Dhumavati Devi: धूमावती देवी कौन है? जाने धूमावती माता का मंत्र व रहस्य

धूमावती माता (Dhumavati Mata)

माता सती की दस महाविद्याओं में धूमावती माता (Dhumavati Mata) सातवीं महाविद्या है। यह माँ सती के 10 रूपों में से सातवाँ रूप मानी जाती हैं जो मातारानी के विपरीत गुणों का प्रतिनिधित्व करती हैं। धूमावती देवी (Dhumavati Devi) विश्व में कलह उत्पन्न करने वाली तथा भूख से व्याकुल माता का एक रूप हैं। मातारानी के इस रूप को अनिष्ट के रूप में देखा गया है।

मातारानी के इस तरह के रूप के बारे में सुनकर आप भी धूमावती माता का रहस्य जानना चाहते होंगे। इसलिए आज हम आपको मां धूमावती (Maa Dhumavati) का इतिहास, कथा, महत्व व साधना मंत्र व उससे मिलने वाले लाभ इत्यादि के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।

Dhumavati Mata | धूमावती माता

माता सती या पार्वती के कुल 10 रूप हैं जिनकी पूजा गुप्त नवरात्रि के समय की जाती है। इन 10 रूपों में प्रत्येक की अपनी अलग विशेषता व गुण है। कोई रूप अत्यधिक भयंकर व दुष्टों का संहार करने वाला है तो कोई अत्यधिक सौम्य व भक्तों को सुख प्रदान करने वाला है। हालाँकि इन सभी रूपों में उनका यह रूप अत्यधिक विचित्र व अद्भुत है।

उनका यह रूप सभी महाविद्याओं में सबसे अलग माना जाता है जिसे धूमावती महाविद्या (Dhumavati Mahavidya) नाम दिया गया है। इसके पीछे एक नहीं बल्कि दो कथाएं जुड़ी हुई है। पहली तो महाविद्या रूप से जुड़ी हुई कहानी है जबकि दूसरी धूमावती माता का रहस्य उजागर करती है। आइये दोनों के बारे में जान लेते हैं।

धूमावती माता की कहानी (Dhumavati Mata Ki Kahani)

यह कथा बहुत ही रोचक है जो भगवान शिव व उनकी प्रथम पत्नी माता सती से जुड़ी हुई है। हालाँकि उनकी दूसरी पत्नी माता पार्वती माँ सती का ही पुनर्जन्म मानी जाती हैं। धूमावती महाविद्या की कहानी के अनुसार, एक बार माता सती के पिता राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया था।

चूँकि राजा दक्ष भगवान शिव से द्वेष भावना रखते थे और अपनी पुत्री सती के द्वारा उनसे विवाह किये जाने के कारण शुब्ध थे, इसलिए उन्होंने उन दोनों को इस यज्ञ में नहीं बुलाया। भगवान शिव इस बारे में जानते थे लेकिन माता सती इस बात से अनभिज्ञ थी।

यज्ञ से पहले जब माता सती ने आकाश मार्ग से सभी देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों को उस ओर जाते देखा तो अपने पति से इसका कारण पूछा। भगवान शिव ने माता सती को सब सत्य बता दिया और निमंत्रण ना होने की बात कही। तब माता सती ने भगवान शिव से कहा कि एक पुत्री को अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए निमंत्रण की आवश्यकता नहीं होती है।

माता सती अकेले ही यज्ञ में जाना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने अपने पति शिव से अनुमति मांगी किंतु उन्होंने मना कर दिया। माता सती के द्वारा बार-बार आग्रह करने पर भी शिव नहीं माने तो माता सती को क्रोध आ गया और उन्होंने शिव को अपनी महत्ता दिखाने का निर्णय लिया।

तब माता सती ने भगवान शिव को अपने 10 रूपों के दर्शन दिए जिनमें से सातवीं मां धूमावती (Maa Dhumavati) थी। मातारानी के यही 10 रूप दस महाविद्या कहलाए। अन्य नौ रूपों में क्रमशः काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता,बगलामुखी, मातंगीकमला आती हैं।

Dhumavati Devi | धूमावती माता का रहस्य

देवी धूमावती के इस निंदनीय रूप के पीछे एक रहस्य छुपा हुआ है। मान्यता है कि एक बार जब माता पार्वती को तीव्र भूख लगी तो उन्होंने भगवान शिव से भोजन माँगा। उस समय वहां भोजन उपलब्ध नहीं था तो शिवजी ने उन्हें कुछ समय प्रतीक्षा करने को कहा।

माता पार्वती ने कुछ समय तक प्रतीक्षा की लेकिन कुछ देर बाद उनकी भूख और ज्यादा बढ़ गयी। इस कारण वे और अधिक व्याकुल हो गयी। इसी व्याकुलता में देवी पार्वती भगवान शिव को ही निगल गयी। भगवान शिव को निगलते ही शिव के शरीर में स्थित समुंद्र मंथन का विष माता के शरीर को जलाने लगा जिस कारण उनके शरीर से धुआं निकलने लगा।

मातारानी का शरीर धीरे-धीरे बूढ़ा होता चला गया जिसमें जगह-जगह झुर्रियां पड़ गयी। इससे बेचैन होकर माता पार्वती ने शिव को अपने मुहं से बाहर उगल दिया। बाहर आकर भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि चूँकि तुम भूख से व्याकुल होकर अपने पति को ही निगल गयी थी, इसलिए तुम्हारे इस रूप को विधवा होने का श्राप मिलेगा।

बस इसी के बाद माता पार्वती के इस रूप को बूढ़ी विधवा का रूप होने की मान्यता मिली जिसे एक दरिद्र, भूख से व्याकुल व बेचैन स्त्री के रूप में दर्शाया गया है। इस रूप में मातारानी के मुख पर बेचैनी, व्याकुलता, दरिद्रता, संशय, तड़प, थकान इत्यादि एकसाथ प्रदर्शित होते हैं। यही धूमावती माता का रहस्य (Dhumavati Devi) माना गया है।

धूमावती का अर्थ

मातारानी के इस रूप का नाम धूमावती ही क्यों पड़ा और इस नाम का क्या अर्थ है!! आइये इसके बारे में भी जान लेते हैं। धूमावती अर्थात जिसका जन्म धुएं से हुआ हो। मातारानी का यह रूप धुएं के समान होता है। इसलिए उन्हें भगवान शिव के द्वारा धूमावती नाम दिया गया।

Dhumavati Mata का यह रूप दिखने में तो विचित्र है ही लेकिन विधवा का श्राप मिले होने के कारण यह श्वेत वस्त्रों में होता है। इस कारण यह धुएं के समान प्रतीत होता है। इसी कारण मातारानी के इस रूप का नाम धूमावती पड़ा।

देवी धूमावती का रूप

Dhumavati Mahavidya का रूप अत्यंत दरिद्र, शुष्क, दया योग्य वाला है। देवी धूमावती को एक विधवा बूढ़ी स्त्री के रूप में दिखाया गया है जिसमें उनके शरीर के अंगों पर जगह-जगह झुर्रियां पड़ चुकी है तथा वह कांप भी रहा है। धूमावती देवी का शरीर एकदम शुष्क व सफेद रंग का है तथा उन्होंने वस्त्र भी विधवा समान श्वेत ही धारण किये हुए हैं।

माँ ने जो वस्त्र पहने हुए हैं वे भी कई जगह से कटे-फटे व घिसे हुए हैं। उनके केश बिखरे हुए हैं व ऐसा लगता है जैसे माँ कई दिनों से नहाई ना हुई हो। इस कारण उनके केश, शरीर व वस्त्रों पर गंदगी जमा हो गयी है। उनका पूरा शरीर कंपायेमान है।

माँ का रूप भूख से व्याकुल व दरिद्र रूप में दिखाया गया है। उनका शरीर बिल्कुल पतला व अस्वस्थ प्रतीत होता है। वे एक बिना घोड़े के रथ पर बैठी दिख रही हैं जिसके शीर्ष पर एक कौवा बैठा है। माँ के एक हाथ में टोकरी तो दूसरा हाथ अभय मुद्रा में या ज्ञान देने की मुद्रा में है।

धूमावती माता का मंत्र

ऊँ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा॥

अब आप यह मत सोचिये कि Dhumavati Mata अनिष्ट की देवी हैं तो उनकी पूजा नहीं की जानी चाहिए। दरअसल मातारानी का यह रूप भी भक्तों के कई काम बना देता है। इसके बारे में हम आपको नीचे धूमावती साधना के लाभ के अंतर्गत बताने वाले हैं। आइये जाने धूमावती माता का मंत्र और उनकी साधना आपके लिए किस-किस रूप में लाभदायक हो सकती है।

धूमावती साधना के लाभ

धूमावती देवी का यह रूप माँ के विपरीत गुणों को प्रदर्शित करता है। इसलिए इन्हें अलक्ष्मी या ज्येष्ठा भी बुलाया जाता है। देवी धूमावती एक तरह से माँ देवी के नकारात्मक रूप का साक्षात् प्रदर्शन है किंतु अपने इस रूप से माँ अपने भक्तों के कई संकटों को दूर करती हैं।

धूमावती माता की पूजा करने से मनुष्य के संकटों का हरण होता है व उन्हें यदि किसी चीज़ का अभाव है तो वह दूर होता है। Dhumavati Mahavidya अपने भक्तों की हर प्रकार की कमी व भूख को शांत करती हैं तथा उन्हें अभय होने का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

मां धूमावती महाविद्या की पूजा मुख्य रूप से गुप्त नवरात्रों में की जाती है। गुप्त नवरात्रों में मातारानी की 10 महाविद्याओं की ही पूजा की जाती है जिसमे से सातवें दिन धूमावती महाविद्या की पूजा करने का विधान है।

Maa Dhumavati से संबंधित अन्य जानकारी

  • प्रथम वेद ऋग्वेद में माँ सती के धूमावती रूप को सुतरा कहा गया है।
  • माँ धूमावती के कुछ अन्य नाम ज्येष्ठा, अलक्ष्मी व निरृति हैं।
  • सुहागिन स्त्रियों के द्वारा माँ धूमावती की पूजा नहीं की जाती है।
  • माँ को किसी भी प्रकार की रंगीन वस्तु नहीं चढ़ाई जाती है।
  • देवी धूमावती का शक्तिपीठ मध्यप्रदेश राज्य के दतिया जिले में पितांबर पीठ है।
  • धूमावती देवी से संबंधित रुद्रावतार धुमेश्वर महादेव हैं।
  • एक अन्य कथा के अनुसार मां धूमावती का यह रूप राजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माँ सती के आत्म-दाह करने के पश्चात उसके धुएं से प्रकट हुआ था।
  • यह श्रीकुल की सात देवियों में आती है।

इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने धूमावती माता (Dhumavati Mata) के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है। यहाँ हमने आपको धूमावती माता का रहस्य व उनकी कहानी के बारे में बता दिया है। आशा है कि आपको हमारे द्वारा दी गयी यह जानकारी पसंद आई होगी।

धूमावती माता से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: धूमावती किसकी देवी है?

उत्तर: धूमावती 10 महाविद्या में से सातवीं महाविद्या मानी जाती है जो माँ सती का ही एक रूप है। इन्हें माता पार्वती का विधवा रूप माना जाता है।

प्रश्न: धूमावती माता की कथा क्या है?

उत्तर: धूमावती माता की कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती भूख में शिव जी को ही निगल गयी थी। इस कारण उन्हें भगवान शिव से विधवा होने का श्राप मिला था।

प्रश्न: धूमावती की पूजा किसकी करनी चाहिए?

उत्तर: यदि आपके जीवन में किसी चीज़ का अभाव है या भूख की समस्या है तो वह धूमावती माता की पूजा करने से ठीक हो जाती है।

प्रश्न: धूमावती माता का प्रसाद कौन कौन खा सकता है?

उत्तर: धूमावती माता का प्रसाद हर कोई खा सकता है। इसको लेकर किसी भी तरह से डरने की आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न: देवी धूमावती को कैसे प्रसन्न करें?

उत्तर: यदि आप देवी धूमावती को प्रसन्न करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको गुप्त नवरात्रि के सातवें दिन देवी धूमावती का मंत्र पढ़ना चाहिए और उनकी साधना करनी चाहिए।

प्रश्न: धूमावती मंत्र क्या है?

उत्तर: धूमावती मंत्र “ऊँ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा” है जिसका मुख्य तौर पर गुप्त नवरात्र के सातवें दिन जाप किया जाता है।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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