Chinmastika Mata: छिन्नमस्तिका माता की कहानी व छिन्नमस्ता देवी मंत्र

छिन्नमस्ता देवी (Chinnamasta Devi)

माँ सती की दस महाविद्याओं में से छिन्नमस्ता देवी (Chinnamasta Devi) छठी महाविद्या हैं जिनका रूप अत्यंत भीषण व डराने वाला है। माता छिन्नमस्ता इस रूप में अपने एक हाथ में किसी राक्षस का सिर नहीं बल्कि अपना ही कटा हुआ सिर पकड़े हुए रहती हैं। साथ ही उनकी गर्दन में से रक्त की तीन धाराएँ निकल रही होती हैं। ऐसे में उन्हें छिन्नमस्तिका माता (Chinmastika Mata) के नाम से भी जाना जाता है।

यह सुनकर आप अवश्य ही छिन्नमस्ता देवी का रहस्य जानने को इच्छुक होंगे। इसलिए आज हम आपके साथ इस सिर कटी हुई Maa Chinnamasta की कथा सांझा करेंगे। इस लेख में आपको माँ के इस अद्भुत रूप के बारे में संपूर्ण जानकारी मिलने वाली है

Chinnamasta Devi | छिन्नमस्ता देवी

वैसे तो मातारानी के कई रूप हैं। सामान्य नवरात्र में उनके 9 रूपों की पूजा की जाती है तो वहीं गुप्त नवरात्रों में उनके 10 महाविद्या रूप की पूजा की जाती है। इसी के साथ ही समय-समय पर मातारानी ने अपने कई रूप लिए हैं। इसमें से कुछ सौम्य हैं तो कई भयंकर दिखने वाले। माँ काली का रूप अत्यधिक भीषण व उग्र माना जाता है किन्तु माँ छिन्नमस्ता का रूप तो और भी आतंकित करने वाला है।

अपने इसी रूप के कारण ही सभी महाविद्याओं में छिन्नमस्ता महाविद्या (Chinnamasta Mahavidya) सभी के बीच प्रचलित हो गयी हैं। जगह-जगह छिन्नमस्ता माता के मंदिर खोले गए हैं। वहां हर दिन लाखों लोग अपना माथा टेकने आते हैं। ऐसे में आइये छिन्नमस्ता देवी के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली जाए।

छिन्नमस्तिका माता की कहानी

सबसे पहले तो हम छिन्नमस्ता देवी की कहानी (Chinnamasta Devi Story In Hindi) जान लेते हैं। यह कथा बहुत ही रोचक है जो भगवान शिव व उनकी प्रथम पत्नी माता सती से जुड़ी हुई है। हालाँकि उनकी दूसरी पत्नी माता पार्वती माँ सती का ही पुनर्जन्म मानी जाती हैं। छिन्नमस्ता महाविद्या की कहानी के अनुसार, एक बार माता सती के पिता राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया था।

चूँकि राजा दक्ष भगवान शिव से द्वेष भावना रखते थे और अपनी पुत्री सती के द्वारा उनसे विवाह किये जाने के कारण शुब्ध थे, इसलिए उन्होंने उन दोनों को इस यज्ञ में नहीं बुलाया। भगवान शिव इस बारे में जानते थे लेकिन माता सती इस बात से अनभिज्ञ थी।

यज्ञ से पहले जब माता सती ने आकाश मार्ग से सभी देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों को उस ओर जाते देखा तो अपने पति से इसका कारण पूछा। भगवान शिव ने माता सती को सब सत्य बता दिया और निमंत्रण ना होने की बात कही। तब माता सती ने भगवान शिव से कहा कि एक पुत्री को अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए निमंत्रण की आवश्यकता नहीं होती है।

माता सती अकेले ही यज्ञ में जाना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने अपने पति शिव से अनुमति मांगी किंतु उन्होंने मना कर दिया। माता सती के द्वारा बार-बार आग्रह करने पर भी शिव नहीं माने तो माता सती को क्रोध आ गया और उन्होंने शिव को अपनी महत्ता दिखाने का निर्णय लिया।

तब माता सती ने भगवान शिव को अपने 10 रूपों के दर्शन दिए जिनमें से छठी छिन्नमस्ता देवी थी। मातारानी के यही 10 रूप दस महाविद्या कहलाए जिसमें से छठा रूप Chinmastika Mata का है। अन्य नौ रूपों में क्रमशः काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी,धूमावती, बगलामुखी, मातंगीकमला आती हैं।

छिन्नमस्ता देवी का रहस्य

ऊपर तो आपने वह कहानी पढ़ी जब माता सती ने भगवान शिव को अपना प्रभाव दिखाया था। इसी कारण तो हम छिन्नमस्ता माता को Chinnamasta Mahavidya के रूप में भी जानते हैं। हालाँकि इनकी उत्पत्ति से लेकर एक अलग कहानी भी जुड़ी हुई है जिसके बारे में अब हम आपको बताने वाले हैं। इससे आपको मातारानी के इस अद्भुत रूप का रहस्य भी समझ में आ जाएगा।

एक बार माता पार्वती अपनी दो सेविकाओं जया व विजया के साथ मंदाकिनी नदी पर स्नान करने गई थी। वहां स्नान करने के पश्चात सभी को भूख लगने लगी। दोनों सेविकाओं ने मातारानी से भोजन माँगा। वहां पर भोजन नहीं था जिस कारण माता पार्वती ने उन्हें प्रतीक्षा करने को कहा। कुछ समय बाद भी जब उन्हें भोजन नहीं मिला तो दोनों सेविकाएँ व्याकुल हो उठी और माता पार्वती को कुछ करने को कहा।

अपनी सेविकाओं को भूख से व्याकुल देखकर माता पार्वती ने उसी समय खड्ग से स्वयं का ही मस्तक काटकर धड़ से अलग कर दिया। मातारानी के धड़ से तीन रक्त की धाराएँ फूटकर निकली। इसमें से एक धारा मातारानी के स्वयं के मुख में गयी जबकि दो अन्य धाराएँ उनकी दोनों सेविकाओं के मुहं में। इस तरह से दोनों सेविकाओं ने मातारानी का रक्त पीकर अपनी भूख शांत की थी।

बस इसी घटना के कारण ही मातारानी का यह Chinmastika Mata रूप प्रचलन में आ गया था। इसके माध्यम से मातारानी ने यह संदेश दिया था कि जब उनसे सच्चे मन से कुछ माँगा जाए तो अपने भक्तों को देने के लिए मातारानी किसी भी हद्द तक जा सकती हैं।

छिन्नमस्ता का अर्थ

छिन्नमस्ता शब्द दो शब्दों के मेल से बना है जिसमें से छिन्न का अर्थ अलग होने से है जबकि मस्ता का अर्थ मस्तक या सिर से है। इस प्रकार छिन्नमस्ता का मतलब जिसका मस्तक अपने धड़ से अलग हो गया हो।

माता पार्वती या सती ने Chinnamasta Devi के अपने इस रूप में इसी का ही प्रदर्शन किया है। इस कारण उनके इस रूप का नाम छिन्नमस्ता पड़ गया था। कुछ लोगों के द्वारा इसे छिन्नमस्तिका माता भी कह दिया जाता है।

छिन्नमस्ता देवी का स्वरुप

छिन्नमस्ता माता का स्वरुप अत्यंत ही भीषण है। यह माँ का उग्र रूप है, इसलिए उनके इस रूप को प्रचंड चंडिका भी कहा जाता है। माँ अपने अन्य उग्र रूपों में राक्षसों की कटी खोपड़ी हाथ में लिए रहती हैं जबकि इस रूप में उनके एक हाथ में स्वयं उनकी ही खोपड़ी रहती है।

माँ एक मैथुन करते हुए जोड़े के ऊपर खड़ी हैं। उनका वर्ण गुड़हल के समान लाल है तथा वस्त्रों के रूप में उन्होंने केवल आभूषण पहने हुए हैं। उनका सिर कटा हुआ है तथा धड़ में से रक्त की तीन धाराएँ निकल रही हैं। उनके आसपास उनकी दो सेविकाएँ खड़ी हैं। रक्त की दो धाराएँ दोनों सेविकाओं के मुहं में जा रही हैं जबकि एक धारा उनके स्वयं के मुख में जा रही है।

गले में उन्होंने राक्षस की खोपड़ियों की माला पहनी हुई है। कटे हुए सिर पर उन्होंने एक मुकुट पहना हुआ है जिसके तीन नेत्र हैं। माँ के दो हाथ हैं जिनमें से एक में खड्ग तथा दूसरे में अपना ही कटा हुआ सिर पकड़ा हुआ है। Maa Chinnamasta ने कमरबंद के रूप में भी राक्षस की खोपड़ियों को बांधा हुआ है।

छिन्नमस्ता देवी मंत्र

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट् स्वाहा॥

मातारानी का यह रूप मन को आतंकित अवश्य करता है लेकिन इस रूप के जरिये मातारानी यह दिखा रही हैं कि वे सच्चे भक्तों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए किस हद्द तक जा सकती हैं। ऐसे में यदि आप भी Chinmastika Mata की कृपा पाना चाहते हैं तो आपको सच्चे मन के साथ छिन्नमस्ता देवी मंत्र का जाप करना चाहिए। इससे जल्द ही मातारानी आपसे प्रसन्न होंगी और आपकी विपत्तियों का नाश करेंगी।

माँ छिन्नमस्ता पूजा विधि

यदि आप छिन्नमस्तिका माता को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उसके लिए विधिपूर्वक उनके मंत्र का जाप करना चाहिए। इसके लिए आपको नहा-धोकर, मातारानी की मूर्ति या चित्र के सामने आसन लगाकर बैठना चाहिए। यदि घर पर माँ छिन्नमस्ता का चित्र नहीं भी है तो आप माँ दुर्गा या माता पार्वती के चित्र के सामने भी आसन लगाकर बैठ सकते हैं।

अब आपको Maa Chinnamasta के सामने ज्योत प्रज्ज्वलित करनी चाहिए और उनका ध्यान करना चाहिए। फिर ऊपर हमने आपको जो छिन्नमस्ता देवी मंत्र बताया है, उसका जाप करना चाहिए। इस मंत्र का जाप आप अपनी इच्छा अनुसार कितनी भी बार कर सकते हैं। फिर अंत में मातारानी की ज्योत लेकर उसे पूरे घर में घुमाना चाहिए। इससे आपको जल्द ही लाभ मिलेगा।

छिन्नमस्ता पावर व पूजा लाभ

माँ छिन्नमस्ता के रूप व स्वभाव को देखते हुए इनकी पूजा तांत्रिकों द्वारा तंत्र व शक्ति विद्या अर्जित करने व अपने शत्रुओं का नाश करने के उद्देश्य से की जाती है। आम भक्तों को केवल इनकी उपासना करने की सलाह दी जाती है ना कि विशेष रूप से पूजा या साधना की।

तांत्रिकों व साधुओं के द्वारा माँ छिन्नमस्ता की पूजा अपने शत्रुओं का समूल नाश, भय को दूर करने व विपत्तियों को समाप्त करने के लिए की जाती है। माँ छिन्नमस्ता की कृपा से भक्तों पर आई विपत्ति व संकट दूर होते हैं तथा उनका मार्ग प्रशस्त होता है।

माता छिन्नमस्ता महाविद्या की पूजा मुख्य रूप से गुप्त नवरात्रों में की जाती है। गुप्त नवरात्रों में मातारानी की 10 महाविद्याओं की ही पूजा की जाती है जिसमें से छठे दिन महाविद्या छिन्नमस्ता की पूजा करने का विधान है।

Chinmastika Mata से संबंधित अन्य जानकारी

अब हम आपको माता छिन्नमस्ता के बारे में कुछ और जानकारी भी देने वाले हैं। आइये जाने।

  • छिन्नमस्ता माता का अन्य नाम छिन्नमस्तिका, प्रचंड चंडिका, स्वयंभू देवी व चिंतपूर्णी माता है।
  • छिन्नमस्ता देवी का शक्तिपीठ रांची राज्य के झारखंड में स्थित है।
  • छिन्नमस्ता देवी से संबंधित रुद्रावतार दमोदेश्वर महादेव हैं।

इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने छिन्नमस्ता देवी (Chinnamasta Devi) के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है। यहां हमने आपको छिन्नमस्तिका माता की कहानी से लेकर छिन्नमस्ता देवी के रहस्य के बारे में बता दिया है। आशा है कि आपको हमारे द्वारा दी गयी यह जानकारी पसंद आयी होगी।

छिन्नमस्ता देवी से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: छिन्नमस्ता देवी कौन सी है?

उत्तर: जिस देवी का सिर धड़ से अलग हुआ दिखाई देता है और उसमें से रक्त की तीन धाराएँ निकल रही हो, वही छिन्नमस्ता देवी कहलाती है

प्रश्न: छिन्नमस्ता देवी की पूजा कैसे करें?

उत्तर: यदि आप छिन्नमस्ता देवी की पूजा करना चाहते हैं तो आपको छिन्नमस्ता देवी का ध्यान कर, उनके बीज मंत्र का जाप करना चाहिए साथ ही गुप्त नवरात्रि के छठे दिन उनका स्मरण किया जाना चाहिए

प्रश्न: छिन्नमस्ता की पूजा क्यों करते हैं?

उत्तर: छिन्नमस्ता देवी की पूजा करने से हमारे शत्रुओं का नाश होता है, संकट दूर होते हैं और सभी तरह की बाधाओं का समाधान हो जाता है इसलिए हम उनकी पूजा करते हैं

प्रश्न: छिन्नमस्ता देवी का अर्थ क्या है?

उत्तर: छिन्नमस्ता देवी का अर्थ एक ऐसी देवी से है जिसका मस्तक धड़ से अलग हो गया है इसमें छिन्न का अर्थ अलग होने और मस्ता का अर्थ मस्तक अर्थात सिर से है

प्रश्न: क्या छिन्नमस्ता काली का एक रूप है?

उत्तर: हम छिन्नमस्ता को माँ काली का एक रूप कह सकते हैं लेकिन वास्तव में यह माता सती या माता पार्वती का एक रूप मानी जाती हैं।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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