दुर्गा जी की आरती हिंदी अंबे गौरी PDF और जय अंबे गौरी आरती इमेज

Ambe Ji Ki Aarti

आज हम आपको अंबे मां की आरती (Ambe Maa Ki Aarti) अर्थ व भावार्थ सहित देंगे। अंबे जी की आरती तो आपको कहीं से भी आसानी से मिल जाएगी। यह आपको हर तरह की धार्मिक पुस्तकों और ऑनलाइन मिल जाएगी किन्तु प्रश्न यह है कि धर्मयात्रा की इस वेबसाइट पर लिखे गए इस लेख में आपको अलग से क्या जानने को मिलेगा जो अन्यत्र नहीं मिलेगा!!

तो इस प्रश्न का उत्तर यह है कि यहाँ पर आपको ओम जय अंबे गौरी की आरती के हिंदी अनुवाद साथ-साथ उसका भावार्थ भी जानने को मिलेगा। आज हमने अंबे मां आरती की एक-एक पंक्ति को उसके हिंदी अनुवाद के साथ ही उसके भावों को समझाने का प्रयास किया है। इसे पढ़कर अवश्य ही आपको बहुत आनंद आएगा।

यही कारण है कि सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए मां अंबे आरती का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है। आज के इस लेख में हम आपको अंबे आरती लिखित में तो देंगे ही बल्कि उसी के साथ ही जय अंबे गौरी आरती इमेज (Jai Ambe Gauri Aarti Image) भी दी जाएगी। इसके बाद दुर्गा जी की आरती हिंदी अंबे गौरी PDF फाइल भी होगी। इसे आप अपने मोबाइल या लैपटॉप में सेव करके रख सकते हैं। आइए सबसे पहले अंबे मां की आरती हिंदी में अर्थ सहित जान लेते हैं।

Ambe Maa Ki Aarti | अंबे मां की आरती – अर्थ व भावार्थ सहित

जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी॥

अर्थ: हे माँ अम्बे व गौरी!! आपकी जय हो। हे हम सभी का मंगल करने वाली माँ!! आपकी जय हो। हे श्याम व गौर दोनों वर्णों वाली माँ!! आपकी जय हो। स्वयं त्रिदेव अर्थात भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश भी दिन-रात आपका ही ध्यान करते हैं।

भावार्थ: इस कथन में माँ अंबे के विभिन्न रूपों की चर्चा की गयी है और यह बताने का प्रयास किया गया है कि मातारानी के हर रूप में माँ अंबे का ही वास है या सभी उनका ही एक अंश है। इसी कारण इस सृष्टि के निर्माता भगवान ब्रह्मा, इस सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु व इस सृष्टि के संहारक भगवान शिव माँ अंबे का ध्यान करते हैं।

मांग सिन्दूर बिराजत टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोऊ नैना चन्द्र बदन नीको॥

अर्थ: आपने अपनी माँग में सिंदूर भर रखा है और कस्तूरी का तिलक लगा रखा है। आपकी दोनों ही आँखें बहुत तेजस्वी है तथा आपका शरीर चंदन सा महक रहा है।

भावार्थ: इस कथन में माँ अंबे के रूप का वर्णन किया जा रहा है। उन्हें एक सुहागिन स्त्री के रूप में दिखाया है जो अपनी माँग में सिंदूर भरती हैं। उनकी आँखों को बहुत ही चमकदार बताया गया है जिससे वे तीनों लोकों में चल रही गतिविधियों पर अपनी नज़र रखती हैं। साथ ही वे ही तीनो लोकों में सुगंध को फैलाने का कार्य कर रही हैं। एक तरह से माँ सुगंध में हैं, प्रकाश में हैं तथा उनका वास इस लोक में हर जगह है।

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्त पुष्प गल माला कंठन पर साजै॥

अर्थ: आपका शरीर सोने की भांति चमक रहा है और आप लाल रंग के वस्त्र पहनती हैं। आपने अपने गले में लाल रंग के फूलों की माला पहनी हुई है जो बहुत ही सुन्दर लग रही है।

भावार्थ: इसमें भी माँ के रूप का वर्णन किया गया है और बताया गया है कि किस तरह से उनके शरीर से निकलने वाले प्रकाश से हर जगह रोशनी हो रही है। उन्हें सुहाग के लाल वस्त्र पहने हुए भी बताया गया है और हमें इसी रूप में ही माँ की पूजा करनी चाहिए। माँ को लाल फूल बहुत ही प्रिय होते हैं और हमें उनकी पूजा में लाल रंग के फूल अवश्य चढ़ाने चाहिए।

केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर-मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी॥

अर्थ: आप अपने वाहन सिंह पर विराजती हैं और आपने अपने हाथों में तलवार व राक्षसों की खोपड़ियाँ ली हुई है। देवता, मनुष्य, ऋषि-मुनि सभी ही आपके सेवक हैं और आप उनका दुःख दूर करती हैं।

भावार्थ: माँ का वाहन सिंह (शेर) है जो बहुत ही शक्तिशाली होता है और अकेले ही दुष्टों का संहार कर सकता है। माँ ने अपने हाथों में दुष्टों का नाश करने के लिए तलवार ली हुई है और इसे वह राक्षसों के कटे हुए सिर के साथ दिखा भी रही हैं। ऐसे में जो लोग भी बुरे कर्म करते हैं या दूसरों को दुःख पहुंचाते हैं, उन्हें माँ के द्वारा दंड दिया जाता है। उनकी सच्चे मन से भक्ति करने पर हमें आगे का मार्ग पता चलता है तथा मन को शांति मिलती है।

कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर राजत सम ज्योति॥

अर्थ: आपने अपने कानो में कुंडल और नाक में मोती पहना हुआ है जो बहुत ही अच्छे लग रहे हैं। इन्हें देख कर लगता है कि वे करोड़ो सूर्य व चन्द्रमा से भी अधिक प्रकाश फैला रहे हैं।

भावार्थ: माता के रूप का वर्णन करते हुए इसमें यह बताया गया है कि माँ ने किस-किस तरह का श्रृंगार किया हुआ है। माँ के शरीर से इतना तेज निकल रहा है कि उसके सामने सूर्य व चंद्रमा की रोशनी भी कुछ नहीं है। इस तरह से माँ अपने तेज से केवल इस लोक में ही नहीं अपितु संपूर्ण ब्रह्माण्ड में प्रकाश फैलाने का कार्य कर रही हैं। इस कथन का तात्पर्य यह है कि माँ केवल सूर्य को ही नहीं अपितु ब्रह्मांड में स्थित अन्य तारो को भी सँभालने का कार्य करती हैं।

शुम्भ निशुम्भ विदारे महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती॥

अर्थ: आपने शुम्भ व निशुम्भ नामक राक्षसों का वध कर दिया था। इसी के साथ आपने दैत्य राजा महिषासुर का भी संहार किया था। आपकी आँखों से राक्षसों का संहार करने के लिए धुआं निकलता रहता है और आप दिन-रात उसी ताक में ही रहती हैं।

भावार्थ: दानव चाहे कितना ही शक्तिशाली क्यों ना हो, वह माँ के द्वारा मारा ही जाता है। उसका नाश करने के लिए माँ कभी भी नहीं रूकती हैं और ना थकती हैं, फिर चाहे वह महिषासुर के साथ नौ दिनों तक चलने वाला युद्ध ही क्यों ना हो। हमें भी माँ अंबे से प्रेरणा लेकर किसी भी विपत्ति या संकट के सामने हार ना मानते हुए, उसका डटकर सामना करना चाहिए, तभी हमारी विजय होती है।

चण्ड-मुण्ड संहारे शोणित बीज हरे।
मधु कैटभ दोऊ मारे, सुर भयहीन करे॥

अर्थ: आपने चंड-मुंड नामक राक्षसों का भी वध किया था तथा अत्यधिक शक्तिशाली रक्तबीज को भी मार गिराया था। आपने क्षीर सागर पर आक्रमण करने आये मधु-कैटभ राक्षसों का भी वध कर दिया था और देवताओं का भय दूर किया था।

भावार्थ: इसमें बताया गया है कि माँ ने रक्तबीज जैसे राक्षस का वध करने के लिए माँ काली का रूप धर कर उसका रक्त तक पी लिया था। यह एक ऐसा कार्य था जो सुनने में सभी को भयभीत कर देगा लेकिन माँ ने दुष्टों का नाश करने के लिए इसकी भी परवाह नहीं की। ऐसे में हमें भी बुराई के घिनौने रूप को देख कर डरना नहीं चाहिए बल्कि उसका दोगुनी शक्ति के साथ सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी॥

अर्थ: आप ही माँ सरस्वती, माँ पार्वती व माँ लक्ष्मी हो। सभी वेद व शास्त्र भी आपका बखान करते हैं और आप शिव भगवान को बहुत प्रिय हो।

भावार्थ: माँ अंबे के द्वारा ही अन्य सभी माताओं की उत्पत्ति हुई है या फिर इसे दूसरे शब्दों में कहें तो सभी माताएं माँ अंबे का ही एक रूप हैं। इसी कारण उन्हें सरस्वती की तरह ज्ञान व बुद्धि देने वाली, माँ लक्ष्मी की तरह धन-संपदा देने वाली और माँ पार्वती की तरह अभयदान देने वाली बताया गया है। माँ अंबे की महिमा का वर्णन सभी तरह के वेदों व शास्त्रों में भी किया गया है और कोई भी व्यक्ति इसे झुठला नहीं सकता है।

चौंसठ योगिनि मंगल गावत नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू॥

अर्थ: चौसंठ तरह की प्रजातियाँ भी आपका मंगलगान करती हैं। आपकी आराधना में तो स्वयं भैरव बाबा ताल, मृदंग, डमरू की ताल पर नाचते हैं।

भावार्थ: माँ की महिमा किसी से भी छुपी हुई नहीं है और सभी उसका गुणगान करते हैं। भैरव बाबा जो स्वयं काल के देवता माने जाते हैं और भगवान शिव का अनुसरण करते हैं, वे भी माता अंबे की आराधना करते हैं। एक तरह से यदि हम माँ अंबे की भक्ति करते हैं तो हम काल के प्रकोप से भी बच जाते हैं।

तुम ही जगत की माता तुम ही हो भर्ता।
भक्तन की दुःख हरता सुख सम्पत्ति कर्ता॥

अर्थ: आप ही इस जगत की माँ हो, आप ही इस जगत का पालन-पोषण करती हो, आप ही भक्तों के दुखों को दूर करती हो और आप ही हम सभी को सुख-संपत्ति देती हो।

भावार्थ: हमारे लिए हमारी जननी व जन्मभूमि पूजनीय है लेकिन उसी के साथ ही हमें इस सृष्टि की जननी माँ अंबे को भी नहीं भूलना चाहिए। उन्हीं के द्वारा ही सबका निर्माण किया गया है और वही हम सभी का भरण-पोषण भी करती हैं। हमें यदि कोई दुःख है या संकट आ पड़ा है तो हमें सच्चे मन से माँ अंबे का ध्यान करना चाहिए। इससे हमें अवश्य ही कोई ना कोई रास्ता मिल जाएगा। इस तरह से माँ की भक्ति करने से हमें सभी तरह का सुख व संपत्ति प्राप्त होती है।

भुजा चार अति शोभित, वर मुद्रा धारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर-नारी॥

अर्थ: आपकी चार भुजाएं हमें अभय व वरदान देने की मुद्रा में बहुत ही सुंदर लग रही हैं। जो भी मनुष्य सच्चे मन से आपकी सेवा करता है, उसे इच्छानुसार फल की प्राप्ति होती है।

भावार्थ: माँ अंबे की एक नहीं बल्कि चार भुजाएं ऐसी हैं जो भक्तों को तरह-तरह का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। इस तरह से माँ अपने भक्तों का कल्याण करने के लिए हमेशा ही तैयार रहती हैं। यदि हम उनकी सच्चे दिल से पूजा करते हैं और अच्छे कर्म करते हैं तो अवश्य ही माँ अंबे हमसे प्रसन्न होती हैं और हमें उसका फल देती हैं।

कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति॥

अर्थ: सोने की थाली के साथ आपकी आरती उतारी जाती है। उस थाली में हम अगरबत्ती, कपूर व दीपक अवश्य रखते हैं। श्रीमालकेतु में आपका निवास स्थान है और आपकी आरती की ज्योति करोड़ो रत्नों से भी अधिक प्रकाशमान है।

भावार्थ: इसमें माँ अंबे की पूजा कैसे की जानी चाहिए, उसके बारे में बताया गया है। माँ की पूजा में अगरबत्ती, कपूर व दिया-बाती अवश्य शामिल होने चाहिए। पूरे विधि-विधान के साथ माँ की पूजा करने से हमें अवश्य ही उसका फल मिलता है।

अम्बे जी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी सुख सम्पत्ति पावै॥

अर्थ: जो कोई भी माँ अंबे की आरती को सच्चे मन से गाता है। शिवानन्द स्वामी जी के अनुसार, उसे हर तरह का सुख व संपत्ति प्राप्ति होती है।

भावार्थ: यदि आपका मन सच्चा है, आप बुरे कर्म नहीं करते हैं, हमेशा सत्कर्म करते हैं, माँ अंबे के बनाये नियमों का पालन करते हैं और उनकी भक्ति करते हैं तो अवश्य ही माँ अंबे आपके हर संकट को दूर कर देंगी और आपको हर तरह का यश, वैभव, सुख व संपत्ति देंगी।

जय अंबे गौरी आरती इमेज | Jai Ambe Gauri Aarti Image

यह रही जय अंबे गौरी आरती की इमेज:

जय अंबे गौरी आरती इमेज
जय अंबे गौरी आरती इमेज

यदि आप मोबाइल में इसे देख रहे हैं तो इमेज पर क्लिक करके रखिए। उसके बाद आपको इमेज डाउनलोड करने का विकल्प मिल जाएगा। वहीं यदि आप लैपटॉप या कंप्यूटर में इसे देख रहे हैं तो इमेज पर राईट क्लिक करें। इससे आपको इमेज डाउनलोड करने का विकल्प मिल जाएगा।

दुर्गा जी की आरती हिंदी अंबे गौरी PDF

अब हम दुर्गा जी की आरती हिंदी अंबे गौरी की PDF फाइल भी आपके साथ साझा कर देते हैं

यह रहा उसका लिंक: दुर्गा जी की आरती हिंदी अंबे गौरी PDF

ऊपर आपको लाल रंग में अम्बे आरती की PDF फाइल का लिंक दिख रहा होगा। आपको बस उस पर क्लिक करना है और उसके बाद आपके मोबाइल या लैपटॉप में पीडीएफ फाइल खुल जाएगी। फिर आपके सिस्टम में इनस्टॉल एप्लीकेशन या सॉफ्टवेयर के हिसाब से डाउनलोड करने का विकल्प भी ऊपर ही मिल जाएगा।

निष्कर्ष

इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने अंबे मां की आरती अर्थ व भावार्थ सहित (Ambe Maa Ki Aarti) पढ़ ली है। साथ ही हमने आपको जय अंबे गौरी आरती इमेज और पीडीएफ फाइल भी उपलब्ध करवा दी है। यदि आपको दुर्गा जी की आरती हिंदी अंबे गौरी PDF फाइल या इमेज डाउनलोड करने में किसी तरह की समस्या होती है या आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देंगे।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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