दस महाविद्याओं में मातंगी देवी (Matangi Devi) नवम महाविद्या के रूप में जानी जाती हैं। माता सती के 10 रूपों में से मातंगी माता को नौवां रूप माना गया है। मातारानी का यह रूप सबसे अनोखा है। वह इसलिए क्योंकि आपने कभी नहीं सुना होगा कि भगवान को झूठन का भोग लगाया जाता हो लेकिन मातारानी के इस रूप को हमेशा झूठन का भोग लगाया जाता है।
माता का यह स्वरुप जानकर आप भी इसके पीछे के रहस्य को जानने को उत्सुक होंगे जिसे मातंगी रहस्य भी कहा जाता है। इसलिए आज के इस लेख में हम आपके साथ मातंगी मां (Matangi Maa) की कहानी तो साझा करेंगे ही बल्कि उसके साथ ही मातंगी साधना के लाभ भी आपको बताएँगे।
Matangi Devi | मातंगी देवी
मातंगी माता का सबसे बड़ा रहस्य यही है कि उन्हें हमेशा झूठे खाने का ही भोग लगाया जाता है। सामान्य तौर पर हम सबसे पहले भगवान को भोजन का भोग लगाते हैं और उसके बाद उसे ग्रहण करते हैं। मातंगी देवी के लिए उल्टा किया जाता है और उन्हें हमारी झूठन का भोग लगाया जाता है। इसके पीछे शिव-पार्वती व विष्णु-लक्ष्मी की एक रोचक कथा जुड़ी हुई है।
इसी कथा के फलस्वरूप ही मातंगी माता (Matangi Mata) की उत्पत्ति हुई थी। इसके बाद से ही दस महाविद्याओं में एक नाम मातंगी का लिया जाता है जिनकी गुप्त नवरात्रों में पूजा की जाती है। ऐसे में आज हम आपको मातंगी माता की कहानी सहित, उनसे जुड़ा रहस्य, मंत्र, साधना करने के लाभ इत्यादि के बारे में विस्तार से बताएँगे।
मातंगी माता की कथा
यह कथा बहुत ही रोचक है जो भगवान शिव व उनकी प्रथम पत्नी माता सती से जुड़ी हुई है। हालांकि उनकी दूसरी पत्नी माता पार्वती माँ सती का ही पुनर्जन्म मानी जाती हैं। मातंगी महाविद्या की कहानी के अनुसार, एक बार माता सती के पिता राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया था।
चूँकि राजा दक्ष भगवान शिव से द्वेष भावना रखते थे और अपनी पुत्री सती के द्वारा उनसे विवाह किए जाने के कारण शुब्ध थे, इसलिए उन्होंने उन दोनों को इस यज्ञ में नहीं बुलाया। भगवान शिव इस बारे में जानते थे लेकिन माता सती इस बात से अनभिज्ञ थी।
यज्ञ से पहले जब माता सती ने आकाश मार्ग से सभी देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों को उस ओर जाते देखा तो अपने पति से इसका कारण पूछा। भगवान शिव ने माता सती को सब सत्य बता दिया और निमंत्रण ना होने की बात कही। तब माता सती ने भगवान शिव से कहा कि एक पुत्री को अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए निमंत्रण की आवश्यकता नहीं होती है।
माता सती अकेले ही यज्ञ में जाना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने अपने पति शिव से अनुमति मांगी किंतु उन्होंने मना कर दिया। माता सती के द्वारा बार-बार आग्रह करने पर भी शिव नहीं माने तो माता सती को क्रोध आ गया और उन्होंने शिव को अपनी महत्ता दिखाने का निर्णय लिया।
तब माता सती ने भगवान शिव को अपने 10 रूपों के दर्शन दिए जिनमें से नौवीं Matangi Mata थी। मातारानी के यही 10 रूप दस महाविद्या कहलाए। अन्य नौ रूपों में क्रमशः काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी व कमला आती हैं।
मातंगी रहस्य
अब जानते हैं कि माता मातंगी का जन्म किस उद्देश्य से हुआ था। माँ सती ने अपनी विद्याओं में से एक रूप माता मातंगी का दिखाया था लेकिन उनका असल में प्राकट्य कैसे हुआ था, इसके बारे में जानना भी आवश्यक है ताकि उनके बारे में अधिक जाना जा सके। इसके पीछे भी एक रोचक कथा जुड़ी हुई है जिस कारण मातारानी के इस रूप को झूठन का भोग लगाया जाता है।
दरअसल एक बार भगवान विष्णु माँ लक्ष्मी के साथ कैलाश पर्वत भगवान शिव व माता पार्वती से मिलने गए। भगवान विष्णु अपने साथ भोजन भी लेकर गए जिसे उन्होंने शिव व पार्वती को खाने के लिए दिया। जब शिव व पार्वती उस भोजन को खाने लगे तो थाली में से भोजन का कुछ अंश धरती पर गिर गया।
भोजन के उन्हीं झूठन अंश में से Matangi Maa का जन्म हुआ। इसी कारण मातारानी के मातंगी रूप को हमेशा झूठन का भोग लगाया जाता है। झूठन में से उत्पन्न होने के कारण उनका एक नाम उच्छिष्ट मातंगिनी भी पड़ा अर्थात जिसे बचे हुए भोजन या झूठे का भोग लगाया जाए।
मातंगी का अर्थ
भगवान शिव का एक नाम मतंग भी है। उनकी पत्नी होने के कारण मातारानी के इस रूप का नाम मातंगी पड़ा। मातंगी से तात्पर्य माँ दुर्गा व माँ सरस्वती के रूप से भी है।
Matangi Devi को भगवान शिव के मातंग रूप के साथ जोड़कर देखा जाता है। जिस प्रकार शिव-पार्वती या शिव-सती प्रसिद्ध है, ठीक उसी तरह मातंगी-मतंग भी प्रसिद्ध है। देश के कई हिस्सों में शिव की मतंग रूप में और पार्वती की मातंगी रूप में पूजा की जाती है।
Matangi Mata का रूप
माँ का रूप कई अर्थों में माता सरस्वती के समान है। इसलिए इन्हें तांत्रिक सरस्वती के नाम से भी जाना जाता है। मातारानी एक सोने से सुसज्जित सिंहासन पर विराजमान हैं। उनका वर्ण गहरा हरा है तथा उन्होंने लाल रंग के वस्त्र पहने हुए हैं। सोने के कई आभूषण भी मातारानी ने धारण किए हुए हैं।
उनके सिर पर एक मुकुट है जिस पर चंद्रमा सुसज्जित है। उनके केश खुले हुए हैं तथा तीन नेत्र हैं। मातारानी के चार हाथ हैं जिनमें उन्होंने तलवार, फंदा व अंकुश पकड़े हुए हैं। एक हाथ अभय मुद्रा में है। मातारानी के कुछ अन्य रूपों में उन्हें दूसरी वस्तुएं पकड़े हुए दिखाया गया है जैसे कि खड्ग, जपमाला या पुस्तिका इत्यादि।
उनके सामने माँ सरस्वती के समान वीणा रखी हुई है। इस कारण उन्हें कला व संगीत की देवी भी माना जाता है। माँ के कुछ चित्रों में उनके चार से अधिक हाथ दिखाए गए हैं जिनसे वे वीणा को भी पकड़े हुए हैं।
मातंगी माता का मंत्र
ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा॥
यह तो मातंगी देवी का मुख्य मंत्र हो गया जिसका आप जाप कर सकते हैं। हालांकि उनसे जुड़ा एक बीज मंत्र भी है जिसे हम सभी मातंगी देवी बीज मंत्र के नाम से जानते हैं। आइए उसके बारे में भी जान लेते हैं।
मातंगी देवी बीज मंत्र
ॐ ह्रीं ऐं भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा॥
इस तरह से आपने मातंगी देवी मंत्र व बीज मंत्र दोनों के बारे में जानकारी ले ली है। यदि आप Matangi Devi की साधना करना चाहते हैं तो आपको दोनों मंत्रों का विधि सहित जाप करना चाहिए। इससे आपकी हरेक मनोकामना जल्द ही पूर्ण होगी।
मातंगी साधना के लाभ
चूँकि माता मातंगी का यह रूप माता सरस्वती के समान है। इसलिए इनकी साधना करने से हमें माता सरस्वती की पूजा समान लाभ भी मिलते हैं। इससे व्यक्ति की बुद्धि व विद्या का विकास होता है तथा वाणी मधुर बनती है। माता मातंगी के आशीर्वाद से मनुष्य को कला व संगीत के क्षेत्र में उन्नति देखने को मिलती है।
इसके अलावा मातंगी माता की पूजा करने से किसी प्रकार के जादू टोना या माया से छुटकारा पाया जा सकता है। यदि किसी ने आपके ऊपर कोई टोटका या तंत्र किया है तो आप माँ मातंगी की सहायता से उससे छुटकारा पा सकते हैं।
तांत्रिकों के द्वारा माता मातंगी की पूजा किसी को वश में करने या उसे सम्मोहन में लेने के उद्देश्य से भी की जाती है। मातारानी के इस रूप की पूजा आम भक्तों के द्वारा कम व तांत्रिकों व साधुओं के द्वारा मुख्य रूप से की जाती है।
Matangi Mata की पूजा मुख्य रूप से गुप्त नवरात्रों में की जाती है। गुप्त नवरात्रों में मातारानी की 10 महाविद्याओं की ही पूजा की जाती है जिसमें से नौवें दिन महाविद्या मातंगी की पूजा करने का विधान है।
Matangi Maa से संबंधित अन्य जानकारी
- माता मातंगी से संबंधित रुद्रावतार मतंगेश्वर रुद्रावतार है।
- अन्य मान्यताओं के अनुसार इन्हें मतंग ऋषि की पुत्री भी बताया गया है।
- इन्हें चंडालिनी के नाम से भी जाना जाता है।
- माँ मातंगी का शक्तिपीठ मध्य प्रदेश राज्य के झाबुआ में स्थित है।
- आदिवासी जनजाति में माँ मातंगी अत्यधिक प्रसिद्ध व प्रिय हैं।
इस तरह से आज आपने मातंगी देवी (Matangi Devi) के बारे में शुरू से लेकर अंत तक संपूर्ण जानकारी ले ली है। इस बात का प्रमुखता के साथ ध्यान रखें कि आप मातंगी माता की पूजा अच्छे उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही करें अन्यथा बाद में चलकर आपको भी इसके दुष्प्रभाव देखने पड़ेंगे। जिस प्रकार मातंगी साधना के लाभ देखने को मिलते हैं, ठीक उसी तरह इनका गलत उद्दश्यों की पूर्ति के लिए प्रयोग में लेने पर हानि भी पहुँच सकती है।
मातंगी देवी से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: मातंगी देवी कौन है?
उत्तर: मातंगी देवी माता सती की दस महाविद्याओं में से नौवीं महाविद्या के रूप में पूजी जाती हैं। उनकी पूजा मुख्य तौर पर गुप्त नवरात्रों में होती है।
प्रश्न: मातंगी को कैसे प्रसन्न करें?
उत्तर: यदि आप माता मातंगी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उसके लिए आपको मातंगी देवी बीज मंत्र सहित उनके अन्य मंत्रों का विधिपूर्वक जाप करना होगा।
प्रश्न: मातंगी साधना क्या है?
उत्तर: मातंगी माता की साधना के फलस्वरूप आपको सुंदरता मिलती है व शरीर में तेज आता है। देवी की शक्ति से आप युवा दिखने लगते हैं।
प्रश्न: मां मातंगी की साधना कैसे करें?
उत्तर: यदि आप मां मातंगी की साधना करना चाहते हैं तो उसके लिए आपको गुप्त नवरात्र के नौवें दिन सुबह जल्दी नहा-धोकर देवी की मूर्ति के सामने बैठकर उनके बीज मंत्र का जाप करना चाहिए।
प्रश्न: मातंगी मंत्र से क्या लाभ है?
उत्तर: मातंगी मंत्र से आपके ऊपर सभी तरह का जादू या टोना हट जाता है और नकारात्मक शक्तियां दूर होने लगती है। यह आपको आकर्षक स्वभाव वाला भी बनाता है।
प्रश्न: मातंगी की पूजा किस दिन करनी है?
उत्तर: मातंगी की पूजा आप माघ या आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की नवम तिथि को कर सकते हैं।
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