माता सती ने अपने दस रूप प्रकट किए थे जिसमें से एक रूप मां भैरवी (Maa Bhairavi) को माना गया है। उनके यह दस रूप दस महाविद्या कहलाए थे जिनकी पूजा गुप्त नवरात्रों में होती है। इन दस महाविद्याओं में से भैरवी देवी को पंचम महाविद्या माना जाता है। माता भैरवी का रूप अत्यधिक भयंकर व डरावना है जो भगवान शिव के रूद्र अवतार भगवान भैरव के समान ही है।
इसी के साथ देवी भैरवी के इस रूप को माँ काली के समकक्ष ही माना गया है। यही कारण है कि भक्तों के बीच भैरवी महाविद्या की प्रसिद्धि हर दिन के साथ बढ़ती ही जा रही है। भैरवी साधना के लाभ (Bhairavi Devi) भी अद्भुत हैं जो आज हम आपको बताएँगे। आइए जाने माँ भैरवी के बारे में विस्तार से।
Maa Bhairavi | मां भैरवी साधना
भैरव बाबा को तो सभी जानते हैं। जहाँ-जहाँ मातारानी के शक्तिपीठ स्थापित हैं, वहां-वहां भैरव बाबा के भी मंदिर हैं। हालाँकि भैरवी देवी के बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते हैं। वह इसलिए क्योंकि इन्हें काली के समकक्ष ही मान लिया गया है। ऐसे में माँ काली की पूजा करने से ही भैरवी देवी की पूजा को संपन्न मान लिया जाता है।
फिर भी काली माता अलग है और भैरवी माता अलग। Bhairavi Mahavidya को पांचवीं महाविद्या माना गया है जबकि काली प्रथम महाविद्या के रूप में पूजी जाती है। इसलिए आज हम आपके साथ भैरवी देवी की कथा, मंत्र, रूप, साधना विधि व उससे मिलने वाले लाभ इत्यादि के बारे में जानकारी सांझा करेंगे।
माँ भैरवी की कथा
यह कथा बहुत ही रोचक है जो भगवान शिव व उनकी प्रथम पत्नी माता सती से जुड़ी हुई है हालाँकि उनकी दूसरी पत्नी माता पार्वती माँ सती का ही पुनर्जन्म मानी जाती हैं। भैरवी महाविद्या की कहानी के अनुसार, एक बार माता सती के पिता राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया था।
चूँकि राजा दक्ष भगवान शिव से द्वेष भावना रखते थे और अपनी पुत्री सती के द्वारा उनसे विवाह किए जाने के कारण शुब्ध थे, इसलिए उन्होंने उन दोनों को इस यज्ञ में नहीं बुलाया। भगवान शिव इस बारे में जानते थे लेकिन माता सती इस बात से अनभिज्ञ थी।
यज्ञ से पहले जब माता सती ने आकाश मार्ग से सभी देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों को उस ओर जाते देखा तो अपने पति से इसका कारण पूछा। भगवान शिव ने माता सती को सब सत्य बता दिया और निमंत्रण ना होने की बात कही। तब माता सती ने भगवान शिव से कहा कि एक पुत्री को अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए निमंत्रण की आवश्यकता नहीं होती है।
माता सती अकेले ही यज्ञ में जाना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने अपने पति शिव से अनुमति मांगी किंतु उन्होंने मना कर दिया। माता सती के द्वारा बार-बार आग्रह करने पर भी शिव नहीं माने तो माता सती को क्रोध आ गया और उन्होंने शिव को अपनी महत्ता दिखाने का निर्णय लिया।
तब माता सती ने भगवान शिव को अपने 10 रूपों के दर्शन दिए जिनमें से पांचवीं माँ भैरवी देवी थी। मातारानी के यही 10 रूप दस महाविद्या कहलाए जिनमें से पांचवां रूप Bhairavi Devi है। अन्य नौ रूपों में क्रमशः काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला आती हैं।
भैरवी का अर्थ
भैरवी नाम का अर्थ तांत्रिकों की आराध्य देवी से है जिनसे तांत्रिक विद्या में शक्तियां प्राप्त होती है। इन्हें भगवान शिव के भैरव अवतार के समकक्ष होने के कारण भी भैरवी कहा गया। साथ ही यह माँ के चामुंडा अर्थात दुष्टों का नाश करने वाले रूप को भी प्रदर्शित करती है।
Bhairavi Devi के नाम से ही लोग अनुमान लगा सकते हैं कि उनका यह रूप कितना भयंकर होता होगा। हालाँकि आप गलत हैं क्योंकि माँ काली के उलट मातारानी का यह रूप दिखने में शांत लगता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि मातारानी जैसी स्वभाव में है, वैसा ही उनका रूप है लेकिन माँ भैरवी दिखने में शांत व सौम्य लगती हैं लेकिन उनका स्वभाव काली के समान ही है।
Bhairavi Devi | भैरवी देवी का रूप
माँ भैरवी के दो रूप माने जाते हैं तथा वे दोनों ही एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं। मुख्य रूप एकदम भयंकर व दुष्टों का नाश करने वाला है जो माँ काली के समान ही है। जिस प्रकार माँ काली का रूप अत्यंत भीषण व रक्तरंजित होता है ठीक उसी प्रकार माँ भैरवी का भी रूप है। दोनों के रूप को भिन्न नहीं माना जा सकता है। इसलिए माँ भैरवी को माँ काली भी कह दिया जाता है।
माँ के इस रूप में वे काले वर्ण में हैं जिनके केश खुले हुए हैं। साथ ही माँ के तीन नेत्र हैं तथा जीभ लंबी व बाहर निकली हुई है जिसमें से रक्त निकल रहा है माँ के चार हाथ हैं जिनमें उन्होंने खड्ग, तलवार, राक्षस की खोपड़ी पकड़ी हुई है तथा एक हाथ अभय मुद्रा में है जो उनके भक्तों को अभय प्रदान करता है। माँ राक्षस की खोपड़ियों के आसन पर विराजमान हैं जो उनके रूप को और भी भीषण बनाता है।
माँ का दूसरा रूप मन को लुभाने वाला व अत्यंत सुनहरा है। इस रूप में माँ एक कमल के आसन पर विराजमान हैं जिनका वर्ण सुनहरा है। उनके इस रूप में सूर्य के समान तेज है जिनके सिर पर मुकुट है। माँ के केश खुले हुए हैं व तीन नेत्र हैं। उनके चार हाथ हैं जिनमें से दो में उन्होंने पुस्तक व जपमाला पकड़ी हुई है जबकि अन्य दो हाथ वरदान व अभय मुद्रा में हैं। माँ अपने इस रूप में भी गले में राक्षसों की खोपड़ियों की माला पहने हुई हैं।
भैरवी साधना मंत्र
ॐ ह्रीं भैरवी कलौं ह्रीं स्वाहा॥
जो भी भक्तगण Bhairavi Devi की पूजा करना चाहते हैं उन्हें गुप्त नवरात्रि के पांचवें दिन भैरवी साधना मंत्र का जाप करना चाहिए। इसके लिए मातारानी की चौकी सजाकर उसके सामने बैठें और फिर भैरवी देवी बीज मंत्र का जाप शुरू करें। इसे आप अपनी इच्छा अनुसार कितनी भी बार कर सकते हैं। इससे आपको अद्भुत लाभ मिलते हैं जिनके बारे में हम आपको नीचे बताने वाले हैं।
भैरवी साधना के लाभ
माँ भैरवी की पूजा करने से हमें उनके रूप के अनुसार दो तरह के लाभ मिलते हैं। पहले रूप के अनुसार हमें बुरी आदतों, शक्तियों व आत्माओं के प्रभाव से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा यदि व्यक्ति को किसी तरह की शारीरिक कमजोरी है तो भी उसे माँ भैरवी के इस रूप की पूजा करनी चाहिए। माँ का यह रूप अपने भक्तों को सभी प्रकार के भय से मुक्ति प्रदान करता है और अभय प्रदान करता है।
माँ के दूसरे रूप से हमारे वैवाहिक जीवन या प्रेम जीवन में सुधार देखने को मिलता है। यदि आप एक अच्छे जीवनसाथी को खोज रहे हैं तो आपको माँ भैरवी के सुंदर रूप की पूजा करनी चाहिए। साथ ही यदि आपका विवाह हो चुका है तो उसके सुखमय रहने की भी प्रबल संभावना है।
Maa Bhairavi की पूजा मुख्य रूप से गुप्त नवरात्रों में की जाती है। गुप्त नवरात्रों में मातारानी की 10 महाविद्याओं की ही पूजा की जाती है जिसमें से पांचवें दिन भैरवी देवी की पूजा करने का विधान है।
Bhairavi Mahavidya से संबंधित अन्य जानकारी
अभी भी कुछ जानकारी जाननी रह गई है जो Bhairavi Mahavidya से जुड़ी हुई है। ऐसे में आइए उनके बारे में भी जान लेते हैं।
- माँ भैरवी के अन्य नाम चंडी, चामुंडा व काली है।
- माँ भैरवी से संबंधित रुद्रावतार भैरवनाथ महादेव हैं।
- देवी भैरवी का मुख्य रूप से वर्णन दुर्गा सप्तदशी में लिखित है।
इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने मां भैरवी (Maa Bhairavi) के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है। जो भी भक्तगण सच्चे मन के साथ मां भैरवी की पूजा करते हैं, उन पर जल्द ही मातारानी की कृपा होती है और सभी काम बन जाते हैं।
भैरवी महाविद्या से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: देवी भैरवी कौन है?
उत्तर: देवी भैरवी माता सती के 10 रूपों में से एक रूप है। यह पंचम महाविद्या के रूप में गुप्त नवरात्रि के पांचवें दिन पूजी जाती है।
प्रश्न: भैरवी किसकी देवी है?
उत्तर: भैरवी हम सभी की देवी हैं। यह माता सती का ही एक रूप हैं जिन्हें भगवान भैरव के ही समकक्ष माना गया है। एक तरह से यह माता सती का उग्र रूप है।
प्रश्न: भैरवी की पूजा क्यों की जाती है?
उत्तर: भैरवी देवी की पूजा करने से हमारी बुरी आदतों और शारीरिक कमजोरी को दूर करने में सहायता मिलती है। साथ ही माँ की कृपा से वैवाहिक जीवन सुखमय बनता है।
प्रश्न: क्या भैरवी और काली एक ही हैं?
उत्तर: भैरवी दस महाविद्याओं में पांचवी महाविद्या है जबकि माँ काली प्रथम महाविद्या है। हालाँकि गुणों में समानता के कारण दोनों को एक भी मान लिया जाता है।
प्रश्न: भैरवी की पूजा कौन कर सकता है?
उत्तर: भैरवी की पूजा कोई भी कर सकता है। गुप्त नवरात्रि के पांचवें दिन इनकी पूजा मुख्य तौर पर की जाती है।
प्रश्न: भैरव और भैरवी कौन है?
उत्तर: भैरव भगवान शिव का रूद्र अवतार है जबकि भैरवी माता सती या पार्वती का रूद्र रूप है। ऐसे में भैरव और भैरवी एक-दूसरे के समकक्ष हैं।
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