Bhuvaneshwari Devi: भुवनेश्वरी देवी कौन है? जाने भुवनेश्वरी माता की कथा

मां भुवनेश्वरी (Maa Bhuvaneshwari)

माता सती के 10 रूपों में से मां भुवनेश्वरी (Maa Bhuvaneshwari) को एक रूप माना गया है। इसे उन्होंने शिवजी को अपनी शक्ति दिखाने के लिए प्रकट किया था। दस महाविद्याओं में चतुर्थ महाविद्या भुवनेश्वरी देवी (Bhuvaneshwari Devi) को माना जाता है। बहुत से भक्तों के लिए भुवनेश्वरी माता एक रहस्य बनकर रह गयी हैं क्योंकि उन्हें माता के इस रूप के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है।

इसलिए आज हम आपको भुवनेश्वरी माता की कथा समेत उनकी उत्पत्ति, महत्व व साधना मंत्र इत्यादि के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। इससे आप मातारानी के इस अद्भुत रूप के बारे में विस्तार से जान सकेंगे। आइये माँ भुवनेश्वरी महाविद्या (Bhuvaneshwari Mahavidya) के बारे में जान लेते हैं।

Maa Bhuvaneshwari | मां भुवनेश्वरी देवी

माता सती के दस रूपों में से उनका यह रूप बहुत ही अद्भुत व महान था। वह इसलिए क्योंकि यह रूप भगवान ब्रह्मा के समान था। भगवान ब्रह्मा को इस सृष्टि के रचियता के तौर पर जाना जाता है। माता सती या माता आदिशक्ति ने अपने इस भुवनेश्वरी देवी के रूप से यह बताया था कि वास्तविकता में उनके द्वारा ही इस संपूर्ण ब्रह्माण्ड व सृष्टि की रचना की गयी है।

ऐसे में सभी दस रूपों में उनका यह Bhuvaneswari Devi सबसे अनोखा रूप बन गया। अब आपके भुवनेश्वरी महाविद्या को लेकर कई तरह के प्रश्न होंगे। जैसे कि इनकी उत्पत्ति कैसे हुई या उसके पीछे की क्या कहानी है, इनका रूप कैसा है, माँ भुवनेश्वरी मंत्र क्या है, भुवनेश्वरी साधना विधि और उसका अनुभव कैसा है इत्यादि। इसलिए अब आपके प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देने का समय आ गया है।

भुवनेश्वरी माता की कथा

यह कथा बहुत ही रोचक है जो भगवान शिव व उनकी प्रथम पत्नी माता सती से जुड़ी हुई है। हालाँकि उनकी दूसरी पत्नी माता पार्वती माँ सती का ही पुनर्जन्म मानी जाती हैं। भुवनेश्वरी महाविद्या की कहानी के अनुसार, एक बार माता सती के पिता राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया था।

चूँकि राजा दक्ष भगवान शिव से द्वेष भावना रखते थे और अपनी पुत्री सती के द्वारा उनसे विवाह किये जाने के कारण शुब्ध थे, इसलिए उन्होंने उन दोनों को इस यज्ञ में नहीं बुलाया। भगवान शिव इस बारे में जानते थे लेकिन माता सती इस बात से अनभिज्ञ थी।

यज्ञ से पहले जब माता सती ने आकाश मार्ग से सभी देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों को उस ओर जाते देखा तो अपने पति से इसका कारण पूछा। भगवान शिव ने माता सती को सब सत्य बता दिया और निमंत्रण ना होने की बात कही। तब माता सती ने भगवान शिव से कहा कि एक पुत्री को अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए निमंत्रण की आवश्यकता नहीं होती है।

माता सती अकेले ही यज्ञ में जाना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने अपने पति शिव से अनुमति मांगी किंतु उन्होंने मना कर दिया। माता सती के द्वारा बार-बार आग्रह करने पर भी शिव नहीं माने तो माता सती को क्रोध आ गया और उन्होंने शिव को अपनी महत्ता दिखाने का निर्णय लिया।

तब माता सती ने भगवान शिव को अपने 10 रूपों के दर्शन दिए जिनमें से चौथी माँ भुवनेश्वरी थी। मातारानी के यही 10 रूप दस महाविद्या कहलाए जिनमें से एक रूप Maa Bhuvaneshwari का था। अन्य नौ रूपों में क्रमशः काली, तारा, षोडशी,भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगीकमला आती हैं।

भुवनेश्वरी का अर्थ

भुवनेश्वरी शब्द दो शब्दों के मेल से बना है। इसमें भुवन का अर्थ पृथ्वी या समस्त ब्रह्मांड से है जबकि ईश्वरी का अर्थ विधाता या भगवान से है। इस प्रकार भुवनेश्वरी का मतलब हुआ जो पृथ्वी या समस्त ब्रह्मांड की माता हो, जिसके द्वारा इस ब्रह्मांड की रचना की गयी हो और जो जगत जननी हो।

इसी कारण मां भुवनेश्वरी को भगवान ब्रह्मा के समरूप ही माना गया है। शक्ति के बिना तो शिव को भी अधूरा माना गया है। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि ब्रह्माण्ड में जितना योगदान शिव का है, उतना ही योगदान शक्ति का भी है। दोनों के मेल से ही हमारा और आपका निर्माण हुआ है। यही माता सती ने अपने Bhuvaneshwari Mahavidya के रूप में प्रकट किया है।

भुवनेश्वरी महाविद्या का रूप

जब माता सती भगवान शिव को अपनी महत्ता दिखाने के लिए अपने विभिन्न रूप प्रकट कर रही थी तब उसमें से चौथे रूप में Bhuvaneshwari Devi निकली जिनका रूप लगभग मातारानी के तीसरे रूप माता षोडशी के समान ही था। पहले तीन रूप मातारानी के काली कुल में आते हैं जबकि अन्य 7 रूप श्री कुल में। इस प्रकार माता भुवनेश्वरी श्री कुल की प्रथम माता कहलाई।

माता भुवनेश्वरी एक सिंहासन पर विराजमान हैं। उनका वर्ण उगते हुए सूर्य के समान सुनहरा है जिसमें से सूर्य के समान ही तेज निकलता है अर्थात माता भुवनेश्वरी में कई सूर्यों की शक्ति निहित है। इनके सिर पर मुकुट है जिस पर चंद्रमा सुसज्जित है व केश खुले हुए हैं। मातारानी ने लाल व पीले रंग के वस्त्र व कई तरह के आभूषण पहने हुए हैं।

भगवान शिव की ही भांति माता भुवनेश्वरी देवी के भी तीन नेत्र हैं। इनके चार हाथ हैं जिसमें से दो में उन्होंने अंकुश व फंदा पकड़ा हुआ है जबकि अन्य दो हाथ वरदान व अभय मुद्रा में है। मातारानी का यह रूप शांत मुद्रा में है जो अपने भक्तों को एकटक देख रहा है।

माँ भुवनेश्वरी मंत्र

ह्नीं भुवनेश्वरीयै ह्नीं नमः॥

यह मंत्र भुवनेश्वरी देवी का बीज मंत्र होता है। ऐसे में जो भी भक्तगण सच्चे मन के साथ भुवनेश्वरी मंत्र का जाप करता है, उसके सभी काम बन जाते हैं। इसके लिए आपको भुवनेश्वरी माता की साधना करनी होती है और उनका स्मरण करना होता है। अब हम आपको भुवनेश्वरी साधना विधि व उससे मिलने वाले लाभ के बारे में बताएँगे।

भुवनेश्वरी साधना विधि

ऊपर आपने माँ भुवनेश्वरी मंत्र जान लिया है। ऐसे में अब बारी है भुवनेश्वरी महाविद्या की साधना किस रूप में और किस विधि के तहत की जाए, यह जानने की। तो यहाँ हम आपको यह पहले ही बता दें कि Bhuvaneswari Devi की पूजा मुख्य तौर पर गुप्त नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है। गुप्त नवरात्र का चौथा दिन माँ भुवनेश्वरी को ही समर्पित किया गया है।

उस दिन भक्तगण मातारानी की चौकी सजाकर, उसके सामने मां भुवनेश्वरी या दुर्गा माता का चित्र लगाकर, उनका ध्यान करते हैं। इसके बाद माँ भुवनेश्वरी मंत्र का जाप किया जाता है। इसका जाप आप अपनी इच्छा अनुसार कितनी भी बार कर सकते हैं। फिर मातरानी को भोग लगाया जाता है और उनके नाम की ज्योत पूरे घर में घुमायी जाती है।

भुवनेश्वरी साधना अनुभव व लाभ

माता भुवनेश्वरी की पूजा करने से भक्तों की पुत्र प्राप्ति की कामना पूरी होती है। जिन भक्तों को संतान प्राप्ति की इच्छा है वे मुख्य रूप से मातारानी के इस रूप की पूजा करते हैं। Maa Bhuvaneshwari की पूजा करने से भक्तों को आत्मिक ज्ञान व चित्त शांति का अनुभव होता है। माँ भुवनेश्वरी हमे जीवन के पंच तत्वों का मूल समझाती हैं तथा ब्रह्मांड में हमारा क्या महत्व है, इसके बारे में जागृत करती हैं।

माता भुवनेश्वरी में सूर्य के समान तेज है जिससे उनके अंदर अथाह ऊर्जा है। उनकी पूजा करने से हम अपने शरीर के अंदर एक अद्भुत ऊर्जा का संचार महसूस करते हैं जिससे काम को तीव्र गति से करने की प्रेरणा मिलती है।

माँ काली महाविद्या की पूजा मुख्य रूप से गुप्त नवरात्रों में की जाती है। गुप्त नवरात्रों में मातारानी की 10 महाविद्याओं की ही पूजा की जाती है जिसमे से सर्वप्रथम महाविद्या काली की पूजा करने का विधान है।

Bhuvaneshwari Devi से संबंधित अन्य जानकारी

  • माता भुवनेश्वरी को शाकम्भरी व शताक्षी नाम से भी जाना जाता है।
  • समस्त ब्रह्मांड की जननी होने के कारण इन्हें राज राजेश्वरी व जगत जननी भी कहते हैं।
  • इन्हें माता पार्वती का रूप भी कहा जाता है।
  • भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को माँ भुवनेश्वरी जयंती मनाई जाती है।
  • माँ भुवनेश्वरी से संबंधित रुद्रावतार भुवनेश्वर रुद्रावतार है।

इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने मां भुवनेश्वरी (Maa Bhuvaneshwari) के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है। इनकी पूजा आप गुप्त नवरात्रि के साथ ही वर्ष के किसी भी समय कर सकते हैं।

भुवनेश्वरी माता से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: भुवनेश्वरी देवी कौन है?

उत्तर: भुवनेश्वरी देवी को भगवान ब्रह्मा का समरूप ही माना गया है जिस प्रकार शिव और शक्ति होती है, ठीक उसी तरह भुवनेश्वरी व ब्रह्मा को माना गया है

प्रश्न: भुवनेश्वरी कौन सा भगवान है?

उत्तर: भुवनेश्वरी कोई भगवान नहीं अपितु देवी हैं। वे इस समस्त ब्रह्माण्ड व पृथ्वी की जननी हैं। उन्हें भगवान ब्रह्मा का ही स्त्री रूप या उनके समरूप बताया गया है

प्रश्न: भुवनेश्वरी का अर्थ क्या है?

उत्तर: भुवनेश्वरी दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है जिसमें भुवन का अर्थ पृथ्वी या ब्रह्माण्ड से होता है तो वहीं ईश्वरी देवी या भगवान से संबंधित है

प्रश्न: भुवनेश्वरी जयंती कब है?

उत्तर: हर वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को भुवनेश्वरी जयंती मनाई जाती है साथ ही गुप्त नवरात्रि के चौथे दिन भी उनकी पूजा की जाती है

प्रश्न: भुवनेश्वरी देवी की पूजा कैसे करें?

उत्तर: भुवनेश्वरी देवी की पूजा करने के लिए आपको मातारानी के चित्र के सामने बैठकर भुवनेश्वरी बीज मंत्र का जाप करना चाहिए

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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