वह पुनः जीवित हो उठता। उसके इस रहस्य का ज्ञान उसके निष्कासित भाई विभीषण को था। उसने आकाश में आकर श्रीराम को यह रहस्य बता दिया। इसके बाद श्रीराम ने आग्नेय अस्त्र का अनुसंधान करके रावण की नाभि का सारा अमृत सुखा दिया।
अंत में श्रीराम ने ब्रह्मास्त्र का अनुसंधान करके रावण का उसकी सेना सहित विनाश कर दिया। रावण को जब ब्रह्मास्त्र लगा तो वह श्रीराम-श्रीराम का चीत्कार करता हुआ रथ सहित भूमि पर गिर पड़ा व मृत्यु को प्राप्त हो गया। इस प्रकार एक दुष्ट व पापी राजा का भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम के हाथों अंत हो गया। इस तरह से रामायण में रावण की कहानी (Ramayan Ravan) का यहीं अंत हो जाता है।
रावण से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: रावण का इतिहास क्या है?
उत्तर: रावण के संपूर्ण इतिहास को हमने क्रमानुसार इस लेख में बताया है। यहाँ आपको रावण के जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक का पूरा इतिहास पढ़ने को मिलेगा।
प्रश्न: रावण कौन जाति का है?
उत्तर: रावण ब्राह्मण-राक्षस जाति का था। उसके पिता महान ऋषि विश्रवा ब्राह्मण समुदाय से थे जबकि माता कैकसी राक्षस जाति की थी।
प्रश्न: रावण के कितने जन्म हुए थे?
उत्तर: रावण का एक ही जन्म हुआ था। उस जन्म में उसका वध भगवान श्रीराम के हाथों हो गया था।
प्रश्न: असली में रावण कौन था?
उत्तर: असली में रावण एक दुष्ट प्रवृत्ति का प्राणी था जिसे दूसरों पर अत्याचार करके आनंद आता था। उसके इसी अत्याचारों के कारण ही भगवान विष्णु को श्रीराम रूप में अवतार लेना पड़ा था।
प्रश्न: क्या रावण दलित था?
उत्तर: रावण का दलित या सही शब्दों में शुद्र समुदाय से कोई संबंध नहीं था। रावण के पिता ब्राह्मण थे जबकि माता राक्षसी। इस तरह से रावण ब्राह्मण था जबकि उसका संबंध राक्षस जाति से भी था।
प्रश्न: क्या रावण मांस खाते थे?
उत्तर: हां, रावण मांसाहारी था। वह ब्राह्मण होने के साथ-साथ राक्षस जाति से भी था। वह पशु-पक्षियों का तो क्या बल्कि मनुष्यों तक का मांस खा जाया करता था।
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