आज हम आपको दुर्गा चालीसा हिंदी में (Durga Chalisa Lyrics In Hindi) अर्थ व भावार्थ सहित देंगे। दुर्गा चालीसा तो आपको कहीं से भी आसानी से मिल जाएगी। यह आपको हर तरह की धार्मिक पुस्तकों और ऑनलाइन मिल जाएगी किन्तु प्रश्न यह है कि धर्मयात्रा की इस वेबसाइट पर लिखे गए इस लेख में आपको अलग से क्या जानने को मिलेगा जो अन्यत्र नहीं मिलेगा!!
तो इस प्रश्न का उत्तर यह है कि यहाँ पर आपको दुर्गा चालीसा के हिंदी अर्थ (Durga Chalisa In Hindi) के साथ उसका भावार्थ भी जानने को मिलेगा। आज हमने दुर्गा चालीसा की एक-एक पंक्ति को उसके हिंदी अनुवाद के साथ ही उसके भावों को समझाने का प्रयास किया है। इसे पढ़कर अवश्य ही आपको बहुत आनंद आएगा।
इसके बाद हम आपको दुर्गा चालीसा पढ़ने के नियम, महत्व और लाभ भी बताने वाले हैं। तो आइए सबसे पहले जानते हैं दुर्गा चालीसा लिरिक्स इन हिंदी अर्थ सहित।
Durga Chalisa Lyrics In Hindi | दुर्गा चालीसा हिंदी में
अब हम दुर्गा चालीसा की एक-एक पंक्ति का अनुवाद करेंगे और फिर उसका भावार्थ समझाएंगे। चलिए शुरू करते हैं।
नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अम्बे दुःख हरनी॥
अनुवाद: हे दुर्गा माँ!! जो सभी को सुख प्रदान करती हैं, उन्हें हमारा नमन है, नमन है। हे अम्बे माँ!! जो सभी के दुःख दूर करती हैं, उन्हें हमारा नमन है, नमन है।
भावार्थ: इस कथन का तात्पर्य यह है कि माँ दुर्गा का स्मरण करने से हमारे मन को शांति मिलती है। यदि हमे कोई तनाव है या किसी बात को लेकर चिंता सता रही है तो हमें सच्चे मन से माँ की भक्ति करनी चाहिए। इससे हमारा मन शांत होता है तथा आगे का मार्ग नज़र आता है। एक तरह से माँ ही हमें आगे क्या करना चाहिए और क्या नहीं, इसके बारे में बताती हैं जिससे हमारे सभी तरह के संकट व दुःख दूर हो जाते हैं।
निराकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥
अनुवाद: आपकी ज्योति का कोई आकार नहीं है और वह तीनों लोकों में फैल कर सभी को प्रकाश दे रही है।
भावार्थ: यह कथन भी पहले वाले कथन को आगे बढ़ा कर लिखा गया है जिसमे एक व्यक्ति या लोक पर माँ की महिमा का प्रभाव ना बता कर सभी तरह के लोकों पर उनका प्रभाव बताया गया है। फिर चाहे वह स्वर्ग लोक हो, पृथ्वी लोक हो या फिर पाताल लोक। माँ की कृपा सभी पर समान रूप से रहती है। वह लोगों के जीवन में अंधकार रुपी व्याप्त संकट को समाप्त कर उन्हें आगे का मार्ग दिखा कर जीवन में प्रकाश फैलाने का काम कर रही हैं।
शशि ललाट मुख महा विशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
अनुवाद: आपका माथा चन्द्रमा के जैसा है और मुहं बहुत ही विशाल है। आपकी आँखें लाल रंग की और भौहें बहुत ही भयंकर है।
भावार्थ: इसमें माँ के रूप का वर्णन किया गया है जिसमे बताया गया है कि माँ का रूप मनोहर होने के साथ-साथ भीषण भी है। माँ के माथे अर्थात सिर को चन्द्रमा की भांति बताया गया है अर्थात माँ का सिर चन्द्रमा की भांति शीतल व ठंडा है जिस कारण वे हर कार्य को शांत दिमाग से करती हैं। माँ की आँखों को लाल बताया गया है अर्थात दुष्टों का नाश करने के लिए वह हमेशा ही तैयार रहती हैं और उनकी भौहें उनके लिए चढ़ी ही रहती है।
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥
अनुवाद: आपका रूप मन को मोहित कर देने वाला है। जो भी भक्तगण आपके दर्शन कर लेता है, उसे असीम आनंद की प्राप्ति होती है।
भावार्थ: ऊपर वाले कथन को आगे बढ़ाते हुए ही यह बताया गया है कि माँ का जो भी रूप है, वह हम सभी को बराबर रूप से आनंद देता है। वह अपने शीतल व भीषण रूप में भक्तों को आनंद देती हैं अर्थात उन्हें सुख भी देती हैं और उनके शत्रुओं का भी नाश करती हैं। माँ के दोनों रूप को देख कर भक्तगण उनकी छत्रछाया में सुरक्षित महसूस करते हैं।
तुम संसार शक्ति लय कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अनुवाद: आपके अंदर इस विश्व की सभी शक्तियां समाहित है। आपने ही इस दुनिया के लालन-पालन के लिए अन्न व धन दिया हुआ है।
भावार्थ: इस विश्व में जितनी भी प्रकार की शक्तियां, ऊर्जा, चेतना विद्यमान है, वह माँ की ही दी हुई है। अब यदि हमसे कोई काम नहीं हो पा रहा है या हम ऊर्जा की कमी महसूस कर रहे हैं तो उस समय हमें सच्चे मन से माँ का ध्यान करना चाहिए। उनके गुणों को देखते हुए हमारे शरीर में भी ऊर्जा का संचार होता है। साथ ही यह भी बताया गया है कि इस विश्व में जो भी धन व अन्न की प्राप्ति हो रही है वह भी माँ की ही कृपा से हो रही है।
अन्नपूरना हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
अनुवाद: माँ अन्नपूर्णा आपका ही रूप है जो इस विश्व का पेट भर रही हैं। आप अत्यधिक सुन्दर व मन को मोह लेने वाली हो।
भावार्थ: ऊपर आपने जाना कि माँ दुर्गा ही इस विश्व को अन्न व धन दे रही हैं तो आपको यह तो पता ही होगा कि अन्न की देवी माँ अन्नपूर्णा हैं। माँ अन्नपूर्णा का स्थान हर घर की रसोई में होता है और उन्हीं को नमन कर ही हम भोजन ग्रहण करते हैं। तो वह माँ अन्नपूर्णा माँ दुर्गा का ही एक रूप हैं। इसके साथ ही फिर से माँ के रूप को बहुत ही सुन्दर बताया गया है।
प्रलय काल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिव शंकर प्यारी॥
अनुवाद: जब इस दुनिया में प्रलय आती है तब आप ही सभी का नाश कर देती हैं। आप ही माँ पार्वती का रूप हो जो भगवान शिव को अत्यधिक प्रिय हैं।
भावार्थ: जिस प्रकार माँ का एक रूप इस विश्व का कल्याण करने वाला और सभी को सुख पहुँचाने वाला है तो दूसरी ओर, माँ इस सृष्टि का संहार करने वाली भी हैं। जो कार्य भगवान शिव के द्वारा किया जाता है, वह एक तरह से माँ ही करती हैं और इस सृष्टि में प्रलय लेकर आती हैं व सभी का नाश कर देती हैं। अब निर्माण कार्य के लिए विनाश किया जाना भी अति-आवश्यक होता है और यही माँ दुर्गा का कार्य है। भगवान शिव की पत्नी माँ पार्वती को भी माँ दुर्गा का ही एक रूप बताया गया है।
शिव योगी तुम्हरे गुण गावैं। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावैं॥
अनुवाद: भगवान शिव भी आपकी महिमा का बखान करते हैं। भगवान विष्णु व भगवान ब्रह्मा भी आपका ही ध्यान करते हैं।
भावार्थ: जैसा कि हमने पहले ही बताया कि माँ ही सब जगह व्याप्त हैं और उनके द्वारा ही सब चीज़ों का निर्माण किया गया है। इसी कारण स्वयं त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु व महेश मिलकर माँ की ही स्तुति करते हैं और उनका ध्यान करते हैं। इसी के द्वारा ही उन्हें शक्तियां प्राप्त होती है और वे सृष्टि को चलाने का कार्य करते हैं।
रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
अनुवाद: आपने ही माँ सरस्वती का रूप लिया हुआ है और उस रूप में आपने ऋषि-मुनियों को बुद्धि प्रदान कर उनका उद्धार किया है।
भावार्थ: माँ सरस्वती को इस सृष्टि में बुद्धि, विद्या व संगीत की देवी माना गया है और उन्हीं के द्वारा ही मनुष्यों व अन्य जीव-जंतुओं में मस्तिष्क का विकास किया गया है। तो वह माँ सरस्वती भी माँ दुर्गा का ही एक रूप हैं जिसे माँ दुर्गा ने भगवान ब्रह्मा के कहने पर प्रकट किया था। एक तरह से यदि हम माँ दुर्गा का ध्यान करते हैं तो हमारी बुद्धि का विकास होता है और हममें अच्छे-बुरे की समझ आती है।
धरा रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़ कर खम्बा॥
अनुवाद: आपने ही भगवान नरसिंह का अवतार लिया था और राजमहल के खम्भे को फाड़ कर प्रकट हुई थी।
भावार्थ: माँ दुर्गा अपने भक्तों की रक्षा करती हैं फिर चाहे वे पाताल लोक में राक्षसों के घर ही क्यों ना जन्मे हो। जिस प्रकार भक्त प्रह्लाद राक्षस राजा हिरण्यकश्यप के यहाँ पुत्र रूप में जन्मे थे किन्तु वे बहुत बड़े विष्णु भक्त थे। इसी कारण उन्हें उनके पिता के द्वारा बहुत यातनाएं दी गयी किन्तु उनकी विष्णु भक्ति अडिग रही। तब आपने ही प्रह्लाद के मान-सम्मान की रक्षा करने के लिए नरसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यप के राजमहल के खम्भे को फाड़ कर प्रकट हुई।
रक्षा करि प्रहलाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
अनुवाद: आपने अपनी शक्ति से अपने भक्त प्रह्लाद के मान की रक्षा की थी तथा राक्षस राजा हिरण्यकश्यप का वध कर दिया था।
भावार्थ: आपका वह नरसिंह रूप अत्यंत ही भीषण था जिसे देख कर सभी राक्षस थर-थर कांपने लग गए थे। इसके बाद आपने राक्षस हिरण्यकश्यप का वध कर दिया था और प्रह्लाद को राक्षस नगरी का राजा घोषित किया था। कहने का अर्थ यह हुआ कि हम चाहे किसी भी लोक में हो, यदि हम माँ दुर्गा के सच्चे भक्त हैं तो हमारी रक्षा करने के लिए माँ किसी भी रूप में प्रकट हो सकती हैं।
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥
अनुवाद: आपने ही माँ लक्ष्मी का भी रूप लिया है जो नारायण के साथ विराजमान हैं।
भावार्थ: धन व संपत्ति की देवी माँ लक्ष्मी भी आपका ही एक रूप हैं। यदि हम सच्चे मन से माँ दुर्गा की भक्ति करते हैं और कार्य करते हैं तो हमारे पास कभी भी धन-संपत्ति की कमी नहीं होती है। इसलिए हमें लक्ष्मी को माँ दुर्गा मान कर ही उनका सम्मान करना करना चाहिए व इसका कभी दुरूपयोग नहीं करना चाहिए।
क्षीरसिंधु में करत विलासा। दयासिंधु दीजै मन आसा॥
अनुवाद: आप माँ लक्ष्मी के रूप में भगवान विष्णु के साथ क्षीर सागर में विराजित हैं। हे माँ लक्ष्मी!! आप दया की सागर हैं और अब आप मेरे मन की इच्छाओं को पूरा कीजिये।
भावार्थ: माँ लक्ष्मी के रूप में आप क्षीर सागर में रह रही हो और वहीं से भक्तों के मन की हरेक इच्छा को पूरा कर रही हो। आपकी कृपा दृष्टि से ही हमारे मन की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। यदि आप किसी बात को लेकर आशान्वित हैं तो आपको माँ दुर्गा का ध्यान कर उस कार्य को पूरा करने में लग जाना चाहिए। इससे वह कार्य जल्द से जल्द बन जायेगा।
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
अनुवाद: हिंगलाज में माँ भवानी का रूप भी आपका ही रूप है। आपकी महिमा का बखान तो हम में से कोई नहीं कर सकता है।
भावार्थ: माँ दुर्गा के अनेक रूप हैं और उसी में एक रूप माँ भवानी का भी है जो भक्तों की हर इच्छा को पूरा करती हैं। माँ दुर्गा के गुण व शक्तियां इतनी अधिक है कि उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है। आप जो भी गुण या शक्ति उनमें देखना चाहेंगे वह आपको दिख जाएगी।
मातंगी धूमावती माता। भुवनेश्वरि बगला सुख दाता॥
अनुवाद: आप ही माँ मातंगी व माँ धूमावती हैं। माँ भुवनेश्वरी व माँ बगलामुखी के रूप में आप ही हम सभी को सुख प्रदान कर रही हैं।
भावार्थ: हम गुप्त नवरात्र में माँ दुर्गा की 10 महाविद्याओं की पूजा करते हैं और वह सभी रूप ही अलग-अलग फल देने वाले हैं। कहने का अर्थ यह हुआ कि माँ लोगों को फल देने के अनुरूप ही अपना रूप धारण करती हैं और उसी रूप में उनकी हर इच्छा को पूरा करती हैं।
श्री भैरव तारा जग तारिणी। क्षिन्न लाल भवदुख निवारिणी॥
अनुवाद: माँ भैरवी व माँ तारा के रूप में आप ही इस जगत का उद्धार कर रही हैं। माँ छिन्नमस्ता के रूप में आप ही इस सृष्टि का दुःख दूर करती हैं।
भावार्थ: 10 महाविद्याओं में ही अन्य कुछ रूपों का वर्णन इस कथन में किया गया है। इसमें उनके रूप के अनुसार उनकी महत्ता को दर्शाया गया है। अब माँ के जितने भी अलग-अलग रूप हम पूजते हैं, वह सभी अंत में जाकर माँ दुर्गा में ही समा जाते हैं। इसलिए यदि दुर्गा माता की पूजा ही कर ली जाए तो वह इन सभी माताओं की पूजा मानी जाती है।
केहरि वाहन सोहे भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥
अनुवाद: आपका वाहन सिंह (शेर) है जिस पर आप भवानी रूप में विराजमान हैं। स्वयं हनुमान जी भी आपकी सेवा में तत्पर रहते हैं।
भावार्थ: जिस प्रकार सभी देवताओं के अपने-अपने वाहन होते हैं और वे उसी पर सवार होकर आते हैं, ठीक उसी तरह आपका वाहन सिंह है जो अत्यधिक शक्तिशाली है। ऐसे में यदि दुष्टों का संहार करना हुआ तो वह आपका वाहन अकेला भी कर सकता है। वीर हनुमान जो भगवान श्रीराम के सेवक हैं, वे भी आपकी ही आराधना करते हैं और आपको ही सर्वोच्च मानते हैं। यदि कोई भक्त आपका नाम लेता है तो उसके संकट हरने स्वयं हनुमान भी तैयार रहते हैं।
कर में खप्पर खड़ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥
अनुवाद: आपके हाथों में राक्षसों की खोपड़ियाँ व खड्ग होती है जिसे देख कर तो स्वयं काल भी भयभीत हो जाते हैं।
भावार्थ: इस कथन की सहायता से माँ को दुष्टों का संहार करने वाली बताया गया है। इसमें माँ दुर्गा को अपने हाथों में राक्षसों व दुष्टों के नरमुंड लिए हुए दिखाया गया है। जिससे वे उन राक्षसों का सिर काट देती हैं, वह खड्ग लिए हुए भी दिखाया गया है। यदि शत्रु काल जितना शक्तिशाली है और वह धर्म की हानि कर रहा है या माँ दुर्गा के भक्तों को कष्ट पहुंचा रहा है तो माँ दुर्गा स्वयं उसका संहार करने आती हैं। यदि आपका माँ दुर्गा में विश्वास है तो आपका बड़े से बड़ा संकट भी टल जाता है।
सोहे अस्त्र और त्रिसूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
अनुवाद: आपने अपने हाथों में तरह-तरह के अस्त्र व त्रिशूल भी पकड़ा हुआ है। इसे देख कर तो सभी दुष्ट व राक्षस भयभीत हो उठते हैं।
भावार्थ: माँ दुर्गा ने हर तरह के शत्रु, संकट, विपदा, राक्षस इत्यादि का नाश करने के लिए अस्त्र-शस्त्र उठाये हुए हैं। उनसे प्रेरणा लेकर हमें भी बुराई के आगे कभी हार नहीं माननी चाहिए और हमेशा विपत्ति का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। यदि हम संकट के समय में अडिग होकर खड़े रहेंगे तो अवश्य ही वह संकट भी चला जायेगा।
नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहूँ लोक में डंका बाजत॥
अनुवाद: आप हर नगरी में बसती हैं व साथ ही तीनो लोकों में आपकी जय-जयकार होती है।
भावार्थ: इस सृष्टि के कण-कण में माँ दुर्गा का वास है और ऐसा कोई स्थान नहीं है, जहाँ पर उनकी नज़र ना हो। माँ के भक्त हर जगह पर हैं और इसी कारण हर ओर उनकी ही जय-जयकार हो रही है। एक तरह से यदि हम कहीं भी गलत कार्य करते हैं तो हम यह नहीं सोच सकते हैं कि हम बच गए क्योंकि माँ की नज़र हम पर हमेशा बनी हुई है और हमें हमारे कर्मों का फल अवश्य ही मिलेगा।
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥
अनुवाद: आपने ही शुम्भ व निशुम्भ नामक राक्षसों का वध किया था। रक्तबीज नामक भयंकर राक्षस का संहार भी आपके ही हाथों हुआ था। शंख राक्षस का वध भी आपने ही किया था।
भावार्थ: आपने हर तरह के दानवों का वध किया है फिर चाहे वह शुम्भ-निशुम्भ हो या अत्यधिक शक्तिशाली रक्तबीज हो। रक्तबीज जैसा राक्षस जिसकी रक्त की बूंदे धरती पर गिरने पर उतने ही रक्तबीज और पैदा हो जाते थे, उसका नाश करने के लिए आपने काली का रूप धर कर उसका रक्त तक पी लिया था। इस तरह से आप दुष्टों का अंत करने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकती हैं और आपके भक्तों को भी विपरीत से विपरीत परिस्थिति में अडिग रहना चाहिए।
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
अनुवाद: एक समय में महिषासुर राक्षस के आंतक से तीनों लोक भयभीत थे और यह धरती उसके पाप के भार से व्याकुल हो उठी थी।
भावार्थ: बहुत समय पहले जब तीनों लोकों में महिषासुर राक्षस का आंतक फैल गया था तथा धरती भी उसके पाप के बोझ को नहीं सह पा रही थी अर्थात उसने धरतीवासियों पर इतने अत्याचार शुरू कर दिए थे कि हर जगह त्राहिमाम हो रहा था। स्वयं देवता भी उससे भयभीत थे और त्रिदेव भी उसका हल नहीं ढूंढ पा रहे थे तब आपने ही सभी का उद्धार किया था।
रूप कराल काली को धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
अनुवाद: तब आपने उस दुष्ट राक्षस का वध करने के लिए अपना भीषण रूप धरा जो माँ काली का था। उस रूप में आपने उस महिषासुर राक्षस के साथ भयंकर युद्ध करके संपूर्ण सेना सहित उसका विनाश कर दिया था।
भावार्थ: उस समय महिषासुर जैसे राक्षस का सामना करने के लिए आपने अपना भीषण रूप काली का धरा था। उसके बाद आप महिषासुर व उसकी संपूर्ण राक्षस सेना से भिड़ गयी थी और यह युद्ध 9 दिनों तक चला था। हर दिन आपने महिषासुर के अनगिनत राक्षसों का वध कर दिया था तथा अंतिम दिन आपने महिषासुर का भी वध कर दिया था। इस तरह से आपने इस धरती से पाप का अंत किया था और धर्म की पुनः स्थापना की थी।
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अनुवाद: इस सृष्टि में जब कभी भी आपके भक्तों पर किसी तरह का संकट या विपदा आई है, तब-तब आपने माँ के रूप में उन्हें आश्रय दिया है।
भावार्थ: इस तरह हमें यह पता चलता है कि जब कभी भी आपके भक्तों पर किसी भी तरह का संकट आया है, आपने बिना किसी देरी के उनकी सहायता की है। हमें आपसे प्रेरणा लेकर कभी भी विपत्ति से मुहं नहीं मोड़ना चाहिए बल्कि उसका डट कर सामना करना चाहिए फिर चाहे वह संकट कितना ही बड़ा क्यों ना हो। यदि हम संतुलित दिमाग के साथ सही तरीके से उसका सामना करेंगे तो अंत में विजय हमारी ही होगी।
अमर पुरी औरों सब लोका। तब महिमा सब रहे अशोका॥
अनुवाद: स्वर्ग लोक सहित अन्य लोकों के सब दुःख व संकट आपके कारण ही समाप्त हो जाते हैं।
भावार्थ: चाहे स्वर्ग लोक हो या पृथ्वी या पाताल लोक, हर जगह आपकी ही महिमा फैली हुई है अर्थात स्वर्ग लोक में देवता भी यदि अधर्म का कार्य करेंगे तो उसका दंड आप ही उन्हें देंगी और पाताल लोक में राक्षस यदि पुण्य का कर्म करेंगे तो उसका फल भी आप ही देंगी। इस तरह से हम माँ की महिमा को हर लोक में देख सकते हैं और माँ हर लोक के प्राणियों पर कृपा दृष्टि बनाये रखती हैं।
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजैं नर नारी॥
अनुवाद: ज्वाला में आपके नाम की ही ज्योति दिन-रात जल रही है। आपको इस सृष्टि का हर मनुष्य पूजनीय मानता है।
भावार्थ: ज्वाला माता में आपका जो मंदिर है और वहां पर जो ज्योत सदियों से दिन-रात जलती आ रही है और वह भी बिना किसी घी या अन्य पदार्थ के, वह भी आपकी ही महिमा है। इसको देख कर तो हर मनुष्य आपकी महिमा को जान जाता है और आपकी पूजा करता है। एक तरह से आप अग्नि में विराजमान हैं या अग्नि भी आपका ही एक रूप है।
प्रेम भक्ति से जो जस गावै। दुःख दारिद्र निकट नहीं आवै॥
अनुवाद: जो भी प्रेम व भक्ति भाव के साथ इस दुर्गा चालीसा का पाठ (Durga Chalisa Hindi Mein) करता है, उसे किसी भी तरह का दुःख नहीं होता है तथा वह आर्थिक रूप से संपन्न बनता है।
भावार्थ: जिस भी मनुष्य के मन में प्रेम भावना है और उसकी भक्ति सच्ची है, तो उसे मातारानी की कृपा से कोई भी दुःख नहीं हो सकता है और ना ही उसे किसी चीज़ की कमी रहती है। एक तरह से सच्चा मनुष्य ही माँ का सेवक हो सकता है और जिस मनुष्य के मन में कटुता, ईर्ष्या इत्यादि नकारात्मक भावनाएं हैं, उसका कभी भी उद्धार नहीं हो सकता है।
ध्यावें तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म मरण ताको छुट जाई॥
अनुवाद: जो भी सच्चे मन से आपकी आराधना करता है, उसके जन्म-मरण के सभी बंधन टूट जाते हैं और वह मोक्ष को प्राप्त करता है।
भावार्थ: जो मनुष्य सच्चे मन से आपका ध्यान करता है अर्थात अपना मन निर्मल कर लेता है, पुण्य के कार्य करता है, किसी का बुरा नहीं करता है, तो धीरे-धीरे उसके सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और इस तरह से वह जीवन-मरण के चक्कर से निकल जाता है तथा मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
अनुवाद: सभी योगी, देवता व ऋषि-मुनि भी एक स्वर में यह कहते हैं कि आपके बिना तो योग भी नहीं किया जा सकता है।
भावार्थ: योग जिसे सनातन धर्म में प्रमुख स्थान दिया है और जिसके बल पर हम अपने तन व मन को संतुलित कर सकते हैं तथा ईश्वर तक को पा सकते हैं, वह भी बिना आपकी आज्ञा के या बिना आपका मनन किये संभव नहीं हो सकता है। योग की जो शक्ति है, वह भी आपकी ही कृपा से है जिसे हम कर पाते हैं।
शंकर आचारज तप कीनों। काम क्रोध जीति सब लीनों॥
अनुवाद: पूजनीय शंकराचार्य जी ने कठिन तपस्या की थी और उसके पश्चात ही उन्होंने काम व क्रोध इत्यादि सभी भावनाओं पर विजय प्राप्त कर ली थी।
भावार्थ: एक समय पहले इस धरती पर आदि शंकराचार्य जी हुए थे जिन्होंने भारत के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना की थी। उन्होंने उस समय शक्तियां प्राप्त करने तथा भावनाओं पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की कठिन तपस्या की थी। इसके पश्चात ही उन्हें काम, क्रोध, ईर्ष्या, लोभ इत्यादि भावनाओं पर विजय मिली थी।
निशि दिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
अनुवाद: उन्होंने दिन व रात भगवान शिव के नाम का ध्यान किया किन्तु आपके नाम को लेना भूल गए।
भावार्थ: उन्होंने इन भावनाओं पर विजय प्राप्त करने के लिए दिन-रात भगवान शिव का ही ध्यान किया लेकिन शक्ति का दूसरा स्वरुप माता दुर्गा का नाम लेना भूल गए। कहने का अर्थ यह हुआ कि उन्होंने शक्ति के आधे रूप की ही पूजा की और बाकि आधे रूप की पूजा करना वे भूल गए।
शक्ति रूप को मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछतायो॥
अनुवाद: उन्हें आपकी शक्ति रूप का मर्म नहीं था और इसी कारण उनकी संपूर्ण शक्ति पुनः चली गयी जिसे देख कर उन्हें बहुत पछतावा हुआ।
भावार्थ: उन्हें यह अहसास नहीं था कि यदि मनुष्य को इन सभी भावनाओं पर विजय प्राप्त करनी है और मोक्ष लेना है तो शक्ति के पूर्ण रूप की पूजा की जानी बहुत ही जरुरी है। ऐसे में केवल शिव के गुणों को ले लेना लेकिन शक्ति की अवहेलना करना सही नहीं है। इसी कारण उन्होंने जो कुछ पाया था, उसका उचित इस्तेमाल वे नहीं कर पाए और इसका अहसास उन्हें बाद में जाकर हुआ।
शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जै जै जै जगदम्ब भवानी॥
अनुवाद: तब महान शंकराचार्य जी आपकी शरण में आये और आपकी कीर्ति का बखान किया। उन्होंने आपके दरबार में आकर जगदम्बा भवानी की जय-जयकार की।
भावार्थ: जब उन्हें यह पता चला कि अपनी तपस्या में वे क्या भूल गए थे तब वे आपकी शरण में आये अर्थात आपकी भक्ति करनी शुरू की। अब उन्होंने शिव के साथ-साथ शक्ति की भी पूजा करनी शुरू कर दी और मातारानी के नाम का जयकारा लगाया।
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
अनुवाद: पूजनीय शंकराचार्य जी के इस कृत्य से आप बहुत प्रसन्न हो गयी और आपने उन्हें पुनः सभी शक्तियां बिना किसी देरी के दे दी।
भावार्थ: चूँकि अब आदि शंकराचार्य जी शिव व शक्ति दोनों की ही पूजा कर रहे थे तब एक समय के बाद उन्हें सब शक्तियां पुनः प्राप्त हो गयी और वे उसका समुचित उपयोग भी करने लगे। इस तरह से आदि शंकराचार्य जी को अपनी सभी शक्तियां प्राप्त हुई और उन्होंने विश्व को संदेश दिया।
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो॥
अनुवाद: हे माँ दुर्गा!! मेरे जीवन में भी बहुत संकट हैं जिन्होंने मुझे हर ओर से घेर रखा है। आपके सिवा कौन ही मेरा यह दुःख दूर कर सकता है।
भावार्थ: यदि हम चारों ओर से संकट से घिर जाते हैं और हमें उससे निकलने का कोई मार्ग नहीं दिखाई देता है तो ऐसे समय में भी हमे घबराने की बजाये उसका सामना करना चाहिए। यदि उसका सामना करने की शक्ति हमारे अंदर नहीं है तो हमें माँ दुर्गा का ध्यान करना चाहिए जिससे कि हमारे मन में शक्ति का संचार हो और हम उन संकटों का सामना कर सकें।
आशा तृष्णा निपट सतावै। रिपु मूरख मोहि अति डर पावै॥
अनुवाद: आशा व तृष्णा मुझे हर समय सताती है। मैं तो मूर्ख व्यक्ति हूँ और मैं मोह के आगे हार जाता हूँ।
भावार्थ: यहाँ मनुष्य की ऐसी भावनाओं के बारे में बताया गया है जिनसे वह हमेशा ही घिरा रहता है और अपने कर्म ठीक से नहीं कर पाता है। अब इन भावनाओं में किसी चीज़ को पाने की इच्छा, सम्मान की भावना, आसक्ति, मोह आदि आती है। एक मनुष्य इनके पीछे ही भागता रहता है और इसी कारण वह हमेशा दुखी रहता है। हर समय उसे कुछ ना कुछ पाने की चाह ही लगी रहती है।
शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
अनुवाद: अब आप ही मेरे इन शत्रुओं का नाश कीजिये। मैं हर समय आपके भवानी स्वरुप का ध्यान करता हूँ।
भावार्थ: ऐसे में आपको इन भावनाओं पर नियंत्रण पाने के लिए माँ दुर्गा का ध्यान करना चाहिए और उनकी भक्ति में अपना मन लगाना चाहिए। यदि आप माँ दुर्गा की भक्ति करते हैं या नित्य रूप से उनकी चालीसा का पाठ करते हैं तो धीरे-धीरे इन भावनाओं का प्रभाव कम होता चला जाता है।
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि सिद्धि दे करहु निहाला॥
अनुवाद: हे माँ दुर्गा!! अब आप अपने इस भक्त पर कृपा कीजिये। आप मुझे रिद्धि व सिद्धि प्रदान कर मेरा उद्धार कीजिये।
भावार्थ: इस कथन में हम सभी मातारानी से यह प्रार्थना कर रहे हैं कि उनके द्वारा हमें सभी तरह की रिद्धि-सिद्धि मिले अर्थात हमें ज्ञान मिले व बुद्धि का विकास हो। इसी से ही हमारा उद्धार संभव है क्योंकि बिना बुद्धि के हम कुछ भी नहीं कर सकते हैं।
जब लगि जियौं दया फल पाऊँ। तुम्हरो जस मैं सदा सुनाऊँ॥
अनुवाद: मैं जब तक इस सृष्टि में जीवित हूँ, तब तक मैं आपकी दया का पात्र बना रहूँ। मैं अपने जीवन के अंत समय तक आपका यश दूसरों को सुनाता रहूँगा।
भावार्थ: जब तक आप इस संसार में जीवित हैं, तब तक यदि आप अच्छे कर्म करेंगे और बुरे कर्म करने से बचेंगे तो मातारानी की कृपा हमेशा ही आप पर बनी रहेगी। यदि आप किसी तरह का बुरा कार्य करते हैं तो मातारानी आपसे रुष्ट हो जाती हैं और आपको इसका उचित दंड देती हैं। इसलिए आपको हमेशा ही सत्कर्म करने चाहिए।
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परम पद पावै॥
अनुवाद: जो कोई भी इस दुर्गा चालीसा का पाठ करता है, उसे सभी तरह के सुखों, संपत्ति, यश व वैभव की प्राप्ति होती है।
भावार्थ: जो कोई भी भक्तगण सच्चे मन से मातारानी का ध्यान कर दुर्गा चालीसा का पाठ करता है तो इससे उसके मन को शांति मिलती है तथा वह निर्मल हो जाता है। ऐसा करने से उसे सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती है और उसके सभी कार्य बन जाते हैं।
देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
अनुवाद: आपका यह भक्त देवीदास आपकी शरण में आया है। अब आप इस पर अपनी कृपा कीजिये और जगत का उद्धार कीजिये।
भावार्थ: इस दुर्गा चालीसा को देवीदास जी के द्वारा लिखा गया है और वही अंतिम पंक्ति में अपना नाम लिख कर यह बता रहे हैं कि वे माँ दुर्गा की शरण में आ गए हैं और अब उनका उद्धार उन्हीं के हाथों में है। इसी के साथ वे स्वयं पर और इस विश्व के सभी प्राणियों पर मातारानी की कृपा चाहते हैं।
इस तरह से आज आपने दुर्गा चालीसा हिंदी में (Durga Chalisa Hindi Mein) अर्थ व भावार्थ सहित पढ़ ली है। अब हम दुर्गा चालीसा पढ़ने के लाभ, नियम और महत्व भी जान लेते हैं।
दुर्गा चालीसा पढ़ने के नियम
आपको इंटरनेट पर अलग-अलग लेखों के माध्यम से दुर्गा चालीसा को पढ़ने के तरह-तरह के नियमों के बारे में बताया गया होगा जो कि अधिकतर व्यर्थ में ही लिखे गए होते हैं। पहली बात तो यह कि माँ का कोई भी भक्त दुर्गा चालीसा का पाठ कर सकता है और इसके लिए माँ की ओर से किसी तरह की शर्त नहीं रखी गयी है। हालाँकि आपको नैतिक तौर पर कुछ बातों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए।
उदाहरण के तौर पर आप बिना नहाये या नहाने के पश्चात यदि शौच गए हैं तो दुर्गा चालीसा का पाठ करने से बचें। आप जहाँ भी दुर्गा चालीसा का पाठ कर रहे हो, वह जगह स्वच्छ हो अर्थात किसी अनुचित जगह पर माँ दुर्गा चालीसा का पाठ करने से बचें। इसी के साथ ही जब भी आप दुर्गा चालीसा का पाठ करना शुरू करें तो अपने मन को भी शांत रखें और उसमे किसी भी तरह के अनुचित या बुरे विचार ना आने दें।
कुल मिलाकर हमारे कहने का तात्पर्य यह है कि दुर्गा चालीसा को पढ़ने से पहले जगह, तन व मन का स्वच्छ व निर्मल होना आवश्यक होता है। यदि आप बिना इसके भी दुर्गा चालीसा का पाठ करते हैं तो आपको कोई हानि तो नहीं होगी किन्तु कुछ लाभ भी नहीं मिलेगा। इसलिए यह बहुत ही आवश्यक है कि आप स्नान करके स्वच्छ जगह पर और निर्मल मन के साथ ही दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
दुर्गा चालीसा का महत्व
सनातन धर्म में कई तरह की देवियों व उनके तरह-तरह के रूपों के बारे में बात की गयी है तथा उनका महत्व दर्शाया गया है किन्तु उन सभी का आधार माँ आदिशक्ति जिन्हें हम माँ दुर्गा के नाम से भी जानते हैं, वही हैं। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि माँ पार्वती, माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती तथा अन्य देवियाँ माँ दुर्गा का ही एक रूप हैं या उनसे प्रकट हुई हैं। माँ दुर्गा ही इन सभी की आधार देवी मानी जाती हैं।
माँ दुर्गा चालीसा के माध्यम से हम सभी को यह बताने की चेष्ठा की गयी है कि उनके जैसा कोई दूसरा नहीं है और जो व्यक्ति दुर्गा माँ की चालीसा पढ़ता है, उसका उद्धार होना तय है। श्री दुर्गा चालीसा के माध्यम से माँ दुर्गा के गुणों, शक्तियों, पराक्रम, कर्मों, महत्व इत्यादि के बारे में विस्तार से बताया गया है ताकि भक्तगण माँ के पराक्रम के बारे में अच्छे से जान सकें। यही दुर्गा चालीसा का महत्व होता है।
दुर्गा चालीसा पढ़ने के लाभ
अब आपको माँ दुर्गा चालीसा का पाठ (Durga Chalisa In Hindi) करने से क्या कुछ लाभ मिलते हैं, इसके बारे में भी जानना होगा तो हम आपको निराश ना करते हुए इसके बारे में भी बताएँगे। दरअसल दुर्गा चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को एक नहीं बल्कि कई तरह के लाभ देखने को मिलते हैं जो उसके जीवन की दिशा तक को बदल सकते हैं। सीधे शब्दों में कहा जाए तो दुर्गा चालीसा का पाठ करने के लाभ बहुत सारे हैं।
जो व्यक्ति नियमित रूप से ऊपर बताये गए नियमों का पालन करते हुए दुर्गा चालीसा पढ़ता है, उसे अवश्य ही इसका प्रभाव कुछ ही सप्ताह में देखने को मिल जाता है। अब इनमे से कौन-कौन से लाभ आपको मिल सकते हैं, वह हम आपको नीचे बताने जा रहे हैं। आइये जाने दुर्गा चालीसा पढ़ने से मिलने वाले लाभ।
- यदि आपका कोई काम नहीं बन पा रहा है या रह-रह कर उसमें किसी ना किसी तरह की रूकावट आ रही है तो माँ दुर्गा के प्रभाव से वह जल्दी ही बन जाता है।
- यदि आपका मन खिन्न है या आप किसी बात को लेकर तनाव में हैं तो माँ दुर्गा चालीसा के प्रभाव से मन शांत होता है तथा तनाव दूर हो जाता है।
- यदि आपको आगे का कोई मार्ग समझ नहीं आ रहा है या जीवन में क्या किया जाए, इसको लेकर चिंतित हैं तो आगे का मार्ग भी सुगम होता है तथा आपको एक नयी राह भी मिलती है।
- माता दुर्गा के प्रभाव से और उनकी चालीसा के नियमित पाठ से आपका यश परिवार, मित्रों व समाज में फैलता है तथा मान-सम्मान में वृद्धि देखने को मिलती है।
- यदि आपके ऊपर कोई बुरा साया है या बुरी शक्तियों का प्रभाव है तो वह भी दुर्गा माँ के प्रभाव से समाप्त हो जाता है। यह लाभ तो आपको बस दुर्गा चालीसा के पाठ के कुछ दिनों में ही देखने को मिल जाएगा।
हालाँकि दुर्गा चालीसा को पढ़ने के इनके अलावा भी कई तरह के लाभ देखने को मिलते हैं जो हर व्यक्ति की स्थिति के अनुसार अलग-अलग प्रभाव डालते हैं। फिर भी हमने उनमें से कुछ चुनिंदा लाभों को आपके सामने रखा है ताकि आपको यह पता चल सके कि यदि आप नियमित रूप से दुर्गा चालीसा पढ़ेंगे तो आपके ऊपर उसका क्या प्रभाव होगा।
निष्कर्ष
आज के इस लेख के माध्यम से आपने दुर्गा चालीसा हिंदी में अर्थ व भावार्थ सहित (Durga Chalisa Lyrics In Hindi) पढ़ ली है। साथ ही आपने दुर्गा चालीसा का महत्व, नियम और पढ़ने के लाभ के बारे में भी जान लिया है। यदि आप इस लेख पर अपनी प्रतिक्रिया देना चाहते हैं या इस विषय पर हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपको प्रत्युत्तर देंगे।
मां दुर्गा चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: दुर्गा चालीसा कैसे पढ़ा जाता है?
उत्तर: दुर्गा चालीसा को पढ़ने के लिए आपका तन, मन व स्थान तीनो का शुद्ध होना आवश्यक है। ऐसे में आप शुद्ध शरीर, निर्मल मन और स्वच्छ स्थान पर ही दुर्गा माता की चालीसा का पाठ करें।
प्रश्न: दुर्गा चालीसा पढ़ने से क्या फल मिलता है?
उत्तर: दुर्गा चालीसा को पढ़ने से व्यक्ति के सभी संकट और बाधाएं अपने आप ही समाप्त होने लगती है। उसके दुखों का अंत हो जाता है और शत्रु भी मित्र बन जाते हैं।
प्रश्न: दुर्गा चालीसा कितनी बार करना चाहिए?
उत्तर: दुर्गा चालीसा का पाठ करना व्यक्ति विशेष की इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है। आप चाहे तो इसे प्रतिदिन पढ़ सकते हैं और एक दिन में भी कई बार पढ़ सकते हैं।
प्रश्न: क्या पीरियड्स के दौरान दुर्गा चालीसा पढ़ सकते हैं?
उत्तर: जी हां, आप पीरियड्स के दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ कर सकती है। हालाँकि इस दौरान मातारानी की मूर्ति को स्पर्श करना या मंदिर में जाना वर्जित होता है।
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