आज हम आपके साथ ललिता चालीसा (Lalitha Chalisa) का पाठ करने जा रहे हैं। भगवान शिव की प्रथम पत्नी का नाम माता सती था जिन्होंने यज्ञ कुंड की अग्नि में कूद कर आत्म-दाह कर लिया था। हालाँकि अनिष्ट होने की आशंका शिव को पहले ही हो गयी थी तभी उन्होंने माता सती को यज्ञ में जाने को मना किया था। तब माता सती ने अपनी दस महाविद्याओं का प्रदर्शन शिव के सामने किया था जिनमें से एक माता ललिता भी थी।
ललिता माता चालीसा (Lalita Chalisa) के माध्यम से माता ललिता के गुणों, शक्तियों व महत्व इत्यादि को वर्णित किया गया है। यही कारण है कि आज हम आपके सामने ललिता चालीसा इन हिंदी में भी रखेंगे ताकि आप उसका संपूर्ण भावार्थ समझ सकें। ललिता माता को त्रिपुर सुंदरी या षोडशी माता के नाम सभी जाना जाता है। अंत में आपको ललिता चालीसा पढ़ने के फायदे व महत्व भी जानने को मिलेंगे।
Lalitha Chalisa | ललिता चालीसा
॥ चौपाई ॥
जयति जयति जय ललिते माता, तब गुण महिमा है विख्याता।
तू सुन्दरि, त्रिपुरेश्वरी देवी, सुर नर मुनि तेरे पद सेवी।
तू कल्याणी कष्ट निवारिणी, तू सुख दायिनी, विपदा हारिणी।
मोह विनाशिनी दैत्य नाशिनी, भक्त भाविनी ज्योति प्रकाशिनी।
आदि शक्ति श्री विद्या रूपा, चक्र स्वामिनी देह अनूपा।
हृदय निवासिनी भक्त तारिणी, नाना कष्ट विपति दल हारिणी।
दश विद्या है रूप तुम्हारा, श्री चन्द्रेश्वरि! नैमिष प्यारा।
धूमा, बगला, भैरवी, तारा, भुवनेश्वरी, कमला, विस्तारा।
षोडशी, छिन्नमस्ता, मातंगी, ललिते! शक्ति तुम्हारी संगी।
ललिते तुम हो ज्योतित भाला, भक्त जनों का काम संभाला।
भारी संकट जब-जब आये, उनसे तुमने भक्त बचाये।
जिसने कृपा तुम्हारी पाई, उसकी सब विधि से बन आई।
संकट दूर करो माँ भारी, भक्तजनों को आस तुम्हारी।
त्रिपुरेश्वरी, शैलजा, भवानी, जय जय जय शिव की महारानी।
योग सिद्धि पावें सब योगी, भोगे भोग, महा सुख भोगी।
कृपा तुम्हारी पाके माता, जीवन सुखमय है बन जाता।
दुखियों को तुमने अपनाया, महामूढ़ जो शरण न आया।
तुमने जिसकी ओर निहारा, मिली उसे सम्पत्ति, सुख सारा।
आदि शक्ति जय त्रिपुर-प्यारी, महाशक्ति जय जय भयहारी।
कुल योगिनी, कुण्डलिनी रूपा, लीला ललिते करें अनूपा।
महा-महेश्वरी, महा शक्ति दे, त्रिपुर-सुन्दरी सदा भक्ति दे।
महा महानन्दे, कल्याणी, मूकों को देती हो वाणी।
इच्छा-ज्ञान-क्रिया का भागी, होता तब सेवा अनुरागी।
जो ललिते तेरा गुण गावे, उसे न कोई कष्ट सतावे।
सर्व मंगले ज्वाला-मालिनी, तुम हो सर्व शक्ति संचालिनी।
आया माँ जो शरण तुम्हारी, विपदा हरी उसी की सारी।
नामा-कर्षिणी, चित्त-कर्षिणी, सर्व मोहिनी सब सुख-वर्षिणी।
महिमा तब सब जग विख्याता, तुम हो दयामयी जगमाता।
सब सौभाग्य-दायिनी ललिता, तुम हो सुखदा करुणा कलिता।
आनन्द, सुख, सम्पति देती हो, कष्ट भयानक हर लेती हो।
मन से जो जन तुमको ध्यावे, वह तुरन्त मनवांछित पावे।
लक्ष्मी, दुर्गा तुम हो काली, तुम्हीं शारदा चक्र-कपाली।
मूलाधार निवासिनी जय-जय, सहस्रार गामिनी माँ जय-जय।
छः चक्रों को भेदने वाली, करती हो सबकी रखवाली।
योगी भोगी क्रोधी कामी, सब हैं सेवक सब अनुगामी।
सबको पार लगाती हो माँ, सब पर दया दिखाती हो माँ।
हेमावती, उमा, ब्रह्माणी, भण्डासुर का, हृदय विदारिणी।
सर्व विपति हर, सर्वाधारे, तुमने कुटिल कुपंथी तारे।
चन्द्र-धारणी, नैमिषवासिनी, कृपा करो ललिते अघनाशिनी।
भक्तजनों को दरस दिखाओ, संशय भय सब शीघ्र मिटाओ।
जो कोई पढ़े ललिता चालीसा, होवे सुख आनन्द अधीसा।
जिस पर कोई संकट आवे, पाठ करे संकट मिट जावे।
ध्यान लगा पढ़े इक्कीस बारा, पूर्ण मनोरथ होवे सारा।
पुत्र हीन सन्तति सुख पावे, निर्धन धनी बने गुण गावे।
इस विधि पाठ करे जो कोई, दुःख बन्धन छूटे सुख होई।
जितेन्द्र चन्द्र भारतीय बतावें, पढ़ें चालीसा तो सुख पावें।
सबसे लघु उपाय यह जानो, सिद्ध होय मन में जो ठानो।
ललिता करे हृदय में बासा, सिद्धि देत ललिता चालीसा।
॥ दोहा ॥
ललिते माँ अब कृपा करो, सिद्ध करो सब काम।
श्रद्धा से सिर नाय कर, करते तुम्हें प्रणाम॥
Lalita Chalisa In Hindi | ललिता चालीसा इन हिंदी
॥ चौपाई ॥
जयति जयति जय ललिते माता, तब गुण महिमा है विख्याता।
तू सुन्दरि, त्रिपुरेश्वरी देवी, सुर नर मुनि तेरे पद सेवी।
तू कल्याणी कष्ट निवारिणी, तू सुख दायिनी, विपदा हारिणी।
मोह विनाशिनी दैत्य नाशिनी, भक्त भाविनी ज्योति प्रकाशिनी।
ललिता माता की जय हो, जय हो। आपकी महिमा तो संपूर्ण जगत में प्रसिद्ध है। आप ही सबसे सुन्दर व तीनों लोकों की देवी हो जिनके चरणों की सेवा तो देवता, मनुष्य व मुनिजन करते हैं। आप हम सभी का कल्याण करने वाली और कष्टों को दूर करने वाली हो। आप ही हमें सुख प्रदान करने वाली और विपदाओं को दूर करने वाली हो। आप मोहमाया के चंगुल से हमें छुड़ाती हो और दैत्यों का नाश कर देती हो। आप भक्तों के हृदय में ज्ञान की ज्योति जलाती हो।
आदि शक्ति श्री विद्या रूपा, चक्र स्वामिनी देह अनूपा।
हृदय निवासिनी भक्त तारिणी, नाना कष्ट विपति दल हारिणी।
दश विद्या है रूप तुम्हारा, श्री चन्द्रेश्वरि! नैमिष प्यारा।
धूमा, बगला, भैरवी, तारा, भुवनेश्वरी, कमला, विस्तारा।
आप ही माँ आदिशक्ति हो और विद्या का रूप माँ सरस्वती हो। आप ही सुदर्शन चक्र की स्वामिनी अर्थात माँ लक्ष्मी हो। आप भक्तों के हृदय में वास कर उनका उद्धार कर देती हो। आप सभी प्रकार के कष्टों को दूर करने में सक्षम हो। सभी दस महाविद्या आपका ही रूप हैं। आप ही चन्द्रमा की देवी हो और नैमिष में आपका वास है। माता धूमावती, बगलामुखी, भैरवी, तारा, भुवनेश्वरी, कमला इत्यादि आपका ही विस्तृत रूप हैं।
षोडशी, छिन्नमस्ता, मातंगी, ललिते! शक्ति तुम्हारी संगी।
ललिते तुम हो ज्योतित भाला, भक्त जनों का काम संभाला।
भारी संकट जब-जब आये, उनसे तुमने भक्त बचाये।
जिसने कृपा तुम्हारी पाई, उसकी सब विधि से बन आई।
माता षोडशी, छिन्नमस्ता, मातंगी इत्यादि भी आपके ही शक्ति रूप हैं। आप ही ज्योति हैं और अपने भक्तजनों के काम बना देती हैं। जब कभी भी आपके भक्तों पर कोई बहुत बड़ा संकट आया है तब आपने ही उनकी रक्षा की है। जिस किसी पर भी आपकी कृपा दृष्टि हो गयी, उसके तो सभी काम बन जाते हैं।
संकट दूर करो माँ भारी, भक्तजनों को आस तुम्हारी।
त्रिपुरेश्वरी, शैलजा, भवानी, जय जय जय शिव की महारानी।
योग सिद्धि पावें सब योगी, भोगे भोग, महा सुख भोगी।
कृपा तुम्हारी पाके माता, जीवन सुखमय है बन जाता।
हे माँ ललिता!! आपके भक्तों को आपसे बहुत आशाएं हैं और अब आप हमारे संकटों को दूर कर दीजिये। आप ही त्रिपुरेश्वरी, शैलजा, भवानी तथा शिव भगवान की पटरानी हो। आपकी कृपा से योगी लोगों को योग की सिद्धियाँ प्राप्त होती है तो वहीं भोगी लोगों को सुख की प्राप्ति होती है। आपकी कृपा पाकर तो हमारा जीवन सुखी हो जाता है।
दुखियों को तुमने अपनाया, महामूढ़ जो शरण न आया।
तुमने जिसकी ओर निहारा, मिली उसे सम्पत्ति, सुख सारा।
आदि शक्ति जय त्रिपुर-प्यारी, महाशक्ति जय जय भयहारी।
कुल योगिनी, कुण्डलिनी रूपा, लीला ललिते करें अनूपा।
आपने तो दुखी लोगों को अपना भक्त मान लिया है और वह व्यक्ति महामूर्ख ही होगा जो आपकी शरण में नहीं आया होगा। आपने जिस भी व्यक्ति को देखा, उसे तुरंत ही सुख-संपत्ति मिल गयी। आप ही माँ आदि शक्ति, तीनों लोकों में प्यारी, महाशक्ति तथा भय का नाश करने वाली माता हो। आप ही कुलयोगिनी व कुंडलिनी हैं और आप कई रूपों में अलग-अलग लीलाएं करती हैं।
महा-महेश्वरी, महा शक्ति दे, त्रिपुर-सुन्दरी सदा भक्ति दे।
महा महानन्दे, कल्याणी, मूकों को देती हो वाणी।
इच्छा-ज्ञान-क्रिया का भागी, होता तब सेवा अनुरागी।
जो ललिते तेरा गुण गावे, उसे न कोई कष्ट सतावे।
हे महामहेश्वरी!! आप मुझे शक्ति दे। हे त्रिपुरसुंदरी!! आप मुझे अपनी भक्ति दें। आप महानंदा के रूप में हम सभी का कल्याण करती हैं और गूंगे लोगों को आवाज देती हैं। जिस किसी को भी अपनी इच्छा पूरी करनी हो या ज्ञान प्राप्ति करनी हो तो वह आपका ही स्मरण करता है। जो कोई भी ललिता माता के गुणों का वर्णन करता है, उसे किसी भी प्रकार का संकट नहीं सताता है।
सर्व मंगले ज्वाला-मालिनी, तुम हो सर्व शक्ति संचालिनी।
आया माँ जो शरण तुम्हारी, विपदा हरी उसी की सारी।
नामा-कर्षिणी, चित्त-कर्षिणी, सर्व मोहिनी सब सुख-वर्षिणी।
महिमा तब सब जग विख्याता, तुम हो दयामयी जगमाता।
आप ज्वाला रूप में सभी का मंगल करने वाली हो। आपके अंदर ही सभी तरह की शक्तियां समाहित है। जो कोई भी आपकी शरण में आया है, आपने उसके जीवन से सभी संकटों को दूर कर दिया। आप हमारे मन, चित्त इत्यादि को आकर्षित करती हैं, सभी के मन को मोह लेती हैं तथा सभी के ऊपर सुखों की वर्षा करती हैं। आपकी महिमा को तो सारा संसार जानता है और आप इस जगत की माता के रूप में सभी पर दया करती हो।
सब सौभाग्य-दायिनी ललिता, तुम हो सुखदा करुणा कलिता।
आनन्द, सुख, सम्पति देती हो, कष्ट भयानक हर लेती हो।
मन से जो जन तुमको ध्यावे, वह तुरन्त मनवांछित पावे।
लक्ष्मी, दुर्गा तुम हो काली, तुम्हीं शारदा चक्र-कपाली।
आप स्त्रियों को सौभाग्य प्रदान करती हैं। आप ही हमें सुख प्रदान करती हो और आप ही करुणा का रूप हो। आप ही हमें आनंद, सुख, संपत्ति प्रदान करती हो तथा हमारे कष्टों व भय को दूर कर देती हो। जो कोई भी सच्चे मन से आपका ध्यान करता है, आप उसकी हरेक मनोकामना पूरी कर देती हो। आप ही माँ लक्ष्मी, दुर्गा, काली व शारदा हो।
मूलाधार निवासिनी जय-जय, सहस्रार गामिनी माँ जय-जय।
छः चक्रों को भेदने वाली, करती हो सबकी रखवाली।
योगी भोगी क्रोधी कामी, सब हैं सेवक सब अनुगामी।
सबको पार लगाती हो माँ, सब पर दया दिखाती हो माँ।
आप इस सृष्टि के मूल आधार में निवास करती हो और आपकी जय हो, जय हो। आप सभी दिशाओं में विचरण करने वाली मातारानी हो और आपकी जय हो। आप छह चक्रों को भी भेद देती हो और हम सभी की रखवाली करती हो। योगी, भोगी, क्रोधी व कामी इत्यादि सभी ही आपके सेवक हैं और आपका अनुसरण करते हैं। आप सभी को भवसागर पार करवा देती हो और हम सभी पर ही समान रूप से दया दिखाती हो।
हेमावती, उमा, ब्रह्माणी, भण्डासुर का, हृदय विदारिणी।
सर्व विपति हर, सर्वाधारे, तुमने कुटिल कुपंथी तारे।
चन्द्र-धारणी, नैमिषवासिनी, कृपा करो ललिते अघनाशिनी।
भक्तजनों को दरस दिखाओ, संशय भय सब शीघ्र मिटाओ।
आप ही माँ हेमावती, उमा, ब्रह्माणी तथा भंडासुर का हृदय परिवर्तित करने वाली मातारानी हो। आपने हम सभी की विपत्ति को दूर किया है और कुटील व दुष्ट लोगों का संहार किया है। आपने चन्द्रमा को धारण किया हुआ है और नैमिष में वास करती हो। हे संकटों का नाश करने वाली ललिता मां!! अब आप मुझ पर दया कीजिये। अब आप अपने भक्तों को दर्शन दीजिये और हमारी सभी तरह की शंकाओं और भय को दूर कर दीजिये।
जो कोई पढ़े ललिता चालीसा, होवे सुख आनन्द अधीसा।
जिस पर कोई संकट आवे, पाठ करे संकट मिट जावे।
ध्यान लगा पढ़े इक्कीस बारा, पूर्ण मनोरथ होवे सारा।
पुत्र हीन सन्तति सुख पावे, निर्धन धनी बने गुण गावे।
जो कोई भी ललिता चालीसा का पाठ करता है, उसे परम सुख व आनंद की प्राप्ति होती है। यदि हम पर कोई संकट आता है तो ललिता चालीसा के पाठ से वह दूर हो जाता है। यदि हम इक्कीस बार ललिता माता चालीसा का पाठ कर लेते हैं तो हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। जिसके संतान नहीं है, उसे संतान प्राप्ति होती है तो निर्धन व्यक्ति धनवान बन जाता है।
इस विधि पाठ करे जो कोई, दुःख बन्धन छूटे सुख होई।
जितेन्द्र चन्द्र भारतीय बतावें, पढ़ें चालीसा तो सुख पावें।
सबसे लघु उपाय यह जानो, सिद्ध होय मन में जो ठानो।
ललिता करे हृदय में बासा, सिद्धि देत ललिता चालीसा।
जो कोई भी विधि पूर्वक माता ललिता चालीसा का पाठ कर लेता है, उसके सभी दुःख समाप्त हो जाते हैं तथा वह बंधन मुक्त हो जाता है। जितेन्द्र चन्द्र भारतीय कहते हैं कि जो कोई भी ललिता देवी चालीसा का पाठ करता है, उसे सुख मिलता है। सुख प्राप्ति का यह सबसे छोटा उपाय है और इसे मन में ठान कर सिद्ध कर लीजिये। ललिता चालीसा के जाप से वे हमारे हृदय में निवास करती हैं और हमें सिद्धियाँ प्रदान करती हैं।
॥ दोहा ॥
ललिते माँ अब कृपा करो, सिद्ध करो सब काम।
श्रद्धा से सिर नाय कर, करते तुम्हें प्रणाम॥
हे ललिता माँ!! अब आप अपने भक्तों पर कृपा कर हमारे सभी काम सिद्ध कर दीजिये। हम सभी श्रद्धा पूर्वक आपके सामने सिर झुकाकर आपको प्रणाम करते हैं।
ऊपर आपने ललिता चालीसा हिंदी में अर्थ सहित (Lalita Chalisa) पढ़ ली है। इससे आपको ललिता माता चालीसा का भावार्थ समझ में आ गया होगा। अब हम ललिता चालीसा के फायदे और महत्व भी जान लेते हैं।
ललिता माता चालीसा का महत्व
श्री ललिता चालीसा के माध्यम से माता ललिता के बारे में प्रत्येक जानकारी दी गयी है। ऊपर का लेख पढ़कर आपने जाना कि ललिता माता की क्या कुछ शक्तियां हैं, उनका क्या औचित्य है, वे किन गुणों का प्रतिनिधित्व करती हैं, इस रूप में उनकी मान्यता क्यों है तथा उनका माँ सती के द्वारा प्रकटन किस उद्देश्य के तहत किया गया था।
तो यही सब बातें आम जन को बताने और माता ललिता का महत्व बताने के लिए ही यह ललिता चालीसा लिखी गयी है। इसे नित्य रूप से पढ़कर हमें ललिता माँ का आशीर्वाद प्राप्त होता है जिससे हमारा जीवन सुखमय बन जाता है। यही ललिता माता चालीसा का महत्व होता है।
ललिता चालीसा पढ़ने के फायदे
जो व्यक्ति नित्य रूप से ललिता माता की चालीसा को पढ़ता है या सुनता है, उसके सभी काम बन जाते हैं। मां ललिता उससे बहुत प्रसन्न होती हैं और उसकी हर मनोकामना को पूरा कर देती हैं। ललिता चालीसा के प्रतिदिन पाठ से व्यक्ति को सुन्दर रूप की प्राप्ति होती है और उसके मुख पर कांति आती है। चूँकि ललिता माता को त्रिपुर सुंदरी भी कहा जाता है, ऐसे में वे अपने भक्तों के रूप को निखारने का काम करती हैं।
इसी के साथ ही यदि आप जीवनसाथी की तलाश कर रहे हैं तो ललिता चालीसा का निरंतर पाठ करने से ना केवल आपको सुयोग्य जीवनसाथी की प्राप्ति होती है बल्कि विवाह में आ रही हरेक अड़चन भी दूर हो जाती है। वहीं जो भक्तगण पहले से ही विवाहित हैं, उनका वैवाहिक जीवन सुखमय बनता है। ललिता चालीसा के जाप से व्यक्ति का मन नियंत्रण में रहता है तथा वह जल्दी से विचलित नहीं होता है।
निष्कर्ष
आज के इस लेख के माध्यम से आपने ललिता चालीसा इन हिंदी में अर्थ सहित (Lalitha Chalisa) पढ़ ली हैं। साथ ही आपने ललिता चालीसा के फायदे और महत्व के बारे में भी जान लिया है। यदि आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।
ललिता चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: ललिता देवी कौन है?
उत्तर: ललिता देवी माँ सती के द्वारा प्रकट की गयी दस महाविद्याओं में से एक महाविद्या है जिन्हें त्रिपुर सुंदरी या षोडशी देवी के नाम से भी जाना जाता है।
प्रश्न: क्या ललिता और पार्वती एक ही है?
उत्तर: ललिता देवी का प्राकट्य माँ सती के द्वारा किया गया था जबकि माता पार्वती माता सती का ही पुनर्जन्म हैं। इसके अनुसार ललिता व पार्वती माता को एक ही माना जा सकता है।
प्रश्न: ललिता देवी भगवान शिव पर क्यों विराजमान हैं?
उत्तर: ललिता देवी माता सती या माता पार्वती का ही एक रूप हैं और भगवान शिव ने उन्हें अपने हृदय में धारण किया हुआ है।
प्रश्न: ललिता अंबिका कौन है?
उत्तर: ललिता अंबिका माँ सती के द्वारा प्रकट की गयी दस महाविद्याओं में से एक महाविद्या है जिन्हें हम सभी षोडशी माता या त्रिपुर सुंदरी देवी के नाम से भी जानते हैं।
नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:
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